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Indira Ekadashi 2021 Date: आज है इंदिरा एकादशी, जानें पूजा मुहूर्त, पारण समय एवं महत्व

Indira Ekadashi 2021 Date हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं कि इस वर्ष इंदिरा एकादशी व्रत कब है? पारण का समय क्या है और इसका महत्व क्या है?

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Wed, 22 Sep 2021 12:10 PM (IST)Updated: Sat, 02 Oct 2021 08:24 AM (IST)
Indira Ekadashi 2021 Date: आज है इंदिरा एकादशी, जानें पूजा मुहूर्त, पारण समय एवं महत्व
Indira Ekadashi 2021 Date: आज है इंदिरा एकादशी, जानें पूजा मुहूर्त, पारण समय एवं महत्व

Indira Ekadashi 2021 Date: हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। इंदिरा एकादशी व्रत पितृ पक्ष में आता है, इसलिए इसका महत्व अत्यधिक होता है। आइए जानते हैं कि इस वर्ष इंदिरा एकादशी व्रत कब है? पारण का समय क्या है और इसका महत्व क्या है?

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इंदिरा एकादशी 2021 मुहूर्त

हिन्दी पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 01 अक्टूबर दिन शुक्रवार को रात 11 बजकर 03 मिनट से हो रहा है। एकादशी तिथि का समापन 02 अक्टूबर दिन शनिवार को रात 11 बजकर 10 मिनट पर होना है। उदयातिथि के अनुसार इंदिरा एकादशी का व्रत 02 अक्टूबर को रखा जाएगा।

इंदिरा एकादशी 2021 पारण समय

जो लोग इंदिरा एकादशी का व्रत रहेंगे, उनको द्वादशी तिथि के समापन से पूर्व पारण करना होगा। इंदिरा एकादश व्रत के पारण का समय 03 अक्टूबर को प्रात: 06 बजकर 15 मिनट से सुबह 08 बजकर 37 मिनट के मध्य है। इस समय में पारण करके व्रत को पूरा करना चाहिए। पारण करने के बाद से व्रत पूर्ण माना जाता है।

इंदिरा एकादशी का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इंदिरा एकादशी का व्रत सभी घरों में करना चाहिए। जो भी व्यक्ति इंदिरा एकादशी का व्रत रखता है और उस व्रत पुण्य को अपने पितरों को समर्पित कर देता है, तो इससे उसके पितरों को लाभ होता है। जो पितर यमलोक में यमराज का दंड भोग रहे होते हैं, उनको इंदिरा एकादशी व्रत के प्रभाव से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

यदि आप इंदिरा एकादशी का व्रत करें तो इसे अपने पितरों को स​मर्पित कर दें। ऐसा करने से आपके पितर नरक लोक के कष्ट से मुक्त हो जाते हैं और उनको श्रीहरि विष्णु के चरणों में स्थान मिलता है। इससे प्रसन्न होकर पितर सुख, समृद्धि, वंश वृद्धि, उन्नति आदि का आशीष देते हैं। जो व्यक्ति इस व्रत को करता है, उसे भी मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।

डिस्क्लेमर

''इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।''


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