चैत्र नवरात्रि: भारत के प्रमुख देवी तीर्थ जहां उमड़ती है माता के भक्तों की भीड़
नवरात्रि माता की आराधना का उत्सव होता है ऐसे में हम आपको बता रहे हैं मां के ऐसे दो स्थानों के बारे में जहां इस अवसर पर सबसे अधिक श्रद्धालु आते हैं।
मैहर माता
एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल मैहर मध्य प्रदेश के सतना जिले का एक छोटा सा नगर है। मैहर में शारदा मां का प्रसिद्ध मन्दिर है जो कैमूर तथा विंध्य की पर्वत श्रेणियों पर तमसा नदी के तट पर त्रिकूट पर्वत की पर्वत मालाओं के बीच 600 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यह ऐतिहासिक मंदिर 108 शक्ति पीठों में से एक है। अगर ऐतिहासिक कथाओं पर विश्वास करें तो प्रसिद्ध ऐतिहासिक नायक आल्हा और ऊदल दोनों भाई मां शारदा के अनन्य उपासक थे। यहां पर्वत की तलहटी में आल्हा का तालाब व अखाड़ा आज भी विद्यमान है। वैसे तो यहां प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी आते हैं किंतु वर्ष के दोनों नवरात्रों में यहां मेला लगता है जिसमें लाखों भक्तों की भीड़ मैहर आती है। इस स्थान पर मां शारदा के बगल में स्थापित नरसिंहदेव जी की पाषाण मूर्ति आज से लगभग 1500 वर्ष पुरानी है। यह कहा जाता है कि जब शिव मृत देवी का शरीर ले जा रहे थे, उनका हार इस जगह पर गिर गया और इसलिए नाम मैहर यानि माई का हार पड़ गया।
वैष्णो माता
इसी तरह का एक अन्य स्थान वैष्णो देवी मंदिर है, जो आद्य शक्ति को समर्पित एक पवित्र मंदिर माना जाता है। ये भारत के जम्मू और कश्मीर में पहाड़ी पर स्थित है। हिंदू धर्म में वैष्णो देवी, जो माता रानी और वैष्णवी के रूप में भी जानी जाती हैं, देवी मां का अवतार हैं। यह मंदिर, जम्मू जिले में कटरा नगर से लगभग 12 किलोमीटर दूर 5,200 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। हर साल लाखों तीर्थयात्री मंदिर का दर्शन करते हैं। कहते हैं कि रामायण काल में राम ने त्रिकुटा से उत्तर भारत में स्थित इन्हीं माणिक पहाड़ियों की त्रिकुटा श्रृंखला में अवस्थित गुफ़ा में ध्यान में लीन रहने के लिए कहा था। उसी समय रावण के विरुद्ध श्री राम की विजय के लिए मां ने नवरात्रि मनाने का निर्णय लिया। इसलिए भक्त, नवरात्रि के 9 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते हैं। श्री राम ने वचन दिया था कि समस्त संसार द्वारा मां वैष्णो देवी की स्तुति गाई जाएगी, त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जाएंगी।
विंध्याचल माता मंदिर
विंध्याचल में मिर्जापुर से 8 किमी दूर गंगा नदी के तट पर विंध्यवासिनी देवी का मंदिर स्थित है। कहते हैं यहां पर मां लोकहिताय, महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती का रूप धारण करती हैं। विंध्यवासिनी देवी विंध्य पर्वत पर स्थित मधु तथा कैटभ नामक असुरों का नाश करने वाली भगवती यंत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। कहा जाता है कि जो मनुष्य इस स्थान पर तप करता है, उसे अवश्य सिध्दि प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी इस क्षेत्र का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता। यहां पर संकल्प मात्र से उपासकों को सिध्दि प्राप्त होती है। इस कारण यह क्षेत्र सिध्द पीठ के रूप में भी विख्यात है। साथ ही यहां पे स्वयं शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ इस कारण यह शक्तिस्थल की नाम से भी प्रसिद्ध है। ये भी मान्यता है कि शारदीय व वासंतिक नवरात्र में मां भगवती नौ दिनों तक मंदिर की छत के ऊपर पताका में विराजमान रहती हैं। सोने के इस ध्वज की विशेषता यह है कि यह सूर्य चंद्र पताकिनी के रूप में जाना जाता है। यह निशान सिर्फ मां विंध्यवासिनी देवी के पताका में ही होता है।