कभी चलते हैं फूलदान, तो कभी बदल जाते हैं कलश, अनोखी हैं खरसाली शनि धाम की कहानियां
आज आपको सुनाते हैं खरसाली के शनि धाम की अदभुद कहानियां, जिनके भक्तों को इन चमत्कारों पर है पूरा विश्वास।
उत्तराखंड में है ये मंदिर
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में एक गांव है खरसाली यहीं पर स्थित है एक प्राचीन शनिदेव मंदिर जिन्हें एक पौराणिक कथा के अनुसार पवित्र नदी यमुना का भाई माना जाता है। शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है, और उन्हें दंडाधिकारी माना जाता है जो हर कर्मों का हिसाब करते हैं। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 7000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर काफी प्राचीन है, जो इसकी बनावट और यहां बनी कलाकृतियों से भी स्पष्ट है।
पांडवों ने बनवाया था ये मंदिर
अगर मंदिर से जुड़ी कहानियों और इतिहासकार के विचारों की मानें तो यह स्थान पांडवों के समय का माना जाता है और इसी लिए कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडवो ने करवाया है। इस पांच मंजिला मंदिर के निर्माण में पत्थर और लकड़ी का उपयोग किया गया है। इसी लिए ये बाढ़ और भूस्खलन से सुरक्षित रहता है।बाहर से देखने पर आभास नहीं होता है कि ये कोई पांच मंजिल की इमारत है। मंदिर में शनिदेव की कांस्य मूर्ति शीर्ष मंजिल पर स्थापित है। इस शनि मंदिर में एक अखंड ज्योति भी मौजूद है। ऐसी मान्यता है कि इस अखंड ज्योति के दर्शन मात्र से ही जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं। खरसाली में ही शनि की बहन मानी जाने वाली यमुना नदी का यमनोत्री धाम है जो शनि धाम से लगभग 5 किलोमीटर बाद पड़ता है। हर साल इस शनि मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मंदिर में शनि देव 12 महीने तक विराजमान रहते हैं और सावन की संक्रांति में खरसाली में तीन दिवसीय शनि देव मेला भी आयोजित किया जाता है। कहते हैं कि प्रतिवर्ष अक्षय तृतीय पर शनि देव अपनी बहिन यमुना से यमुनोत्री धाम में मुलाक़ात करके खरसाली लौट आते है और भाईदूज या यम द्वितिया के त्यौहार यमुना को खरसाली ले जा सकते हैं, ये पर्व दिवाली के दो बाद आता है।
चमत्कारी कहानियां
इस मंदिर से कुछ चमत्कारी कहानियां भी जुड़ी हुई हैं। जैसे कहा जाता है कि साल में एक बार कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस मंदिर में शनि देव के ऊपर रखे घड़े या कलश खुद बदल जाते है। ये कैसे होता है इस बारे में अब तक लोगों को कोई जानकारी नहीं है, लेकिन विश्वास है कि इस दिन जो भक्त मंदिर में दर्शन के लिए आता है उसके कष्ट हमेशा के लिए समाप्त हो जाते हैं। ऐसी ही दूसरी कथा है कि मंदिर में दो बड़े फूलदान रखे है, जिनको रिखोला और पिखोला कहा जाता है। ये फूलदान ज़ंजीर से बांध कर रखे जाते हैं। आप सोचेंगे कि ऐसा क्यों, तो इस बारे में एक कहानी प्रचलित है कि पूर्ण चन्द्रमा के दौरान ये फूलदान नदी की तरफ चलने लगते हैं और बांध के ना रखने पर अलोप हो जायेंगे।