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यहां मां का कटा सिर उनके हाथों में है, उनकी गर्दन से रक्त की धारा प्रवाहित होती रहती हैै

इस मंदिर में विशेष पूजा होती है। मां को बकरे की बलि जिसे स्थानीय भाषा में पाठा कहा जाता है। यह परंपरा सदियों से यहां जारी है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 19 May 2016 11:39 AM (IST)Updated: Fri, 11 Aug 2017 10:37 AM (IST)
यहां मां का कटा सिर उनके हाथों में है, उनकी गर्दन से रक्त की धारा प्रवाहित होती रहती हैै
यहां मां का कटा सिर उनके हाथों में है, उनकी गर्दन से रक्त की धारा प्रवाहित होती रहती हैै

छिन्नमस्तिका जयंती 20.05.2016 विशेष...

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पहाड़, नदी और जंगल से घिरे इस मंदिर में अध्यात्म ही नहीं बसता बल्कि बसते हैं कई धार्मिक संस्कार। जिनका निर्वाहन पूरी श्रद्धा से किया जाता है। हम बात कर रहे हैं झारखंड के रजरप्पा मंदिर की। जहां विराजित हैं 'मां छिन्नमस्तिका देवी' जी। मां छिन्नमस्तिका यानी जिसमें देवी का सिर छिन्न दिखाई दे।

मां का यह स्वरूप देखने में भयभीत भी करता है। झारखंड के रामगढ़ से रजरप्पा की दूरी 28 किमी की है। यहां मां का कटा सिर उन्हीं के हाथों में है। और उनकी गर्दन से रक्त की धारा प्रवाहित होती रहती है।

जो उनके दोनों और खड़ी दोनों सहायिकाओं के मुंह में जाता है। मां के इसी रूप को मनोकामना देवी के रूप के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों में रजरप्पा मंदिर का उल्लेख शक्तिपीठ के रूप में मिलता है।

वैसे, यहां कई मंदिर का निर्माण किया गया जिनमें 'अष्टामंत्रिका' और 'दक्षिण काली' प्रमुख हैं। यहां आने से तंत्र साधना का अहसास होता है। यही कारण है कि असम का कामाख्या मंदिर और रजरप्पा के छिन्नमस्तिका मंदिर में समानता दिखाई देती है।

मां के इस मंदिर को 'प्रचंडचंडिके' के रूप से भी जाना जाता है। मंदिर के चारों और कल-कल करती दामोदर और भैरवी नदी हैं। मां के इस आशियाने को ठंडक प्रदान करती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस स्थान को मां का अंतिम विश्राम स्थल भी माना गया है।

यहां कतार से बनी महाविद्या के मंदिर मां के रूप और रहस्य को और बढ़ा देती हैं। इन मंदिरों में तारा, षोडिषी, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला, कमला, मतंगी और घुमावती मुख्य हैं। मंगलवार और शनिवार को रजरप्पा मंदिर में विशेष पूजा होती है। मां को बकरे की बलि जिसे स्थानीय भाषा में पाठा कहा जाता है। यह परंपरा सदियों से यहां जारी है।

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