आंवले के वृक्ष के साथ आरंभ हुर्इ सृष्टि इसलिए होती है आमलकी एकादशी
17 मार्च रविवार को आमलकी एकादशी पड़ रही है इसे सृष्टि आरंभ होने का दिन भी मानते हैं।
मोक्ष की कामना से रखते हैं व्रत
एेसा माना जाता है कि स्वयं भगवान विष्णु ने आमलकी एकादशी के महातम्य का वर्णन किया है। जिसके अनुसार जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं उनके लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष में पुष्य नक्षत्र में आने वाली एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है। इस एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। आमलकी आंवले को कहते है। अक्षय नवमी की तरह इस दिन भी आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। आमलकी एकादशी में आंवले के वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इस एकादशी का कई पुराणों में भी जिक्र आता है। एेसी मान्यता है कि अमालकी एकादशी के दिन आंवले की पूजा का महत्व इसलिए है क्योंकि इस दिन सृष्टि का आरंभ मानते हैं और उसमें सबसे पहले आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति की बात कही जाती है।
आमलकी एकादशी की कथा
कहते हैं कि सृष्टि के आरंभ में विष्णु की नाभि से उत्पन्न ब्रह्मा जी के मन में जिज्ञासा हुई कि वह कौन हैं और उनकी उत्पत्ति कैसे हुई। अपने प्रश्न का उत्तर पाने के लिए वे परब्रह्म की तपस्या करने लगे। ब्रह्म जी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए। भाव विव्हल ब्रह्मा जी के आंसू उनके चरणों पर गिरे और उनसे आंवले का वृक्ष उत्पन्न हुआ। ब्रह्मा जी की भक्ति से भगवान ने कहा कि इन आंसुओं से उत्पन्न ये वृक्ष और इसके फल मुझे अति प्रिय रहेंगे। जो भी आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करेगा उसके सारे पाप समाप्त हो जाएंगे और वह मोक्ष प्राप्ति का अधिकारी होगा।
ऐसे करें पूजा
स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूं। मेरा यह व्रत सफलता पूर्वक पूरा हो इसके लिए श्री हरि मुझे अपनी शरण में रखें। संकल्प के पश्चात षोड्षोपचार सहित भगवान की पूजा करें। भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें। सबसे पहले वृक्ष के चारों की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें। पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें। इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमत्रित करें। कलश में सुगन्धी और पंच रत्न रखें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें। कलश के कण्ठ में श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं। अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुराम जी की पूजा करें। रात्रि में भगवत कथा व भजन कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें। द्वादशी के दिन प्रात: दक्षिणा के साथ परशुराम की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें। इन क्रियाओं के पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें। आंवले का वृक्ष उपलब्ध नहीं हो तो आंवले का फल भगवान विष्णु को प्रसाद स्वरूप अर्पित करें। घी का दीपक जलायें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। जो लोग व्रत नहीं करते हैं वह भी इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु को आंवला अर्पित करें और स्वयं खाएं।