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लोहार्गल सूर्य मंदिर जहां किया पाण्‍डवों ने प्रायश्‍चित

लोहार्गल सूर्य मंदिर राज्‍स्‍थान में एक प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है जिसके बारे में कई कहानियां प्रचलित है जिसमें प्रमुख है यहां के सूर्य कुंड की कहानी।

By Molly SethEdited By: Published: Sat, 10 Feb 2018 03:56 PM (IST)Updated: Mon, 12 Feb 2018 10:43 AM (IST)
लोहार्गल सूर्य मंदिर जहां किया पाण्‍डवों ने प्रायश्‍चित
लोहार्गल सूर्य मंदिर जहां किया पाण्‍डवों ने प्रायश्‍चित
पुराणों में जिक्र
लोहार्गल राजस्थान के शेखावाटी इलाके में झुन्झुनू जिले से 70 किलोमीटर दूर आड़ावल पर्वत की घाटी में बसे उदयपुरवाटी कस्बे के पास स्‍थित है। लोहार्गल का अर्थ होता है वह स्थान जहां लोहा भी गल जाए। इस मंदिर का नाम इसी तथ्‍य पर आधारित है और पुराणों में भी इस स्थान का जिक्र मिलता है। नवलगढ़ तहसील में स्थित इस तीर्थ लोहार्गल जी को स्थानीय अपभ्रंश भाषा में लुहागरजी भी कहा जाता है। इस मंदिर के साथ पाण्‍डवों के प्रायश्‍चित की कथा के साथ परशुराम से संबंधित एक कथा भी प्रचलित है। 
 
पांडवों ने यहां किया था प्रायश्‍चित
इस स्‍थान के बारे में सबसे प्रचलित कथा है कि महाभारत युद्ध समाप्ति के बाद पाण्डव जब आपने भाई बंधुओं और अन्य स्वजनों की हत्या करने के पाप से अत्यंत दुःखी थे, तब भगवान श्रीकृष्ण की सलाह पर वे पाप मुक्ति के लिए विभिन्न तीर्थ स्थलों के दर्शन करने के लिए गए। श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया था कि जिस तीर्थ में तुम्हारे हथियार पानी में गल जाए वहीं तुम्हारा पाप मुक्ति का मनोरथ पूर्ण होगा। घूमते-घूमते पाण्डव लोहार्गल आ पहुंचे तथा जैसे ही उन्होंने यहां के सूर्यकुण्ड में स्नान किया, उनके सारे हथियार गल गये। तब उन्होंने इस स्थान की महिमा को समझ इसे तीर्थ राज की उपाधि प्रदान की। लोहार्गल से जुड़ी परशुराम जी की कथा इस प्रकार है। माना जाता है कि इस जगह पर उन्‍होंने भी पश्चाताप के लिए यज्ञ किया तथा पाप मुक्ति पाई थी। उन्‍होंने ये प्रायश्‍चित क्रोध में क्षत्रियों का संहार करने के बाद शान्त होने पर अपनी गलती का अहसास होने पर किया था। 
विशाल बावड़ी
यहां एक विशाल बावड़ी भी है जिसका निर्माण महात्मा चेतनदास जी ने करवाया था। यह राजस्थान की बड़ी बावड़ियों में से एक है। पास ही पहाड़ी पर एक प्राचीन सूर्य मन्दिर बना हुआ है। इसके साथ ही वनखण्डी जी का मन्दिर है। कुण्ड के पास ही प्राचीन शिव मन्दिर, हनुमान मन्दिर तथा पाण्डव गुफा स्थित है। इनके अलावा चार सौ सीढ़ियां चढने पर मालकेतु जी के दर्शन किए जा सकते हैं। 
 
सूर्यकुंड और सूर्य मंदिर की कहानी
यहां प्राचीन काल से निर्मित इस सूर्य मंदिर के पीछे भी एक अनोखी कथा प्रचलित है। प्राचीन काल में काशी में सूर्यभान नामक राजा हुए थे, जिन्हें वृद्धावस्था में अपंग लड़की के रूप में एक संतान हुई। राजा ने पंडितों को बुलाकर उसके पिछले जन्म के बारे में पूछा। तब विद्वानों ने बताया कि पूर्व के जन्म में वह मर्कटी अर्थात बंदरिया थी, जो शिकारी के हाथों मारी गई थी। शिकारी उस मृत बंदरिया को एक बरगद के पेड़ पर लटका कर चला गया, क्योंकि बंदरिया का मांस अभक्ष्य होता है। हवा और धूप के कारण वह सूख कर लोहार्गल धाम के जलकुंड में गिर गई किंतु उसका एक हाथ पेड़ पर रह गया। बाकी शरीर पवित्र जल में गिरने से वह कन्या के रूप में आपके यहां उत्पन्न हुई है। विद्वानों ने राजा से कहा, आप वहां पर जाकर उस हाथ को भी पवित्र जल में डाल दें तो इस बच्ची का अंपगत्व समाप्त हो जाएगा। राजा तुरंत लोहार्गल आए तथा उस बरगद की शाखा से बंदरिया के हाथ को जलकुंड में डाल दिया। जिससे उनकी पुत्री का हाथ स्वतः ही ठीक हो गया। राजा इस चमत्कार से अति प्रसन्न हुए। विद्वानों ने राजा को बताया कि यह क्षेत्र भगवान सूर्यदेव का स्थान है। उनकी सलाह पर ही राजा ने हजारों वर्ष पूर्व यहां पर सूर्य मंदिर व सूर्यकुंड का निर्माण करवा कर इस तीर्थ को भव्य रूप दिया। एक यह भी मान्यता है, भगवान विष्णु के चमत्कार से प्राचीन काल में पहाड़ों से एक जल धारा निकली थी जिसका पानी अनवरत बह कर सूर्यकुंड में जाता रहता है। 
 

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