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नवरात्रि 2018: छिन्नमस्तिका मंदिर जहां भय पर हावी है आस्था

झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर मां छिन्नमस्तिका का मंदिर है। इस मंदिर में मां का भयंकर स्वरूप इसकी सबसे बड़ी विशेषता है।

By Molly SethEdited By: Published: Wed, 10 Oct 2018 05:51 PM (IST)Updated: Wed, 10 Oct 2018 05:51 PM (IST)
नवरात्रि 2018: छिन्नमस्तिका मंदिर जहां भय पर हावी है आस्था
नवरात्रि 2018: छिन्नमस्तिका मंदिर जहां भय पर हावी है आस्था

दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ 

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मान्यता है कि असम के कामाख्या मंदिर के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में मां छिन्नमस्तिका का मंदिर विख्यात है।  मां का यह स्वरूप देखने में भयभीत भी करता है आैर भक्तों को देवी की शक्ति का आभास भी कराता है। झारखंड के रामगढ़ से रजरप्पा की दूरी 28 किमी की है, जहां ये मंदिर स्थापित है। यहां मां का कटा सिर उन्हीं के हाथों में है, और उनकी गर्दन से रक्त की धारा प्रवाहित होती रहती है। ये रक्त उनके दोनों और खड़ी दो सहायिकाओं के मुंह में जाता है। मां के इसी रूप को मनोकामना देवी के रूप के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों में भी रजरप्पा के इस मंदिर का उल्लेख शक्तिपीठ के रूप में मिलता है।

अन्य मंदिर भी है प्रसिद्घ 

वैसे, यहां आैर भी कई देवी देवताआें के मंदिरों का निर्माण किया गया जिनमें 'अष्टामंत्रिका' और 'दक्षिण काली' प्रमुख हैं। यहां आने से तंत्र साधना का अहसास होता है। यही कारण है कि असम के कामाख्या मंदिर और रजरप्पा के छिन्नमस्तिका मंदिर में समानता दिखाई देती है। रजरप्पा का यह सिद्धपीठ केवल एक मंदिर के लिए ही विख्यात नहीं है। छिन्नमस्तिके के अलावा यहां महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंग बली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल 7 मंदिर निर्मित हैं।

अंतिम विश्राम स्थल 

मां के इस मंदिर को 'प्रचंडचंडिके' के रूप से भी जाना जाता है। मंदिर के चारों और कल-कल करती दामोदर और भैरवी नदी हैं। मां के इस आशियाने को ठंडक प्रदान करती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस स्थान को मां का अंतिम विश्राम स्थल भी माना गया है। यहां कतार से बनी महाविद्या के मंदिर मां के रूप और रहस्य को और बढ़ा देती हैं। इन मंदिरों में तारा, षोडिषी, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला, कमला, मतंगी और घुमावती मुख्य हैं। मंगलवार और शनिवार को रजरप्पा मंदिर में विशेष पूजा होती है। मां को बकरे की बलि जिसे स्थानीय भाषा में पाठा कहा जाता है। यह परंपरा सदियों से यहां जारी है।


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