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अंखड सौभाग्‍य व मनचाहे वर के ल‍िए रखें हरतालिका व्रत, जानें पूजन व‍िध‍ि कथा व महत्‍व

ह‍िंदू धर्म में अखंड सौभाग्य पाने के ल‍िए भाद्रपद, शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालि‍का व्रत रखा जाता है। इस द‍िन श‍िव-पार्वती का पूजन क‍िया जाता है। जानें व्रत से जुड़ी पूजा और कथा...

By shweta.mishraEdited By: Published: Wed, 23 Aug 2017 10:24 AM (IST)Updated: Wed, 23 Aug 2017 01:55 PM (IST)
अंखड सौभाग्‍य व मनचाहे वर के ल‍िए रखें हरतालिका व्रत, जानें पूजन व‍िध‍ि कथा व महत्‍व
अंखड सौभाग्‍य व मनचाहे वर के ल‍िए रखें हरतालिका व्रत, जानें पूजन व‍िध‍ि कथा व महत्‍व

अखंड सौभाग्य म‍िलता है: 

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ह‍िंदू धर्म में हर साल हरतालिका व्रत भाद्रपद, शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन रखा जाता है। इस व्रत को हरतालिका तीज या तीजा नाम से भी पुकारा जाता है। इस द‍िन भगवान श‍िव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। देश के कई ह‍िस्‍सों में यह व्रत न‍ि‍र्जल व न‍िराहार रखा है। मान्‍यता है क‍ि इस व्रत रखने व व‍िध‍िव‍िधान से पूजन करने से भगवान श‍िव-पार्वती की व‍िशेष कृपा प्राप्‍त होती है। शास्‍त्रों के मुताबि‍क माता पार्वती ने भगवान श‍िव को पत‍ि के रूप में पाने के ल‍िए यह कठ‍िन व्रत रखा था। यह व्रत ब‍िल्‍कुल उत्‍सव की तरह लगभग पूरे देश में मनाया जाता है। हस्त नक्षत्र में होने वाले इस व्रत को स‍िर्फ सुहाग‍िन ही नहीं बल्क‍ि कन्‍याएं भी रखती हैं। सुहाग‍िन जहां अखंड सौभाग्य पाने के ल‍िए इस व्रत को करती हैं। वहीं कुंवारी युवत‍ियां मनचाहा पति पाने के लि‍ए इसे रखती हैं।  

रात में जागरण भी होता है: 

भाद्रपद, शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन मह‍िलाएं सुबह स्‍नान आद‍ि करके नए वस्‍त्र पहनती हैं। मेंहदी समेत सोलह श्रृंगार करती हैं। इसके बाद पूरा द‍िन रखने के बाद शाम के समय भगवान श‍िव और माता पार्वती की पूजा की जाती हैं। चौक आद‍ि बनाने के बाद म‍िट्टी के श‍िव-पार्वती की पूजा की जाती हैं। इस दौरान उन पर सुहाग का पूरा सामान, फल आद‍ि चढाया जाता है। इसके बाद पकवान व म‍िठाई आद‍ि का भोग लगाया जाता है। इस द‍िन रात में भजन व आरती के साथ जागरण होता है। वहीं दूसरे द‍िन सुबह एक बार फ‍िर से श‍िव-पार्वती की पूजा करने के बाद व्रत तोड़ा जाता है। सुहागि‍न मह‍िलाएं पार्वती से सुहाग लेने के बाद मि‍ट्टी की प्रत‍िमाओं को क‍िसी नदी आद‍ि में व‍िसर्जित करती हैं। व्रत वाले द‍िन महिलाओं को झूठ बोलने व क्रोध करने से बचना चाह‍िए। 

श‍िव जी ने क‍िया था व‍िवाह: 

शास्‍त्रों के मुताबि‍क एक बार राजा हिमवान की पुत्री पार्वती जी ने बाल्‍यावस्‍था में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने का न‍िश्‍चय क‍िया था। इस दौरान उन्‍होंने हिमालय पर गंगा तट पर अन्‍न त्‍याग कर सूखे पत्‍ते व हवा आदि‍ खाकर घोर तप शुरू कर द‍ी। इस पर उनके माता-पि‍ता काफी दुखी थे। इसी बीच एक दिन नारद जी भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के साथ व‍िवाह के ल‍िए प्रस्‍ताव लेकर राजा ह‍िमवान के पास पहुंचे। राजा ह‍िमवान तो खुश हुए लेक‍िन पार्वती जी ने इस प्रस्‍ताव को अस्‍वीकार क‍र द‍िया। इसके बाद पार्वती जी ने एक सखी को पूरी बात बताई। उन्‍होंने कहा कि‍ वह स‍िर्फ भगवान शंकर को ही पत‍ि के रूप में स्‍वीकार करेंगी। इसके बाद सहेली की सलाह पर पार्वती जी एक घने वन में एक गुफा में भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई। इसके बाद भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने रेत से शिवलिंग का बनाया। श‍िव स्‍तुत‍ि के साथ रात भर जागरण क‍िया। जि‍ससे पार्वती जी के इस कठोर तप से भगवाव श‍िव प्रसन्‍न हुए और फ‍िर उन्‍हें दर्शन देकर अपनी पत्‍नी के रूप में स्‍वीकार कर लि‍या। ज‍िसके बाद से मनचाह‍े पत‍ि और अखंड सौभाग्‍य के जा।


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