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Somnath Jyotirling : सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, जानिये चन्द्रमा को कैसे क्षयरोग से मिली मुक्ति

Somnath Jyotirling चन्द्रमा के इस रवैये से परेशान होकर सभी ने अपने पिता दक्ष से शिकायत कर दी। राजा दक्ष ने चंद्रमा को हर तरह से समझाया लेकिन उनपर कोई असर नहीं हुआ। बल्कि चंद्रदेव रोहिणी से और अधिक प्रेम करने लगे थे।

By Ritesh SirajEdited By: Published: Tue, 20 Jul 2021 09:30 AM (IST)Updated: Tue, 20 Jul 2021 09:30 AM (IST)
Somnath Jyotirling : सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, जानिये चन्द्रमा को कैसे क्षयरोग से मिली मुक्ति
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, जानिये चन्द्रमा को कैसे क्षयरोग से मिली मुक्ति

Somnath Jyotirling : भगवान शिव के देशभर में असंख्य शिवलिंग हैं। इसमें 12 ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व है। इनमें से एक सोमनाथ ज्योतिर्लिंग है। सावन में इसके दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की खूब भीड़ लगती है। यह ज्योतिर्लिंग गुजरात राज्य के सौराष्ट्र नगर में समुद्र तट के समीप स्थित है। सोमनाथ का शाब्दिक अर्थ है सोम के देवता जिसमें सोम का मतलब चन्द्रमा से है। मान्यता है कि यह ज्योतिर्लिंग हर युग में यहां स्थित रहा है। इसके दर्शन मात्र से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इसलिए विधि-विधान से इसकी पूजा की जाती है। आज हम इस ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कथा का विस्तारपूर्वक वर्णन करेंगे।

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पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजापति की सत्ताइस कन्याएं का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था। लेकिन चंद्रदेव इन  सत्ताइस पत्नियों में सबसे अधिक प्रेम रोहिणी से करते थे। जिससे उनकी अन्य पत्नियां नाराज और उदास रहती थी। चन्द्रमा के इस रवैये से परेशान होकर सभी ने अपने पिता दक्ष से शिकायत कर दी। राजा दक्ष ने चंद्रमा को हर तरह से समझाया लेकिन उनपर कोई असर नहीं हुआ। बल्कि चंद्रदेव रोहिणी से और अधिक प्रेम करने लगे थे। जिसकी वजह से राजा दक्ष ने चंद्रमा को क्षयग्रस्त हो जाने का शाप दे दिया। 

चंद्रदेव के क्षयग्रस्त होने से पृथ्वी का सारा कार्य प्रभावित होने लगा। हर जगह त्राहि-त्राहि का माहौल हो गया था। चंद्रमा अपने इस रोग से दुखी रहने लगे थे। इस समस्या से निपटने के लिए सभी देव और ऋषिगण उनके पिता ब्रह्माजी के पास गए। समस्या को जानकर ब्रह्माजी ने कहा कि चंद्रमा मृत्युंजय का जाप करना होगा। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ही इन्हें इस संकट से बाहर निकाल सकते हैं। इसके लिए पवित्र प्रभासक्षेत्र में जाना होगा।

ब्रह्म के निर्देशानुसार चंद्रदेव ने शिव के आराधना की शुरुआत कर दी। कठोक तपस्या करने के अलावा 10 करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जाप किया। चन्द्रदेव के इस तपस्या से भगवान शिव बेहद प्रसन्न हो गए। भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया। चंद्रदेव ने कहा कि प्रभु मेरे रोग का क्या होगा? शिव ने कहा तुम शोक मत करो। तुम्हारा शाप खत्म हो जाएगा लेकिन दक्ष के वचनों की रक्षा भी होगी।

शिव के वरदान स्वरूप चन्द्रमा का कृष्णपक्ष में प्रतिदिन एक-एक कला क्षीण होगी। हालांकि शुक्ल पक्ष में एक-एक कला बढ़ जाएगी। इस तरह पूर्णिमा को तुम्हारा पूर्ण रुप प्राप्त होगा। इससे सारे लोकों के प्राणी प्रसन्न हो गए। शाप मुक्त होने के बाद चंद्रदेव और देवताओं ने मिलकर मृत्युंजय भगवान्‌ से प्रार्थना किया कि वो और माता पार्वती सदा के लिए प्राणियों के उद्धार के लिए यहां निवास करें। शिवजी ने प्रार्थना स्वीकार कर लिया और ज्योतर्लिंग के रूप में माता पार्वतीजी के साथ यहां निवास करने लगे। इस ज्योतर्लिंग के दर्शन से जीवन में खुशहाली का आगमन होता है। 

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।''


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