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Kajri Teej Vrat Katha: कजरी तीज की व्रत कथा करना होता है फलदायी, आप भी पढ़ें ब्राह्मण-ब्राह्मणी की ये कथा

Kajri Teej Vrat Katha आज कजरी तीज है। आज के दिन सुहागिनें और कुंवारी लड़कियां व्रत करती हैं और नीमड़ी माता की पूजन करती हैं। इस दौरान व्रत कथा भी पढ़ी जाती है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Thu, 06 Aug 2020 07:00 AM (IST)Updated: Thu, 06 Aug 2020 07:52 AM (IST)
Kajri Teej Vrat Katha: कजरी तीज की व्रत कथा करना होता है फलदायी, आप भी पढ़ें ब्राह्मण-ब्राह्मणी की ये कथा
Kajri Teej Vrat Katha: कजरी तीज की व्रत कथा करना होता है फलदायी, आप भी पढ़ें ब्राह्मण-ब्राह्मणी की ये कथा

Kajri Teej Vrat Katha: आज कजरी तीज है। आज के दिन सुहागिनें और कुंवारी लड़कियां व्रत करती हैं और नीमड़ी माता की पूजन करती हैं। इस दौरान व्रत कथा भी पढ़ी जाती है। माना जाता है कि अगर व्रत पूजन करते समय कजरी तीज की व्रत कथा की जाए तो बेहद फलदायी होता है। अगर आप भी आज कजरी तीज का व्रत कर रही हैं तो यहां पढ़ें कजरी या कजली तीज की पौराणिक व्रत कथा।

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एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था जो बहुत गरीब था। उसके साथ उसकी पत्नी ब्राह्मणी भी रहती थी। इस दौरान भाद्रपद महीने की कजली तीज आई। ब्राह्मणी ने तीज माता का व्रत किया। उसने अपने पति यानी ब्राह्मण से कहा कि उसने तीज माता का व्रत रखा है। उसे चने का सतु चाहिए। कहीं से ले आओ। ब्राह्मण ने ब्राह्मणी को बोला कि वो सतु कहां से लाएगा। सातु कहां से लाऊं। इस पर ब्राह्मणी ने कहा कि उसे सतु चाहिए फिर चाहे वो चोरी करे या डाका डालें। लेकिन उसके लिए सातु लेकर आए।

रात का समय था। ब्राह्मण घर से निकलकर साहूकार की दुकान में घुस गया। उसने साहूकार की दुकान से चने की दाल, घी, शक्कर लिया और सवा किलो तोल लिया। फिर इन सब से सतु बना लिया। जैसे ही वो जाने लगा वैसे ही आवाज सुनकर दुकान के सभी नौकर जाग गए। सभी जोर-जोर से चोर-चोर चिल्लाने लगे। इतने में ही साहूकार आया और ब्राह्मण को पकड़ लिया। ब्राह्मण ने कहा कि वो चोर नहीं है। वो एक एक गरीब ब्राह्मण है। उसकी पत्नी ने तीज माता का व्रत किया है इसलिए सिर्फ यह सवा किलो का सातु बनाकर ले जाने आया था। जब साहूकार ने ब्राह्मण की तलाशी ली तो उसके पास से सतु के अलावा और कुछ नहीं मिला।

उधर चांद निकल गया था और ब्राह्मणी सतु का इंतजार कर रही थी। साहूकार ने ब्राह्मण से कहा कि आज से वो उसकी पत्नी को अपनी धर्म बहन मानेगा। उसने ब्राह्मण को सातु, गहने, रुपए, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर दुकान से विदा कर दिया। फिर सबने मिलकर कजली माता की पूजा की। जिस तरह से ब्राह्मण के दिन सुखमय हो गए ठीक वैसे ही कजली माता की कृपा सब पर बनी रहे।  


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