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बृहस्पति देव की पूजा और आरती करने से पूर्ण होंगी मनोकामनाएं

हिंदू धर्म शास्त्रों में बृहस्पति देव का दिन गुरुवार माना गया है। ज्योतिष के अनुसार बृहस्पति ग्रह को गुरु धर्म और शिक्षा का कारक कहा जाता है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Thu, 09 Jul 2020 12:39 PM (IST)Updated: Thu, 09 Jul 2020 12:39 PM (IST)
बृहस्पति देव की पूजा और आरती करने से पूर्ण होंगी मनोकामनाएं
बृहस्पति देव की पूजा और आरती करने से पूर्ण होंगी मनोकामनाएं

हिंदू धर्म शास्त्रों में बृहस्पति देव का दिन गुरुवार माना गया है। ज्योतिष के अनुसार, बृहस्पति ग्रह को गुरु, धर्म और शिक्षा का कारक कहा जाता है। अगर किसी का यह ग्रह कमजोर होता है उसे शिक्षा के क्षेत्र में असफलता मिलती है। यही नहीं, इस ग्रह के कमजोर होने से लोगों का धार्मिक कार्यों के प्रति झुकाव भी कम रहता है। बता दें कि बृहस्पति नौ ग्रहों में सबसे भारी ग्रह माना जाता है। हिंदू धर्म में हर गुरुवार को बृहस्पति देव की आरती की जाती है।

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बृहस्पति को देवताओं के गुरु का पद दिया गया है। कहा जाता है कि गुरुवार की यानी बृहस्पति देव की पूजा पूरे विधि-विधान से की जानी चाहिए। बृहस्पति देव को पीली वस्तुएं, पीले फूल, हल्दी, पीली मिठाई, चन्ने की दाल, मुनक्का, पीले चावल चढ़ाए जाते हैं। साथ ही केले के पेड़ की भी पूजा की जाती है। बृहस्पति देव अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। अगर आप भी अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करना चाहते हैं तो आप भी श्री बृहस्पति देव की आरती कर सकते हैं। तो चलिए पढ़ते हैं बृहस्पति देव जी की आरती। ध्यान रहे कि इसका उच्चारण सही किया जाना चाहिए।

बृहस्पति देव की आरती निम्नलिखित है:

जय वृहस्पति देवा, ऊँ जय वृहस्पति देवा।

छिन छिन भोग लगा‌ऊँ, कदली फल मेवा॥

॥ ऊँ जय वृहस्पति देवा...॥

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।

जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी॥

॥ ऊँ जय वृहस्पति देवा...॥

चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।

सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता॥

॥ ऊँ जय वृहस्पति देवा...॥

तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।

प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े॥

॥ ऊँ जय वृहस्पति देवा...॥

दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।

पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी॥

॥ ऊँ जय वृहस्पति देवा...॥

सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो।

विषय विकार मिटा‌ओ, संतन सुखकारी॥

॥ ऊँ जय वृहस्पति देवा...॥

जो को‌ई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे।

जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे॥

॥ ऊँ जय वृहस्पति देवा...॥

सब बोलो विष्णु भगवान की जय।

बोलो वृहस्पतिदेव भगवान की जय॥ 


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