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तांत्रिक परम्परा में मात्र महाकाल को ही दक्षिण मूर्ति पूजा का महत्व प्राप्त है

भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से स्वयंभू दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर का स्थान प्रमुख है। तांत्रिक परम्परा में मात्र महाकाल को ही दक्षिण मूर्ति पूजा का महत्व प्राप्त है। इसका वर्णन महाभारत, स्कन्दपुराण, वराहपुराण, नृसिंह पुराण, शिवपुराण, भागवत, शिवलीलामृत आदि ग्रंथों में आता है। वर्तमान मंदिर तीन भाग में सबसे नीचे

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 29 Jun 2015 03:44 PM (IST)Updated: Mon, 29 Jun 2015 03:51 PM (IST)
तांत्रिक परम्परा में मात्र महाकाल को ही दक्षिण मूर्ति पूजा का महत्व प्राप्त है

भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से स्वयंभू दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर का स्थान प्रमुख है। तांत्रिक परम्परा में मात्र महाकाल को ही दक्षिण मूर्ति पूजा का महत्व प्राप्त है। इसका वर्णन महाभारत, स्कन्दपुराण, वराहपुराण, नृसिंह पुराण, शिवपुराण, भागवत, शिवलीलामृत आदि ग्रंथों में आता है। वर्तमान मंदिर तीन भाग में सबसे नीचे श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग’ उसके ऊपर ’श्री ओकारेश्वर’ एवं सबसे ऊपर श्री नागचंद्रेश्वर है। श्री महाकालेश्वर मंदिर के दक्षिण दिशा में श्री वृद्धमहाकालेश्वर एवं श्री सप्तऋषि के मंदिर हैं।

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इस मंदिर का वर्णन महाभारत, स्कन्द पुराण, वराहपुराण, नृसिंह पुराण, शिव पुराण, भागवत्, शिवलीलामृत आदि ग्रन्थां में तथा कथासरित्सागर, राजतरंगिणी, कादम्बरी, मेघदूत, रघुवंश आदि काव्यां में इस देवालय का अत्यन्त सुन्दर वर्णन दिया गया है। अलमरूनी व फरिश्ता ने भी इस देवालय का सुन्दर वर्णन किया है। पुराणकारां के कथनानुसार विश्वकर्मा ने श्री महाकालेश्वर के निवासार्थ एक भव्य मन्दिर का निर्माण किया, चारां ओर एक परकोटा खिंचवाया। उस मन्दिर के महाद्वार पर एक बड़ा भारी घंटा स्वर्ण श्रृंखला से लटकता था, और मन्दिर में सर्वत्र रत्नखचित दीपस्तम्भ थे जिन पर रत्नजड़ित दीप प्रकाशित होते थे।

श्री महाकालेश्वर मंदिर के नीचे सभा मण्डप से लगा हुआ एक कुण्ड है जो ’कोटितीर्थ’ के नाम से प्रसिद्ध है। सभा मण्डप मे एक राम मंदिर है। जिसके पीछे ’अवंतिका देवी’ की प्रतिमा है। श्री महाकालेश्वर मंदिर में प्रातः 4 बजे होने वाली भस्मारती विशेष दर्शनीय है। भस्मारती में सम्पूर्ण जीवन के जन्म से लेकर मोक्ष तक के दर्शन की कल्पना की जा सकती है। यह भस्म निरन्तर प्रज्वलित धूनी से तैयार होती है। मंदिर खुलने का समय प्रातः 4 बजे से रात्रि 11 बजे तक है। त्रिलोकी तीन अवतारों में मृत्युलोक में श्री महाकालेश्वर का अद्वितीय अवतार हैं।

मालववंशीय विक्रमादित्य के विषय में जो आख्यान से प्रतीत होता है इस राजा ने महाकालेश्वर का स्वर्ण शिखर-सुशोभित बड़ा मन्दिर बनवाया। उसके लिए अनेक अलंकार तथा चँवर, वितानादि राजचिन्ह समर्पित किए। इसके बाद ई. सं. ग्वारहवीं शताब्दी में इस मन्दिर का जीर्णाेद्धार परमार वंश के भोजराजा ने करवाया था। ई. सं.1265 में दिल्ली के सुलतान शमसुद्दीन इल्तुतमिश ने इस मन्दिर को तुड़वाकर महाकाल का लिंग कोटितीर्थ में फिकवा दिया।

इस घटना के 500 वर्षां पश्चात् जब उज्जैन पर राणोजीराव शिन्दे का अधिकार हुआ उस समय उनके दीवान रामचन्द्रबाबा ने उसी स्थान पर महाकालेश्वर का मन्दिर फिर से बनवाया जो आज भी स्थित है। मन्दिर के अन्दर श्री महाकालेश्वर के पश्चिम, उत्तर और पूर्व की और क्रमशः गणेश, गिरिजा और षडानन की मूर्तियाँ स्थापित हैं। दक्षिण की ओर गर्भगृह के बाहर नंदिकेश्वर विराजमान हैं। लिंग विशाल है और सुन्दर नागवेष्टित रजत जलाधारी में विराजमान हैं। बारह ज्योतिर्लिंगां में महाकालेश्वर ही दक्षिणमुखी मन्दिर है। महाकालेश्वर के गर्भगृह के ऊपर के मंजिल पर ओंकारेश्वर विराजमान हैं। श्री महाकालेश्वर के मन्दिर के दक्षिण दिशा में वृद्धकालेश्वर महाकाल और सप्तऋषि का मन्दिर है। महाकालेश्वर के ऊपर जो ओंकारेश्वर जी का मन्दिर है उसके समीप आसपास षटांगण मे स्वप्नेश्वर महादेव, बद्रीनारायण जी, नृसिंह जी, साक्षी गोपाल तथा अनादि कालेश्वर के भी मन्दिर हैं।

महाकालेश्वर के सभामण्डप में ही एक राम मन्दिर है। राम मन्दिर के पीछे अवन्तिका देवी की प्रतिमा है जो इस अवन्तिका की अधिष्ठात्री देवी हैं। नागपंचमी पर महाकाल मन्दिर के ऊपर विराजित नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए हज़ारों श्रद्धालु यहाँ आते हैं। भगवान महाकालेश्वर की आरती दिन में पाँच बार होती है-1. पट खुलने – बंद होने का समय। 2. आरती समय। 3. विशिष्ट कार्यक्रम श्रावणमास के चारों सोमवारों के दिन नगर में महाकालेश्वर की भव्य रजत प्रतिमा की सवारी निकाली जाती है जिसमें नगर के हर धर्म के लोग अपना सहयोग देते हैं। सवारी मन्दिर से निकलकर पहले शिप्रा तट पर जाती है। वहाँ पूजन के पश्चात नगर के प्रमुख मार्गांे से होते हुए यथा स्थान पहुँच जाती है। पाँचवीं शाही एवं अंतिम सवारी मार्गो में निकाली जाती है। श्रावण मास में कांवड़ यात्रियों की सुविधा के कारण विशेष व्यवस्था होती है।

महाकालेश्वर मंदिर मे अभिषेक एवं पूजन व्यवस्था महाकाल मंदिर मे प्रबंध समिति द्वारा विशेष दर्शन व्यवस्था की सुविधा शुल्क निर्धारित है। जिसका शुल्क समय-समय पर मंदिर समिति के निर्णयानुसार निर्धारित होता है।


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