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श्रद्धालुओं के बिना ही संपन्न हुई जगन्नाथ रथ बाहुड़ा यात्रा

हिंदी पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से भगवान जगन्नाथ भगवान बलभद्र और बहन सुभद्रा रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं।

By Umanath SinghEdited By: Published: Thu, 02 Jul 2020 01:53 PM (IST)Updated: Thu, 02 Jul 2020 01:53 PM (IST)
श्रद्धालुओं के बिना ही संपन्न हुई जगन्नाथ रथ बाहुड़ा यात्रा
श्रद्धालुओं के बिना ही संपन्न हुई जगन्नाथ रथ बाहुड़ा यात्रा

दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। कोरोना वायरस महामारी संकट में कड़ी सुरक्षा एवं कर्फ्यू के बीच भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के लौटने की शुरुआत हो चुकी है। हिंदी पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और बहन सुभद्रा रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं और अपने भक्तजनों को दर्शन देते हैं। जबकि देवशयनी एकादशी दिन से रथ यात्रा की वापसी होती है। इस बार रथ यात्रा की वापसी श्रद्धालुओं के बिना हो रही है।

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इससे पहले जगन्नाथ रथ यात्रा भी श्रद्धालुओं के बिना शुरू हुई थी। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस का सख्ती से पालन किया गया था। इतिहास में ऐसी पहली बार हुआ है, जब किसी कारणवश रथ यात्रा पर रोक लगी थी। इसके बाद एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रथ यात्रा की अनुमति दे दी थी, लेकिन इस यात्रा में केवल सेवादारों को उपस्थित होने की अनुमति दी गई थी। जबकि श्रद्धालुओं के लिए सजीव प्रसारण करने का आदेश दिया गया था। आइए, रथ यात्रा और वापसी के बारे में जानते हैं-

जगन्नाथ रथ यात्रा की कथा

इस रथ यात्रा की दूसरी कथा अनुसार भगवान जगन्नाथ का जन्म ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन होता है। इसके बाद उन्हें मंदिर में स्थित सरोवर में 108 कलशों से स्नान कराया गया, जिससे उन्हें ज्वर और ताप आ गया। उस समय भगवान जगन्नाथ 15 दिन तक अपने कक्ष से नहीं निकले। इसके बाद आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भगवन नगर भ्रमण और भक्‍तों को दर्शन देने निकले। इस भ्रमण में उनके साथ बलराम और सुभद्रा भी थी।

कालांतर से यह परंपरा चलती आ रही है। आधुनिक समय में तीन लकड़ी के रथ बनाए जाते हैं। भगवान जगन्नाथ का विशाल रथ होता है, जिसमें 16 पहिए लगे होते हैं। जबकि बलराम के रथ में 14 और सुभद्रा के रथ में 12 पहिए लगे होते हैं, जिसे श्रद्धालु अपने हाथों से खींचते हैं।

हालांकि, इस वर्ष श्रद्धालुओं को अनुमित नहीं थी। ऐसे में केवल सेवादार ही रथ यात्रा में शामिल हो सके और उन्होंने तीनों रथों को खींचा और रथारूढ़ श्री विग्रहों को गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर तक पहुंचाया। इस धार्मिक आस्था में सरक्षाकर्मियों ने भी समर्पित भाव से भगवान जगन्नाथ की सेवा की।


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