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अहोई अष्टमी 2018: जाने क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त, व्रत और पूजन विधि

अहोई अष्टमी का पर्व दीपावली से करीब आठ दिन पूर्व मनाया जाता है। पंडित दीपक पांडे से जानें क्या है इस वर्ष इसका शुभ मुहूर्त, तिथि, आैर पूजा विधि।

By Molly SethEdited By: Published: Tue, 30 Oct 2018 12:45 PM (IST)Updated: Wed, 31 Oct 2018 10:20 AM (IST)
अहोई अष्टमी 2018: जाने क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त, व्रत और पूजन विधि
अहोई अष्टमी 2018: जाने क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त, व्रत और पूजन विधि

अहोई अष्टमी शुभ मुहूर्त  

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अहोई अष्टमी का त्योहार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष के आठवें दिन होता है। मान्यता है कि इस दिन शुभ मुहूर्त में अहोई माता की पूजा करने से संतान की जीवन में आने वाले संकट आैर कष्टों से रक्षा होती है। इस बार अहोई का व्रत 31 अक्टूबर 2018 बुधवार को पड़ रहा है। अष्टमी तिथि प्रारंभ 31 अक्टूबर सुबह 11 बजकर 09 मिनट से शुरू हो जाएगी आैर 01 नवंबर 2018 को सुबह 09 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। ज्योतिष के अनुसार सभी व्रत रखने वाली स्त्रियां बुधवार की शाम 05 बजकर 45 मिनट से शाम 07 बजकर 03 मिनट तक पूजा कर सकती हैं। पूजा के बाद चंद्र या तारा दर्शन भी शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए। जो महिलायें तारा देख कर व्रत का पारण करती हैं वे शाम 06 बजकर 12 मिनट तक उसके दर्शन करके अर्ध्य देंगी आैर चांद की पूजा करने वाली स्त्रियां रात 12 बजकर 06 मिनट पर पूजा कर सकेंगी। 

अहोर्इ पूजा की विधि 

दिवाली से आठ दिन पहले मनाया जाने वाला अहोई अष्टमी का त्योहार महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योकि इस अवसर पर संतान की दीर्घायु के लिए व्रत आैर पूजन करती हैं। इस दिन पूजा करने के लिए सर्वप्रथम प्रात: उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके संतान की लंबी आयु आैर सुख शांति के लिए व्रत करने का संकल्प करेंं। हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें कि ये अहोई माता मेरी संतान को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखें। इसके साथ हीकल्याणकारी अन्नपूर्णा कही जाने देवी पार्वती की भी पूजा करें। अहोई की पूजा के लिए गेरू से दीवाल पर अहोई माता का चित्र बनायें और साथ ही स्याहु और उसके सात पुत्रों का चित्र भी बनायें। उनके सामने चावल, मूली, सिंघाड़े रखें और दिया रखकर व्रत की कहानी कहें। पूजा के दौरान लोटे में पानी और उसके ऊपर करवे में पानी रखें। ध्यान रहे पूजा में वही करवा प्रयोग करें जो करवा चौथ में इस्तेमाल हुआ हो। इस करवे का पानी दिवाली के दिन पूरे घर में छिड़का जाता है। इसके बाद शाम को भी अहोर्इ के चित्रों की पूजा करें। कहानी कहते समय जो चावल हाथ में लें उन्हें पल्ल्हे में बांध कर रखें। चौदह पूरी और आठ पूआें का भोग अहोई माता को लगायें। इस व्रत में बयाना भी निकाला जाता है, जिसमें चौदह पूरी या मठरी या काजू होते हैं। लोटे के पानी से शाम को चावल के साथ तारों या चंद्रमा को अर्ध्य दें। इसके बाद पूजा का सारा सामान जैसे पूरी, मूली, सिंघाड़े, पूए, चावल और बाकी खाने का सामान बाहमण को भी दें। अहोई माता का चित्र या कैलेंडर दिवाली तक लगा रहने दें। कुछ जगह पर अहोई पूजा में एक अन्य विधान भी होता है। इसमें चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे स्याहु कहते हैं, जिसकी पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है। पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं।

अहोर्इ व्रत विधान  

शुभ मुहूर्त में अहोर्इ की पूजा करने से संतान की आयु लंबी होती है आैर कष्ट दूर होते हैं। इस दिन व्रत करने वाली महिलाआें को स्वच्छ वस्त्र धारण कर मिट्टी के मटके में पानी भरना चाहिए। पूरे दिन निराहार रहें।  अहोई माता का ध्यान करें। संतान की उम्र के बराबर चांदी के मोती धागे में डालें और पूजा में रखें। शाम को अहोई माता की पूजा करें और उन्हें भोग लगायें। भोग में पूरी, हलवा, चना आदि शामिल करें। अहोर्इ व्रत को तारे देखने के बाद खोला जाता है, कुछ महिलायें चांद को देख कर भी व्रत खोलती हैं। इस व्रत में भी बायना निकालकर सास, ननद या जेठानी को दिया जाता है। अहोई माता की माला को दीवाली तक गले में पहनें। यह व्रत निर्जला रखा जाता है। व्रत पूरा होने पर पूजा के पश्चात सासु मां आैर परिवार के अय बड़े लोगों के पैर छू कर आशीर्वाद लें आैर तब अन्न जल ग्रहण करें।


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