Move to Jagran APP

उज्जैन स्थित प्राचीन वाग्देवी मंदिर में स्याही से होता है 'नील सरस्वती' का अभिषेक

नील सरस्वती के रूप में विराजमान हैं विद्यादायिनी जहां वसंत पंचमी के दिन विशेष पूजन के साथ स्याही से किया जाता है अभिषेक। जानेंगे मध्य प्रदेश के प्राचीन वाग्देवी मंदिर के बारे में

By Priyanka SinghEdited By: Published: Thu, 30 Jan 2020 09:03 AM (IST)Updated: Thu, 30 Jan 2020 09:03 AM (IST)
उज्जैन स्थित प्राचीन वाग्देवी मंदिर में स्याही से होता है 'नील सरस्वती' का अभिषेक
उज्जैन स्थित प्राचीन वाग्देवी मंदिर में स्याही से होता है 'नील सरस्वती' का अभिषेक

धर्मधानी उज्जयिनी में ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी माता सरस्वती का प्राचीन मंदिर है। वाग्देवी मंदिर में देवी नील सरस्वती के रूप में विराजमान है। वसंत पंचमी पर विद्धार्थी स्याही से उनका अभिषेक करते हैं और विशेष पूजन होता है।

loksabha election banner

मंदिर में वसंत पंचमी की धूम

यहां वसंत पंचमी का त्योहार धूमधाम से मनता है। विद्धार्थियों के अलावा देवी का दर्शन-पूजन करने भारी भीड़ जुटती है। सिंहपुरी के समीप बिजासन पीठ के सामने स्थित इस मंदिर में परीक्षा के दिनों में भी बड़ी संख्या में विद्यार्थी नील सरस्वती के दर्शन करने आते हैं। वसंत पंचमी पर भी भीड़ बढ़ जाती है क्योंकि कुछ दिनों बाद ही परीक्षाएं भी शुरू होने वाली होती हैं। छात्र देवी का स्याही से अभिषेक कर परीक्षा में सफलता की प्रार्थना करते हैं।

मान्यता है नील सरस्वती का स्याही से अभिषेक पूजन करने से मन पढ़ाई में लगता है, ध्यान केंद्रित करने का संकल्प बलवती हो जाता है और सफलता मिलती है। छात्र उच्च अंकों से उत्तीर्ण होते हैं। इसी मान्यता के चलते स्थानीय के साथ दूरदराज से भी स्वजन बच्चों को लेकर माता के दरबार में आते हैं।

सनातन धर्म के 16 आधारभूत संस्कारों में से एक विद्यारंभ संस्कार को विशेष रूप से वसंत पंचमी तिथि पर किए जाने की मान्यता है। संगीत की गुरू-शिष्य परंपरा में भी वसंत पंचमी का विशेष महत्व है।

उज्जैन के इस प्राचीन मंदिर में वसंत पंचमी पर वाग्देवी को वासंती फूलों के साथ नील कमल व अष्टर के फूल अर्पित करने का विधान है। शास्त्रों में इसका उल्लेख मिलता है। हालांकि, फूलों के अर्क का स्थान अब नीली स्याही ने ले लिया है। शास्त्रों में कहीं-कहीं माता सरस्वती को नीलवर्णी कहा गया है। भगवान विष्णु से आदेशित होकर नील सरस्वती भगवान ब्रम्हा के साथ सृष्टि के ज्ञान कल्प को बढ़ाने का दायित्व संभाले हुए हैं।

इसका उल्लेश श्रीमद देवी भागवत में मिलता है। नील सरस्वती के पूजन में नील कमल व अष्टर के नीले फूलों का उपयोग इसी कारण होता है। इन फूलों के अर्क से देवी का अभिषेक किया जाता है। समय के साथ इसमें परिवर्तन आया और फूलों के अर्क का स्थान नीली स्याही ने ले लिया। 

परमार कालीन है मूर्ति

नील सरस्वती की यह मूर्ति अत्यंत दर्शनीय है। विक्रम विश्वविद्यालय के पुरातत्व अध्ययन शाला के अधीक्षक डॉ आरके अहिरवार के अनुसार परमार कालीन मूर्ति करीब 1000 साल पुरानी है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.