रविवार को पूजन से पूर्व जान लें सूर्य से जुड़ी ये 4 बातें
रविवार को सूर्य देव की भुवन भास्कर के रूप में पूजा होती है। आइये पंडित दीपक पांडे से जाने सूर्य देव से जुड़ी चार खास बातें।
क्या है स्थिति
श्रीमदभागवत पुराण में श्री शुकदेव जी के अनुसार पृथ्वी आैर देव लोक के मध्य में अन्तरिक्ष लोक माना जाता है। मान्यता है कि इसी स्थान पर सूर्य देव नक्षत्र तारों के मध्य में विराजमान रह कर तीनों लोकों को प्रकाशित करते हैं। यहां उत्तरायण, दक्षिणायन तथा विषुक्त नामक तीन मार्गों से चल कर कर्क, मकर तथा समान गतियों के छोटे, बड़े तथा अन्य राशि ग्रह दिन, रात्रि बनाते हैं। जब सूर्य, मेष तथा तुला राशि पर रहते हैं तब दिन रात्रि समान रहते हैं। जब वे वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या राशियों में रहते हैं तब क्रमशः रात्रि एक-एक मास में एक-एक घड़ी बढ़ती जाती है और दिन घटते जाते हैं। जब सूर्य वृश्चिक, मकर, कुम्भ, मीन ओर मेष राशि में रहते हैं तब क्रमशः दिन प्रति मास एक-एक घड़ी बढ़ता जाता है तथा रात्रि छोटी होती जाती है।
ये हैं सूर्य के निकट वाले स्थान
सूर्य की परिक्रमा का मार्ग मानसोत्तर पर्वत पर इंक्यावन लाख योजन है। जिसमें मेरु पर्वत के पूर्व की ओर इन्द्रपुरी है, दक्षिण की ओर यमपुरी है, पश्चिम की ओर वरुणपुरी है और उत्तर की ओर चन्द्रपुरी है। मेरु पर्वत के चारों ओर सूर्य परिक्रमा करते हैं इस लिये इन पुरियों में कभी दिन, कभी रात्रि, कभी मध्याह्न और कभी मध्यरात्रि होता है। सूर्य जिस पुरी में उदय होते हैं उसके ठीक सामने अस्त होते होते हैं। जिस पुरी में मध्याह्न होता है उसके ठीक सामने अर्ध रात्रि होती है।
ये सूर्य के चलने की गति
सूर्य भगवान की चाल पन्द्रह घड़ी में सवा सौ करोड़ साढ़े बारह लाख योजन से कुछ अधिक मानी गर्इ है। उनके साथ चन्द्रमा तथा बाकी नक्षत्र भी घूमते रहते हैं। सूर्य का रथ एक मुहूर्त यानि दो घड़ी में चौंतीस लाख आठ सौ योजन चलता है। संवत्सर नाम का इस रथ का एक पहिया है जिसके बारह अरे हैं मास, छः नेम, छः ऋतु और तीन चौमासे। इस रथ की एक धुरी मानसोत्तर पर्वत पर तथा दूसरा सिरा मेरु पर्वत पर स्थित है। इस रथ में बैठने का स्थान छत्तीस लाख योजन लम्बा है तथा अरुण नाम के सारथी इसे चलाते हैं। भगवान भास्कर नौ करोड़ इंक्यावन लाख योजन लम्बे परिधि को एक क्षण में दो सहस्त्र योजन के हिसाब से तय करते हैं।
एेसा है सूर्य के रथ का स्वरूप
सूर्य रथ का विस्तार नौ हजार योजन का है। इससे दुगुना इसका ईषा-दण्ड यानि जुअे और रथ के बीच का भाग है। इसका धुरा डेढ़ करोड़ सात लाख योजन लम्बा है, जिसमें पहिया लगा हुआ है। इसके पूर्वाह्न, मध्याह्न और पराह्न के रूप में तीन नाभि, परिवत्सर आदि पांच अरे और षड ऋतु इसके छः नेमि हैं। इसी अक्षस्वरूप संवत्सरात्मक चक्र में सम्पूर्ण कालचक्र स्थित है। गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति आदि सात छन्द इसके घोड़े हैं। इस रथ का दूसरा धुरा साढ़े पैंतालीस सहस्र योजन लम्बा है। इसके दोनों जुओं के आकार के ही बराबर इसके जूओं का आकार है। इनमें से छोटा धुरा उस रथ के जूअे के सहित ध्रुव के आधार पर स्थित है और दूसरे धुरे का चक्र मानसोत्तर पर्वत पर स्थित है।