Move to Jagran APP

Katyayani, Chaitra Navratri 2019: त्रिदेव के तेज से जन्मी हैं अमोघ फलदायिनी मां कात्यायनी

मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी मानी गई हैं। नवरात्रि के छठवें दिन पूजी जाने वाली इस देवी की शिक्षा प्राप्ति के लिए अवश्य उपासना करनी चाहिए।

By Molly SethEdited By: Published: Wed, 10 Apr 2019 04:27 PM (IST)Updated: Thu, 11 Apr 2019 09:16 AM (IST)
Katyayani, Chaitra Navratri 2019: त्रिदेव के तेज से जन्मी हैं  अमोघ फलदायिनी मां कात्यायनी
Katyayani, Chaitra Navratri 2019: त्रिदेव के तेज से जन्मी हैं अमोघ फलदायिनी मां कात्यायनी

prime article banner
v>पुराणों में प्राप्त होता है उल्लेख
भगवती दुर्गा के छठे रूप का नाम कात्यायनी है। ये महर्षि कात्यायन के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थी। मान्यता है कि कात्यायनी की भक्ति और उपासना से बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। पंडित दीपक पांडे के अनुसार यजुर्वेद के तैत्तिरीय आरण्यक में मां कात्यायनी का उल्लेख सबसे पहले हुआ है। स्कंद पुराण में बताया गया है कि वे परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थीं, जिन्होंने देवी पार्वती द्वारा दिये गए सिंह पर सवार होकर महिषासुर का वध किया था। वे शक्ति की आदि रूपा मानी जाती हैं, जिनका उल्लेख पाणिनि, पतांजलि के महाभाष्य में भी किया गया है।, ये ग्रंथ दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में लिखा गया था। मां कात्यायनी का वर्णन देवी भागवत पुराण, और मार्कंडेय ऋषि द्वारा रचित मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य में भी किया गया है। ये ग्रंथ 400 से 500 ईसा में लिपिबद्ध किया गया था। बौद्ध और जैन ग्रंथों और कई तांत्रिक ग्रंथों, जिनमें विशेष रूप से कालिका पुराण का नाम लिया जाता है जिसे 10 वीं शताब्दी में लिखा गया, में देवी के इस रूप का उल्लेख है। इन ग्रंथों में उद्यान या उड़ीसा में देवी कात्यायनी और भगवान जगन्नाथ का स्थान बताया गया है।
 
क्यों पड़ा कात्यायनी नाम
मां का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसकी भी एक कथा है। कहते हैं कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। उस के बाद ये महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्त सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाईं।
 
ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी
मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी कहा गया है। ऐसी मान्‍यता है कि भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी यमुना के तट पर की थी। इसीलिए ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भव्‍य है। इनकी चार भुजायें हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है। ऐसा विश्‍वास है कि मां कात्यायनी की पूजा में लाल और सफेद रंग के वस्त्र पहनने चाहिए। इनकी आराधना में चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहनाद्य, कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनिद्यद्य, इस मंत्र का जाप करना चाहिए।  

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.