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विष्णु जी ने, श्री राम अवतार में इस तीर्थ के सरोवर में स्नान कर ब्रह्महत्‍या के पाप से मुक्ति पाई

श्री राम, भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। कहते हैं त्रेता युग में उत्‍तर प्रदेश के नैमिषारण्य तीर्थ में बने सरोवर में स्नान करके उन्होंने रावण की हत्या के पाप से मुक्ति पार्इ थी।

By Molly SethEdited By: Published: Wed, 23 Jan 2019 04:44 PM (IST)Updated: Thu, 24 Jan 2019 07:30 PM (IST)
विष्णु जी ने, श्री राम अवतार में इस तीर्थ के सरोवर में स्नान कर ब्रह्महत्‍या के पाप से मुक्ति पाई
विष्णु जी ने, श्री राम अवतार में इस तीर्थ के सरोवर में स्नान कर ब्रह्महत्‍या के पाप से मुक्ति पाई

क्या है नैमिषारण्य

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लखनऊ से 80 किमी दूर सीतापुर जिले में गोमती नदी के बायेें तट पर स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ नैमिषारण्य है। मार्कण्डेय पुराण में अनेक बार इसका उल्लेख 88000 ऋषियों की तपःस्थली के रूप में आया है। वायु पुराणान्तर्गत माघ माहात्म्य और बृहद्धर्मपुराण के पूर्व भाग के अनुसार भी इसके किसी गुप्त स्थल में आज भी ऋषियों का स्वाध्यायानुष्ठान चलता है। ऐसी भी मान्यता है कि लोमहर्षण के पुत्र सौति उग्रश्रवा ने यहीं ऋषियों को पौराणिक कथाएं सुनायी थीं। वाराह पुराण के अनुसार यहां भगवान द्वारा निमिष मात्र में दानवों का संहार कर देने के कारण यह स्थान नैमिषारण्य कहलाया। वायु, कूर्म आदि पुराणों के अनुसार भगवान के मनोमय चक्र की नेमि यहीं गिरी थी, इसलिए भी यह नैमिषारण्य कहलाया।

यहीं स्‍थित है पवित्र सरोवर

नैमिषारण्‍य क्षेत्र में ही एक सरोवर है जिसे हत्‍याहरण तीर्थ सरोवर के नाम से जाना जाता है। बताते हैं कि इस सरोवर में स्‍नान करने के बाद पापों से मुक्‍ति मिल जाती है। लोग दूर-दूर से यहां आते हैं और सरोवर में डुबकी लगाते हैं। स्‍थानीय मान्‍यताओं के अनुसार, जब भगवान राम ने रावण का वध कर दिया था, तो उन्‍हें ब्रह्महत्‍या का दोष लग गया था। उस पाप को मिटाने के लिए प्रभु श्रीराम ने इस सरोवर में स्‍नान किया था। तब से इसे हत्‍याहरण तीर्थ सरोवर के नाम से जाना जाने लगा। कुछ लोग इसकी दूसरी कहानी भी बताते हैं कि, कहा जाता है कि शौनक ऋषि ज्ञान की पिपासा शान्त करने के लिए ब्रहमा जी के पास गए। ब्रहमा जी ने उन्हें एक चक्र दिया और कहा कि इसे चलाते हुए चले जाओ। जहां चक्र की नेमि (बाहरी परिधि) गिरे, उसे पवित्र स्थान समझकर- वहां आश्रम स्थापित कर लोगों को ज्ञानार्जन कराओ। शौनक ऋषि के साथ कई अन्य ऋषिजन इसी प्रयोजन से चले और पाया कि अन्तत: गोमती नदी के तट पर चक्र की नेमि गिरी और भूमि में प्रवेश कर गयी। तभी से यह स्थल चक्रतीर्थ तथा नैमिषारण्य के नाम से विख्यात हुआ। जनश्रुति के अनुसार नैमिषारण्य का नाम 'निमिषा' का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता नेत्र की आभा।


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