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सावन में खास है गढ़मुक्तेश्वर मंदिर का दर्शन, शिव के गणों से जुड़ा है रिश्ता

उत्तरप्रदेश के हापुड़ के निकट बना शिव जी का प्रसिद्घ मंदिर है गढ़मुक्तेश्वर, इसके साथ शिव गणों की अदभुद कथा जुड़ी हुर्इ है।

By Molly SethEdited By: Published: Fri, 03 Aug 2018 03:09 PM (IST)Updated: Sat, 04 Aug 2018 09:40 AM (IST)
सावन में खास है गढ़मुक्तेश्वर मंदिर का दर्शन, शिव के गणों से जुड़ा है रिश्ता
सावन में खास है गढ़मुक्तेश्वर मंदिर का दर्शन, शिव के गणों से जुड़ा है रिश्ता

सांस्कृतिक महत्व है इस स्थान का 

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गढ़मुक्तेश्वर, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के हापुड़ जिले के पास स्थित है आैर इसे गढ़वाल राजाओं ने बसाया था। कहते हैं कि गंगा नदी के किनारे बसा यह शहर गढ़वाल राजाओं की राजधानी था। बाद में इसपर पृथ्वीराज चौहान का अधिकार हो गया था। गढ़ मुक्तेश्वर मेरठ से 42 किलोमीटर दूर स्थित है और गंगा नदी के दाहिने किनारे पर बसा है। हालाकि आधुनिक विकास की दृष्टि से देखा जाए तो गढ़ मुक्तेश्वर सबसे पिछड़ी तहसील मानी जाती है, किन्तु सांस्कृतिक दृष्टि से ये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यहां सावन के महीने में शिव भक्तों का तांता लगा रहता है आैर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर गंगा स्नान में विशाल मेला लगता है।

शिवगणों से जुड़ी है कहानी 

शिवपुराण में इस स्थान के बारे में एक महत्वपूर्ण कथा बतार्इ गर्इ है। इस कथा के अनुसार इस स्थान पर अभिशप्त शिवगणों की पिशाच योनि से मुक्ति हुई थी, इसलिए इस तीर्थ का नाम 'गढ़ मुक्तेश्वर' अर्थात्गणों को मुक्त करने वाले ईश्वर के तौर पर ये प्रसिद्ध हुआ। भागवत पुराण व महाभारत के अनुसार त्रेता युग में यह कुरु राजधानी हस्तिनापुर का भाग था। 

प्राचीन शिव मंदिर 

मुक्तेश्वर शिव का प्राचीन शिवलिंग आैर मन्दिर कारखण्डेश्वर यहीं पर है। काशी, प्रयाग, अयोध्या आदि तीर्थों की तरह 'गढ़ मुक्तेश्वर' भी पुराणों में बताये गए पवित्र तीर्थों में से एक है। शिवपुराण के अनुसार इस स्थान का प्राचीन नाम शिव वल्लभ यानि शिव का प्रिय भी है। जिसे बाद में भगवान मुक्तीश्वर, जो शिव का ही एक रूप है, के दर्शन करने से अभिशप्त शिवगणों की पिशाच योनि से मुक्ति हुई थी, इसलिए यह गढ़ मुक्तेश्वर के नाम से विख्यात हो गया। पुराण में इस बारे में कहा गया है, "गणानां मुक्तिदानेन गणमुक्तीश्वर: स्मृत:"।

कांवड़ यात्रा से जुड़े हैं तार 

सावन में होने वाली कांवड़ यात्रा से भी इस स्थान का गहरा संबंध है। मान्यता है कि भगवान परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लेकर पुरामहादेव मंदिर में शिवलिंग का अभिषेक किया था। तभी से कांवड़ की परंपरा शुरू हुर्इ थी।   


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