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चलें भगवान के पारिवारिक मंदिर श्री जगन्‍नाथ के दर्शन के लिए

जी हां पुरी के इस मंदिर में भगवान विष्‍णु श्री कृष्‍ण के रूप में अपने बड़े भाई और बहन के साथ स्‍थापित हैं।

By Molly SethEdited By: Published: Thu, 05 Apr 2018 10:52 AM (IST)Updated: Thu, 05 Apr 2018 10:52 AM (IST)
चलें भगवान के पारिवारिक मंदिर श्री जगन्‍नाथ के दर्शन के लिए
चलें भगवान के पारिवारिक मंदिर श्री जगन्‍नाथ के दर्शन के लिए

हुई खजाने की गणना

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4 अप्रेल 2018 को पूरी के श्री जगन्‍नाथ मंदिर में प्रशासन ने उनका रत्नभंडार खोलने का निर्णय लिया। श्रीमंदिर की सुरक्षा के दृष्टिकोण से राज्य सरकार ने रत्नभंडार को खोलने एवं उसकी छत व दीवारों की जांच करने की अनुमति दी थी। रत्नभंडार की जांच के दौरान मंदिर में आम दर्शन के बंद रखा गया। खबर के मुताबिक रत्नभंडार में तकरीबन 367 प्रकार के रत्नजड़ति आभूषण हैं। सोने के आभूषणों की संख्या 454 एवं चांदी के आभूषणों की संख्या 293 प्रकार की है। साल 1978 के मई महीने में श्री मंदिर के रत्नभंडार को खोला गया था और तकरीबन 70 दिनों की गिनती के बाद रिपोर्ट तैयार की गई थी।

जगत के स्‍वामी का मंदिर

पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर एक हिन्दू मंदिर है, जो भगवान जगन्नाथ यानि श्रीकृष्ण को समर्पित है। यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है। इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक गिना जाता है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं।

मंदिर का निर्माण और इतिहास

गंग वंश के हाल ही में मिले ताम्र पत्रों से यह पता चलता है, कि वर्तमान मंदिर के निर्माण कार्य को कलिंग राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने आरम्भ कराया था। मंदिर के जगमोहन और विमान भाग इनके शासन काल 1078 - 1148 के दौरान बने थे। फिर सन 1197 में जाकर ओडिआ शासक अनंग भीम देव ने इस मंदिर को वर्तमान रूप दिया था। मंदिर में जगन्नाथ अर्चना सन 1558 तक होती रही। इसी साल अफगान जनरल काला पहाड़ ने ओडिशा पर हमला किया और मूर्तियां तथा मंदिर के ऊपर हमले के बाद पूजा बंद करा दी, तथा विग्रहो को चिलिका झील मे स्थित एक द्वीप में गुप्‍त रूप से रखा गया। बाद में, रामचंद्र देब के खुर्दा में स्वतंत्र राज्य स्थापित करने पर, मंदिर और इसकी मूर्तियों की पुन: स्‍थापना हुई। मंदिर 400,000 वर्ग फुट में फैला है और चहारदीवारी से घिरा है। 

मंदिर का स्‍थापत्‍य

कलिंग शैली से बने इस मंदिर की स्थापत्य कला और शिल्प आश्चर्यजनक प्रयोगों से परिपूर्ण है, यह मंदिर, भारत के भव्यतम स्मारक स्थलों में से एक माना जाता है। श्री जगननाथ का मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है, जिसके शिखर पर विष्णु का श्री सुदर्शन चक्र, आठ आरों का चक्र लगा है। इसे नीलचक्र भी कहते हैं।  यह अष्टधातु से निर्मित है। मंदिर का मुख्य ढांचा एक 214 फीट ऊंचे पत्‍थर के चबूतरे पर बना है। इसके भीतर आंतरिक गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। यह भाग इसे घेरे हुए अन्य भागों की अपेक्षा अधिक प्रभाव वाला है। इससे लगे घेरदार मंदिर की पिरामिडाकार छत और लगे हुए मण्डप, अट्टालिकारूपी मुख्य मंदिर के निकट होते हुए ऊंचे होते गये हैं। मंदिर की मुख्य मढ़ी यानि भवन एक 20 फीट ऊंची दीवार से घिरा हुआ है तथा दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरती है। एक भव्य सोलह किनारों वाला एकाश्म स्तंभ, मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थित है। इसका द्वार दो सिंहों द्वारा रक्षित है।


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