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अष्टविनायक मेें नहीं है नाम पर फिर भी कहलाता है सिद्घपीठ, मुंबर्इ का सिद्घिविनायक गणेश मंदिर

मुंबर्इ के सिद्घिविनायक मंदिर की प्रसिद्घी भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है, गणेश उत्सव में यहां श्रद्घालुआें का तांता लगा रहता है।

By Molly SethEdited By: Published: Fri, 14 Sep 2018 11:34 AM (IST)Updated: Fri, 14 Sep 2018 11:35 AM (IST)
अष्टविनायक मेें नहीं है नाम पर फिर भी कहलाता है सिद्घपीठ, मुंबर्इ का सिद्घिविनायक गणेश मंदिर
अष्टविनायक मेें नहीं है नाम पर फिर भी कहलाता है सिद्घपीठ, मुंबर्इ का सिद्घिविनायक गणेश मंदिर

गणपति पूजा का विशेष महत्व 

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यूं तो सिद्घिविनायक गणपति के भक्त दुनिया के हर कोने में हैं लेकिन महाराष्ट्र में इनकी तादात सबसे ज्यादा है। इसी क्रम में मुंबई के प्रभा देवी इलाके का सिद्धिविनायक मंदिर उन गणेश मंदिरों में से एक है, जहां सिर्फ हिंदू ही नहीं, बल्कि हर धर्म के लोग दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। हालांकि इस मंदिर की न तो महाराष्ट्र के 'अष्टविनायकों ’ में गिनती होती है और न ही 'सिद्ध टेक ’ से इसका कोई संबंध है, फिर भी यहां गणेश उत्सव में पूजा का खास महत्व है। अष्टविनायकों से अलग होते हुए भी इसकी महत्ता किसी सिद्धपीठ से कम नहीं।

क्यों है सिद्घपीठ

आमतौर पर बाईं तरफ मुड़ी सूड़ वाली गणेश प्रतिमा की ही प्रतिष्ठापना और पूजा-अर्चना करने का महात्म्य माना जाता है। इसके बावजूद दार्इं आेर मुड़ी सूंड़ वाले गणपति की प्रतिमा की पूजा का भी अलग महत्व होता है। दाहिनी ओर मुड़ी सूड़ वाली गणेश प्रतिमाएं सिद्ध पीठ की होती हैं और मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर में गणेश जी की जो प्रतिमा है, उसकी सूंड़ भी दार्इं आेर ही है, यानी यह मंदिर भी सिद्ध पीठ ही कहलायेगा। सिद्घिविनायक गणेश जी का सबसे लोकप्रिय रूप है। कहते हैं कि सिद्धि विनायक की महिमा अपरंपार है, वे भक्तों की मनोकामना को तुरंत पूरा करते हैं। मान्यता है कि ऐसे गणपति बहुत ही जल्दी प्रसन्न होते हैं और उतनी ही जल्दी कुपित भी होते हैं।

आैर भी हैं विशेषतायें 

सिद्धिविनायक की दूसरी विशेषता यह है कि वह चतुर्भुजी विग्रह है। उनके ऊपर वाले दाएं हाथ में कमल और बाएं हाथ में अंकुश है और नीचे के दाहिने हाथ में मोतियों की माला और बाएं हाथ में मोदक से भरा कटोरा है। गणपति के दोनों ओर उनकी दोनो पत्नियां रिद्धि और सिद्धि मौजूद हैं जो धन, ऐश्वर्य, सफलता और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने का प्रतीक है। मस्तक पर अपने पिता शिव के समान एक तीसरा नेत्र और गले में एक सर्प हार के स्थान पर लिपटा है। सिद्धि विनायक का विग्रह ढाई फीट ऊंचा है और यह दो फीट चौड़े एक ही काले शिलाखंड से बना है।

मंदिर का स्वरूप 

कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण संवत् 1692 में हुआ था। 1991 में महाराष्ट्र सरकार ने इस मंदिर के निर्माण के लिए 20 हजार वर्गफीट की जमीन प्रदान की। वर्तमान सिद्धि विनायक मंदिर की इमारत पांच मंजिला है। जिसमें प्रवचन ग्रह, गणेश संग्रहालय व गणेश पीठ के अलावा दूसरी मंजिल पर अस्पताल भी है, जहां रोगियों की मुफ्त चिकित्सा की जाती है। इसी मंजिल पर रसोईघर है, जहां से एक लिफ्ट सीधे गर्भग्रह में आती है। गणपति के लिए निर्मित प्रसाद व लड्डू इसी रास्ते से आते हैं। नवनिर्मित मंदिर के 'गभारा ’ यानी गर्भग्रह को इस तरह बनाया गया है ताकि अधिक से अधिक भक्त गणपति का सभामंडप से सीधे दर्शन कर सकें। पहले मंजिल की गैलरियां भी इस तरह बनाई गई हैं कि भक्त वहां से भी सीधे दर्शन कर सकते हैं। अष्टभुजी गर्भग्रह तकरीबन 10 फीट चौड़ा और 13 फीट ऊंचा है। गर्भग्रह के चबूतरे पर स्वर्ण शिखर वाला चांदी का सुंदर मंडप है, जिसमें सिद्धि विनायक विराजते हैं। गर्भग्रह में भक्तों के जाने के लिए तीन दरवाजे हैं, जिन पर अष्टविनायक, अष्टलक्ष्मी और दशावतार की आकृतियां चित्रित हैं। वैसे तो सिद्धिविनायक मंदिर में हर मंगलवार को भारी संख्या में भक्तगण  बप्पा के दर्शन के लिए हैं, परंतु हर साल भाद्रपद की चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक गणपति पूजा महोत्सव विशेष समारोह पूर्वक मनाया जाता है।


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