जानें-द्वारिका के कृष्ण मंदिर के बारे में सबकुछ
महाभारत काव्य में वर्णित है कि द्वारका भगवान श्रीकृष्ण की राजधानी थी। यह शहर गुजरात राज्य में स्थित है। इतिहासकारों की मानें तो गुजरात के द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के पड़पोते ने करवाया है। कालांतर से मंदिर का विस्तार होता रहा है।
सनातन धर्म में दो संप्रदाय के लोग हैं। पहले संप्रदाय के अनुयायी भगवान शिव को मानते हैं और उनकी पूजा आराधना करते हैं। इन्हें शैव संप्रदाय कहा जाता है। वहीं, दूसरे संप्रदाय के लोग भगवान श्रीहरि विष्णु को मानते हैं और उनकी पूजा उपासना करते हैं। इन्हें वैष्णव संप्रदाय कहा जाता है। भगवान श्रीहरि विष्णु के दस अवतार में हैं। इनमें एक भगवान श्रीकृष्ण हैं, जिनका जन्म द्वापर युग में हुआ था।
महाभारत काव्य में वर्णित है कि द्वारका भगवान श्रीकृष्ण की राजधानी थी। यह शहर गुजरात राज्य में स्थित है। इतिहासकारों की मानें तो गुजरात के द्वारकाधीश मंदिर काa निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के पड़पोते ने करवाया है। कालांतर से मंदिर का विस्तार होता रहा है। इसका व्यापक विस्तार 17 वीं शताब्दी में हुआ है। इससे पूर्व आदि गुरु शंकराचार्य ने द्वारका मंदिर का दौरा कर शारदा पीठ स्थापित की।
ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि यह मंदिर 2500 वर्ष पुराना है। द्वापर युग में द्वारका नगरी थी, जो आज समुद्र में समाहित है। वर्तमान समय में इस पावन स्थल पर द्वारकाधीश मंदिर स्थित है। द्वारकाधीश मंदिर में प्रवेश हेतु दो द्वार हैं। मुख्य प्रवेश द्वार को 'मोक्ष द्वार' और दूसरे द्वार को 'स्वर्ग द्वार' कहा जाता है।
मंदिर 5 मंजिला है, जो 72 स्तंभों यानी खंभों पर स्थापित है। मंदिर की शीर्ष ऊंचाई 78.3 मीटर है। इस शिखर स्तंभ पर 84 मीटर ध्वजा लहराती रहती है। इसे दिन में पांच बार बदला जाता है। ध्वजा पर सूर्य और चन्द्रमा की छवि अंकित है, जिन्हें कई कोस दूर से देखा जा सकता है। मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण चांदी स्वरूप में स्थापित हैं।
धार्मिक मान्यता है कि चार धामों में एक पवित्र द्वारका है। तीन अलग धाम बद्रीनाथ, पूरी और रामेश्वरम हैं। द्वारकाधीश मंदिर से 2 किलोमीटर की दूरी पर रुक्मिणी मंदिर स्थित है। जहां मां रुक्मिणी एकांत में अवस्थित है। ऋषि दुर्वासा के शाप के चलते उन्हें एकांत में रहना पड़ता है। वर्तमान समय में मंदिर चालुक्य शैली में उपस्थित है। द्वारकाधीश मंदिर जाने के लिए निकटतम एयरपोर्ट जामनगर है। श्रद्धालु हवाई और रेल दोनों माध्यम से मंदिर पहुंचते हैं।
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