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इन 10 ज्‍योर्तिलिंगों में शिव दर्शन से मिलता पुण्‍य

कहते हैं कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है और दैहिक, दैविक और भौतिक ताप नष्ट हो जाते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 14 Apr 2017 02:56 PM (IST)Updated: Mon, 12 Mar 2018 10:21 AM (IST)
इन 10 ज्‍योर्तिलिंगों में शिव दर्शन से मिलता पुण्‍य
इन 10 ज्‍योर्तिलिंगों में शिव दर्शन से मिलता पुण्‍य

पुराणों के अनुसार शिवजी जहां-जहां खुद प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन जगहों भगवान शिव स्वयं विराजमान हैं इन जगहों के दर्शन से सभी पाप खंडित हो जाते हैं।

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सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥1॥ 

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्। सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥2॥ 

वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे। हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥3॥ 

एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रात: पठेन्नर:। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥4॥

हम भगवान शिव के उन्हीं 12 स्थानों के बारे में बता रहे हैं जिनके दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है। 

सोमनाथ: गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को इस पृथ्वी का भी पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। बताया जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी। इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। इसे अब तक 17 बार नष्ट किया गया है और हर बार इसका पुनर्निर्माण किया गया।मल्लिकार्जुन: यह आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर का महत्व भगवान शिव के कैलाश पर्वत के समान कहा गया है। कहते हैं कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है और दैहिक, दैविक और भौतिक ताप नष्ट हो जाते हैं।

महाकालेश्वर: यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन नगर में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषता है कि ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। यहां की भस्मारती विश्व भर में प्रसिद्ध है। लोगों का मानना है कि ये ही उज्जैन की रक्षा कर रहे हैं।

ओंकारेश्वर: यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में नर्मदा किनारे मान्धाता पर्वत पर स्थित है। बताया जाता है कि इनके दर्शन से पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति होती है। यह ज्योतिर्लिंग औंकार अर्थात ऊं का आकार लिए हुए है, इस कारण इसे ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है।

केदारनाथ: यह ज्योतिर्लिंग हिमालय की केदारनाथ नामक चोटी पर स्थित है। यह अलकनंदा व मंदाकिनी नदियों के तट पर स्थित है। बाबा केदारनाथ का मंदिर बद्रीनाथ के मार्ग में स्थित है। केदारनाथ का वर्णन स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में भी मिलता है।

भीमाशंकर: भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे जिले में सह्याद्रि नामक पर्वत पर स्थित है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के विषय में मान्यता है कि जो भक्त श्रृद्धा से इस मंदिर के प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद दर्शन करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं।

विश्वनाथ: यह शिवलिंग काशी में स्थित है। बताया जाता है कि हिमालय को छोड़कर भगवान शिव ने यहीं स्थायी निवास बनाया था। ऐसा कहा गया है कि प्रलय काल का इस नगरी में कोई असर नहीं पड़ता। इसलिए सभी धर्म स्थलों में काशी का अत्यधिक महत्व कहा गया है।

त्र्यंबकेश्वर: यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक से 30 किमी पश्चिम में गोदावरी नदी के करीब स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग के सबसे अधिक निकट ब्रह्मागिरि नाम का पर्वत है। इसी पर्वत से गोदावरी नदी शुरू होती है। भगवान शिव का एक नाम त्र्यंबकेश्वर भी है।

बैजनाथ: झारखंड के संथाल परगना के दुमका नामक जनपद में यह शिवलिंग है। बताया जाता है कि रावण ने तप के बल से शिव को लंका ले जा रहा था, लेकिन रास्ते में व्यवधान आ जाने से शर्त के अनुसार शिव जी यहीं स्थापित हो गए।

रामेश्वर: यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु राज्य के रामनाथ पुरं नामक स्थान में स्थित है। बताया जाता है कि लंका पर चढ़ाई से पहले भगवान राम ने शिवलिंग की स्थापना की थी। भगवान राम के द्वारा स्थापित होने के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग को भगवान राम का नाम रामेश्वरम दिया गया है।

नागेश्वर: गुजरात में द्वारकापुरी से 17 मील दूर यह ज्योतिलिंग अवस्थित है। कहते हैं कि भगवान की इच्छानुसार ही इस ज्योतिलिंग का नामकरण किया गया है। बताया जाता है कि जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यहां दर्शनों के लिए आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

धुश्मेश्वर: महाराष्ट्र राज्य में दौलताबाद से 12 मील दूर बेरुल गांव में इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की गई थी। इसे घृसणेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। दूर-दूर से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं और आत्मिक शांति प्राप्त करते हैं।


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