Move to Jagran APP

शिव पार्वती से छीन कर विष्‍णु जी ने बद्रीनाथ को बनाया था अपना धाम

जीहां अगर बद्रीनाथ धाम के पवित्र स्‍थान के इतिहास को पढ़ें तो पता चलेगा कि विष्‍णु जी का प्रिय स्‍थान बनने से पूर्व ये शिव पार्वती का निवास स्‍थल था।

By Molly SethEdited By: Published: Wed, 20 Jun 2018 04:13 PM (IST)Updated: Thu, 21 Jun 2018 09:05 AM (IST)
शिव पार्वती से छीन कर विष्‍णु जी ने बद्रीनाथ को बनाया था अपना धाम
शिव पार्वती से छीन कर विष्‍णु जी ने बद्रीनाथ को बनाया था अपना धाम

ऐसे शुरू हुई बद्रीनाथ की कहानी 

loksabha election banner

उत्तराखंड राज्य में स्थित अलकनंदा नदी के किनारे बद्रीनाथ धाम है। इसे बदरीनारायण मंदिर भी कहते हैं। हिंदू शास्‍त्रों के मुताबिक एक बार भगवान विष्‍णु काफी लंबे समय से शेषनाग की शैया पर विश्राम कर रहे थे। ऐसे में उधर से गुजरते हुए नारद जी ने उन्‍हें जगा दिया। इसके बाद नारद जी उन्‍हें प्रणाम करते हुए बोले कि प्रभु आप लंबे समय से विश्राम कर रहे हैं। इससे लोगों के बीच आपका उदाहरण आलस के लिए दिया जाने लगा है। यह बात ठीक नहीं है। नारद जी की बातें सुनकर भगवान विष्‍णु ने शेषनाग की शैया को छोड़ दिया और तपस्‍या के लिए एक शांत स्‍थान ढूंढने निकल पड़े। इस प्रयास में वे हिमालय की ओर चल पड़े,तब उनकी दृष्‍टि पहाड़ों पर बने बद्रीनाथ पर पड़ी। विष्‍णु जी को लगा कि यह तपस्‍या के लिए अच्‍छा स्‍थान साबित हो सकता है। जब विष्‍णु जी वहां पहुंचे तो देखा कि वहां एक कुटिया में भगवान शिव और माता पार्वती विराजमान थे। 

शिशु अवतार से बना काम

अब विष्‍णु जी सोच में पड़ गए कि अगर वह इस स्‍थान को तपस्‍या के लिए चुनते हैं तो भगवान शिव क्रोधित हो जाएंगे। इसलिए उन्‍होंने उस स्‍थान को ग्रहण करने का एक उपाय सोचा, और एक शिशु का अवतार लिया और बद्रीनाथ के दरवाजे पर रोने लगे। बच्‍चे के रोने की आवाज सुनकर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो गया और वह  उस बालक को गोद में उठाने के लिए बढ़ने लगीं। शिव जी ने उन्‍हें मना भी किया कि वह इस शिशु को गोद न लें लेकिन वह नहीं मानी। वह शिव जी से कहने लगी कि आप कितने निर्दयी हैं और एक बच्‍चे को कैसे रोता हुए देख सकते हैं। इसके बाद पार्वती जी ने उस बच्‍चे को गोद में उठा लिया और उसे लेकर घर के अंदर आ गईं। उन्‍होंने शिशु को दूध पिलाया और उसे चुप कराया। बच्‍चे को नींद आने लगी तो पार्वती जी ने उसे घर में सुला दिया। इसके बाद वे दोनों पास के एक कुंड में स्‍नान करने के लिए चले गए। 

शिव को छोड़ना पड़ा स्‍थान

जब वे लोग वापस आए तो देखा कि कुटिया का दरवाजा अंदर से बंद था। पार्वती जी उस बच्‍चे को जगाने की कोशिश करने लगी पर द्वार नहीं खुला। तब शिव जी ने कहा कि अब उनके पास दो ही विकल्‍प है या तो यहां कि हर चीज को वो जला दें या फिर कहीं और चले जाएं। शिव जी ने पार्वती जी से यह भी कहा कि वह इस भवन को जला नहीं सकते हैं क्‍योंकि यह शिशु उन्‍हें बहुत पसंद था और प्‍यार से उसे अंदर सुलाया था। इसके बाद शिव और पार्वती उस स्‍थान से चल पड़े और केदारनाथ पहुंचे और वहां पर उन्‍होंने अपना स्‍थान बनाया। जबकी वह स्‍थान तब से बद्रीनाथ धाम के रूप विष्‍णु जी का स्‍थान बन गया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.