प्रयागराज में आराम की मुद्रा में लेटे हनुमानजी का है भव्य मंदिर
प्रयागराज में हनुमान जी का एक प्राचीन मंदिर है। एेसी मान्यता है कि भारत का एकमात्र मंदिर है जिसमें हनुमान जी की प्रतिमा लेटी हुई मुद्रा में स्थापित है।
विभिन्न स्वरूपों है प्रतिमायें
प्रयागराज के एक प्राचीन मंदिर में बजरंग बली की एक अनोखी मुद्रा वाली प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर में हनुमान जी लेटे हुए हैं। वैसे भारत में विभिन्न स्थानों में कर्इ आैर एेसी प्रतिमायें हैं जिनमें हनुमान जी अनोखी मुद्राआें में स्थापित हैं। एेसा ही एक मंदिर है इंदौर के उल्टे हनुमान इस मंदिर में जो प्रतिमा है उसमें उल्टे हनुमान हैं, वहीं रतनपुर के गिरिजाबंध हनुमान मंदिर में स्त्री रुप में हनुमान प्रतिमा मौजूद है। इन सबसे हट कर गुजरात के जामनगर में पवनपुत्र बालक रूप में बाल हनुमान मंदिर में स्थापित हैं, इस मंदिर का नाम अनोखे रिकॉर्ड से जुड़ा है जो 50 साल से ज्यादा यहां लगातार गूंज रही रामधुन के चलते बना है। ये रिकाॅर्ड गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है।
जाने हनुमान के इस मंदिर के बारे में
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हनुमान जी की प्रतिमा वाला एक छोटा किन्तु प्राचीन मंदिर है। यह एकमात्र मंदिर है जिसमें हनुमान जी लेटी हुई मुद्रा में हैं। यहां पर स्थापित हनुमान जी की प्रतिमा 20 फीट लम्बी है। संगम किनारे बना ये एक अनूठा मन्दिर है, जहां हनुमानजी की लेटी हुई प्रतिमा को पूजा जाता है। ऐसी मान्यता है कि संगम का पूरा पुण्य हनुमान जी के इस दर्शन के बाद ही पूरा होता है।
इस मंदिर से जुड़ी कथायें
इस लेटे हुए हनुमान जी के मंदिर के विषय में कर्इ प्रचलित कथायेंं प्राप्त होती हैं। एक के अनुसार एक बार एक व्यापारी हनुमान जी की भव्य मूर्ति लेकर जलमार्ग से चला आ रहा था। वह हनुमान जी का परम भक्त था। जब वह अपनी नाव लिए प्रयाग के समीप पहुंचा तो उसकी नाव धीरे-धीरे भारी होने लगी तथा संगम के नजदीक पहुंच कर यमुना जी के जल में डूब गई। कालान्तर में कुछ समय बाद जब यमुना जी के जल की धारा ने कुछ राह बदली, तो वह मूर्ति दिखाई पड़ी। उस समय मुसलमान शासक अकबर का शासन चल रहा था। उसने हिन्दुओं का दिल जीतने तथा अन्दर से इस इच्छा से कि यदि वास्तव में हनुमान जी इतने प्रभावशाली हैं तो वह मेरी रक्षा करेंगे, यह सोचकर उनकी स्थापना अपने किले के समीप ही करवा दी।
एक और कहानी इनके बारे में सुनी जाती है। ये सबसे ज्यादा तार्किक, प्रामाणिक एवं प्रासंगिक कथा इसके विषय में जनश्रुतियों के आधार पर प्राप्त होती है। इसके अनुसारत्रेतायुग में जब हनुमानजी ने गुरु सूर्यदेव से अपनी शिक्षा-दीक्षा पूरी करके विदा ली तो गुरुदक्षिणा की बात चली। भगवान सूर्य ने हनुमान जी से कहा कि जब समय आएगा तो वे दक्षिणा मांग लेंगे। इस पर हनुमान ने तत्काल भी कुछ देने पर जोर दिया तब भगवान सूर्य ने कहा कि मेरे वंश में अवतरित अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम अपने भाई लक्ष्मण एवं पत्नी सीता के साथ प्रारब्ध के भोग के कारण वनवास को प्राप्त हुए हैं। वन में उन्हें कोई कठिनाई न हो या कोई राक्षस उनको कष्ट न पहुंचायें इसका ध्यान रखना। तब हनुमान जी अयोध्या की तरफ चल दिए। उन्हें देख भगवान राम ने सोचा कि यदि हनुमान ही सब राक्षसों का संहार कर डालेंगे तो मेरे अवतार का उद्देश्य समाप्त हो जाएगा। अत: उन्होंने माया से हनुमान को घोर निद्रा में डालने के लिए कहा।इधर हनुमान जी जब गंगा के तट पर पहुंचे तब तक भगवान सूर्य अस्त हो गए। हनुमान जी ने माता गंगा को प्रणाम किया, आैर रात में नदी नहीं लांघते, यह सोचकर वहीं रात व्यतीत करने का निर्णय लिया। इसके बाद माया के वशीभूत गहन निद्रा में सो गए।
तीसरी कथा एक मान्यता और है जो हनुमान के पुनर्जन्म की कथा से जुड़ी हुई है। कहते हैं कि लंका विजय के बाद बजरंग बली जब अपार कष्ट से पीड़ित होकर मरणासन्न अवस्था मे पहुंच गए थे, तो मां जानकी ने इसी जगह पर उन्हे अपना सिन्दूर देकर नया जीवन और हमेशा आरोग्य व चिरायु रहने का आशीर्वाद देते हुए कहा कि जो भी इस त्रिवेणी तट पर संगम स्नान पर आयेगा उस को संगम स्नान का असली फल तभी मिलेगा जब वह हनुमान जी के दर्शन करेगा।