Bhairav Ashtami 2019: कालभैरव, जिनसे काल भी होता है भयभीत, जानें कब है भैरवाष्टमी
Bhairav Ashtami 2019 जहां विश्वेश्वर स्वरूप अत्यन्त सौम्य और शान्त है वहीं उनका भैरव स्वरूप अत्यन्त रौद्र भयानक विकराल तथा प्रचण्ड है।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Bhairav Ashtami 2019: इस दिन काल भैरव के समीप जागरण करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
'काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे'
भगवान शिव की क्रोधाग्नि का विग्रह रूप माने जाने वाले कालभैरव का प्राकट्य पर्व मार्गशीर्ष माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन मध्याह्न में भगवान शिव के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी जिन्हें शिव का पांचवां अवतार माना गया है।
भगवान शिव के दो स्वरूप हैं:
पहला- भक्तों को अभय देने वाला विश्वेश्वर स्वरूप और
दूसरा- दुष्टों को दण्ड देने वाला काल भैरव स्वरूप।
जहां विश्वेश्वर स्वरूप अत्यन्त सौम्य और शान्त है, वहीं उनका भैरव स्वरूप अत्यन्त रौद्र, भयानक, विकराल, तथा प्रचण्ड है। शिवपुराण की शतरुद्र संहिता (५/२) के अनुसार परमेश्वर सदाशिव ने मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव रूप में अवतार लिया। अतः उन्हे साक्षात भगवान शंकर ही मानना चाहिए-
भैरव: पूर्णरूपो हि शंकरस्य परात्मन:।
मूढास्तं वै न जानन्ति मोहिताश्शिवमायया।
मंगलवार दिनांक 19 नवम्बर को अष्टमी दिन में 1 बजकर 50 मिनट से लग रही है जो बुधवार 20 नवम्बर को दिन में 11 बजकर 41 मिनट तक है। भैरव जी का जन्म मध्याह्न मे हुआ था, इसलिए मध्याह्न व्यापिनी अष्टमी लेनी चाहिए।
मंगलवार 19 नवम्बर को अष्टमी मध्याह्न में प्राप्त हो रही है अत: मंगलवार को ही भैरवाष्टमी मनायी जाएगी।
इस दिन प्रातः काल उठकर नित्यकर्म एवं स्नान से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए तथा भैरव जी के मंदिर में जाकर वाहन सहित उनकी पूजा करनी चाहिए।
'ऊँ भैरवाय नम:' इस नाम मंत्र से षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। भैरव जी का वाहन कुत्ता है, अतः इस दिन कुत्तों को मिष्ठान्न खिलाना चाहिए। इस दिन उपवास करके भगवान काल भैरव के समीप जागरण करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
मार्गशीर्षसिताष्टम्यो कालभैरवसंन्निधौ।
उपोष्य जागरन् कुर्वन् सर्वपापै: प्रमुच्यते।।
भैरव जी काशी के नगर रक्षक (कोतवाल) हैं। काल भैरव की पूजा का काशी नगरी मे विशेष महत्व है। काशी में भैरव जी के अनेक मंदिर हैं । जैसे - काल भैरव, बटुक भैरव,आनन्द भैरव आदि।
ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र