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Kushmanda, Chaitra Navratri 2019: सृष्‍टि के निर्माण में सहयोगी मां कुष्‍मांडा की होती है चौथे दिन पूजा

नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्‍मांडा का पूजन होता है। ऐसी मान्यता है कि इन्‍होंने सृष्‍टि के निर्माण में अपना योगदान दिया था।

By Molly SethEdited By: Published: Mon, 08 Apr 2019 10:15 AM (IST)Updated: Tue, 09 Apr 2019 09:30 AM (IST)
Kushmanda, Chaitra Navratri 2019: सृष्‍टि के निर्माण में सहयोगी मां कुष्‍मांडा की होती है चौथे दिन पूजा
Kushmanda, Chaitra Navratri 2019: सृष्‍टि के निर्माण में सहयोगी मां कुष्‍मांडा की होती है चौथे दिन पूजा

सूर्यमंडल के भीतरी लोक में स्थित

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ऐसा माना जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब देवी कुष्‍मांडा ने ब्रह्मांड की रचना में सहायता की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति भी मानी जाती हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहां निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दीप्यमान है। इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशायें प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में मौजूद तेज इन्हीं की छाया है। मां की आठ भुजायें हैं। अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।

रोग, शोक और कष्‍ट दूर करने वाली देवी

पंडित दीपक पांडे के अनुसार मां कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। मां कूष्माण्डा बहुत थोड़ी ही सेवा और भक्ति से सहज प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है। मां की उपासना मनुष्य को सहज भाव से भवसागर से पार उतारने के लिए सबसे सरल मार्ग है। मां कूष्माण्डा की आराधना व्यक्ति को व्याधियों से भी मुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है। अतः अपनी लौकिक, पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिए।


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