अपनी अदभुद स्थापत्य शैली के चलते विशेष है सिंगापुर की चूलिया मस्जिद
आइये आज आपको ले चलते हैं सिंगापुर स्थित चूलिया मस्जिद जो अपने विभिन्न स्थापत्य शैलियों के मिश्रण का अनोखा उदाहरण है।
मस्जिद के कई नाम
सिंगापुर कर की चूलीया मस्जिद कई नाम है। जैसे इसे मुख्य रूप से मस्जिद जामे कहा जाता है। इसके अन्य नाम जामे मॉस्क और पेरिया पल्ली यानि विशाल मस्जिद, भी हैं, हांलाकि ये चूलिया मस्जिद के नाम से ही दुनिया भर में प्रसिद्ध है। ये सिंगापुर में बनी शुरूआती मस्जिदों में अग्रणी मानी जाती है। चाइना टाउन डिस्ट्रिक्ट के केंद्र में साउथ ब्रिज रोड पर ये मंदिर मरिअम्मन मंदिर के पास बनी हुई है। इस मस्जिद का निर्माण भारत से व्यापार आदि करने आये तमिल मुस्लिम समुदाय के लोगों ने करवाया था। मुख्य रूप से चीनी लोगों के प्रभाव वाले क्षेत्र में बनी चूलिया मस्जिद के पीछे की गली मस्जिद स्ट्रीट कहलाती है।
मस्जिद के निर्माण की कहानी
बताते हैं इस मस्जिद का निर्माण चूलिया मुस्लिम समुदाय ने करवाया जो दक्षिण भारत में कृष्णा नदी के तट पर बसे तमिल मुसलमानों का समुदाय है। इसीलिए इसका नाम चूलिया मस्जिद पड़ा। ये लोग जब सिंगापुर आये तो इन्होंने जल्दी ही तीन मस्जिदों का निर्माण कार्य शुरू किया, जिसमें से मस्जिद जामे सबसे पहले बन कर तैयार हुई। बाकी दो में से एक नाम अल अबरार मस्जिद और दूसरी का नागोरे दरगाह है। शुरूआती दौर में इस स्थान पर अंसार सैब नाम के शख्स ने 1826 में यहां एक मस्जिद बनवाई थी। उसी जगह पर 1831 में वर्तमान चूलिया मस्जिद बनाई गई। हालाकि 1835 में जब मस्जिद बन कर तैयार हुई तो इसका अधिकाश ढांचा पुरानी मस्जिद वाला ही रहा। 1996 में मस्जिद का पुर्नउद्धार किया गया।
मंदिर के स्थापत्य में अनोखा मेल
उपासक मस्जिद में दो मीनारों से बने एक गेटवे के माध्यम से मस्जिद में प्रवेश करते हैं। प्रवेश द्वार का अग्रभाग एक छोटे चार मंजिल के महल का आभास देता है जबकि अगल बगल की मीनारें सात मंजिल की हैं जिनके शिखर पर खूबसूरत गुंबद हैं। प्रत्येक मीनार पर महराबदार मोटिफ हैं जिनके बीच के स्थान पर बेहतरीन चित्रकारी की गई है। मुख्य द्वार के ऊपरी हिस्से पर छोटा सा गेट बना है और खिड़कियों पर क्रास की आकृति है। मस्जिद में एक विशाल मुख्य हाल और एक मुख्य पूजा भवन है। मस्जिद के अंदर ही सिंगापुर में मुस्लिमों के एक धार्मिक गुरू मोहम्मद सलीह वालिनावा का पवित्र स्थान भी मौजूद है। उनकी कब्र भी मस्जिद के र्निमाण के पूर्व यहीं थी। मुख्य भवन से ऊपर की ओर सीढ़ियां जाती हैं जो उस बालकनी तक जाती है जहां से अजान दी जाती है। चौकोर बने पूजा ग्रह का प्रवेश द्वार आर्च्ड आकार में बना है। सारी खिड़कियां अर्द्ध गोलाकार बनी हैं। जिनके आसपास चीनी शैली के करे चमकदार टाइल्स लगे हैं। मुख्य हाल खुला और हवादार है जिसकी छत टस्कन स्तंभों की दोहरी पंक्ति पर टिकी है। कक्ष के दोनों ओर खुले बरामदे हैं। खास बात ये की मस्जिद का स्थापत्य उस दौर की स्पष्ट झलक दिखाता है, जबकि उसका प्रवेश द्वार दक्षिण भारतीय शैली पर आधारित है। वहीं पूजा कक्ष पर सिंगापुर के प्रथम प्रशिक्षित आर्किटेक्ट जॉर्ज ड्रमगोले कोलमन की निओ क्लासिकल शैली की छाप नजर आती है। यही अनोखापन चूलिया मस्जिद को विशेष दर्जा प्रदान करता है।