जानें, कैसे एक ही रात में मंदिर पूरब से पश्चिम की और घूम गया
भगवान सूर्य की उपासना कई देशों में की जाती है। भारत में भी अनेक सूर्य मंदिर देखने को मिल जाते हैं। लेकिन आज आप जिस सूर्य मंदिर के बारे में पढ़ेंगे वो अपनी कलात्मक भव्यता के साथ-साथ एक विशिष्ट कारण से प्रसिद्ध है।
भगवान सूर्य की उपासना कई देशों में की जाती है। भारत में भी अनेक सूर्य मंदिर देखने को मिल जाते हैं। लेकिन आज आप जिस सूर्य मंदिर के बारे में पढ़ेंगे वो अपनी कलात्मक भव्यता के साथ-साथ एक विशिष्ट कारण से प्रसिद्ध है।
करीब एक सौ फीट ऊँची यह सूर्य मंदिर बिहार के औरंगाबाद के देव में अवस्थित है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह डेढ़ लाख वर्ष पुरानी है। कोर्णाक के सूर्य मंदिर की तरह इसमें भी रथ की आकृति दिखाई देती है।मंदिर में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल सूर्य, मध्याचल सूर्य और अस्ताचल सूर्य के रूप में विद्यमान है। सम्पूर्ण भारतवर्ष में यह इकलौता सूर्य मंदिर है जिसका मुख पश्चिम दिशा की ओर है. काले और भूरे पत्थरों की अनोखी शिल्पकारी से बना यह सूर्य मंदिर उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर से मिलती-जुलती है. इस मंदिर का उल्लेख सूर्य पुराण में भी है।
प्रचलित कथाओं के अनुसार एक बार एक बर्बर लुटेरा दल सहित काला पहाड़ मूर्तियों एवं मंदिरों को तोड़ता हुआ देव अवस्थित इस सूर्य मंदिर के समीप पहुँचा और उसे तोड़कर लूटने का यत्न करने लगा। मंदिर के पुजारियों ने उससे इस मंदिर को न तोड़ने की याचना की। इस पर वह लुटेरा अट्टाहस करते हुए बोला कि, ‘यदि सचमुच तुम्हारे भगवान में कोई शक्ति है तो मैं रात भर का समय देता हूं। अगर इस मंदिर का मुँह पूरब से पश्चिम हो जाय तो मैं इसे नहीं तोडूँगा।
पुजारियों ने इसे स्वीकार कर लिया। पूरी रात वे भगवान की स्तुति करते रहे। सुबह हर किसी ने देखा कि सचमुच मंदिर का मुँह पूरब से पश्चिम की ओर हो गया था। तब से यह मंदिर पश्चिमाभिमुख ही है। इस कारण से भारत के सूर्य मंदिरों में इस मंदिर का विशिष्ट स्थान है।