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Kedarnath Jyotirling Shiva Temple: बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप विराजित हैं श्री केदारनाथ, पढ़ें कथा

Kedarnath Jyotirling Shiva Temple आज हम अपने पाठकों को पांचवें ज्योतिर्लिंग के बारे में बताने जा रहे हैं। इस ज्योतिर्लिंग का नाम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Sat, 25 Jul 2020 10:00 AM (IST)Updated: Sat, 25 Jul 2020 10:00 AM (IST)
Kedarnath Jyotirling Shiva Temple: बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप विराजित हैं श्री केदारनाथ, पढ़ें कथा
Kedarnath Jyotirling Shiva Temple: बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप विराजित हैं श्री केदारनाथ, पढ़ें कथा

Kedarnath Jyotirling Shiva Temple: जैसा कि हम सभी जानते हैं भारत में 12 ज्योतिर्लिंग हैं जो तेजस्वी रूप से प्रकट हुए हैं। आज हम अपने पाठकों को पांचवें ज्योतिर्लिंग के बारे में बताने जा रहे हैं। इस ज्योतिर्लिंग का नाम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग है। यह उत्तराखंड में स्थित है। इसकी स्थापना के पीछे भी एक कथा है जिसका वर्णन हम यहां कर रहे हैं। तो चलिए पढ़ते हैं केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना की कथा:

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इस ज्योतिर्लिंग को लेकर पंचकेदार की एक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार, पांडवों के महाभारत के युद्ध में विजयी होने के बाद भाइयों की हत्या से पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए उन्हें भगवान शंकर का आशीर्वाद चाहिए थे। शिव शंकर के दर्शन हेतू पांडवों ने काशी की तरफ कूच किया। लेकिन शंकर जी उन्हें नहीं मिले। इसके बाद पांडव उन्हें ढूंढते हुए हिमालय पहुंच गए। लेकिन भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। ऐसे में वो अंतध्र्यान होकर केदार में बस गए। लेकिन पांडवों ने भी शंकर जी का पीछा केदार तक किया। क्योंकि वो सभी मन के पक्के थे।

पांडवों के पहुंचने के बाद भगवान शंकर ने बैल का रूप ले लिया और बाकी पशुओं के साथ शामिल हो गए। इस पर पांडवों को कुछ शक हुआ। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण किया। फिर अपने पैरों को दो पहाड़ों के बीच में फैला लिया। सभी गाय-बैल उनके नीचे से निकल गए लेकिन शिव जी बैल के रूप में उनके नीचे से निकलने को तैयार नहीं थे। फिर भी पूरी ताकत के साथ बैल पर झपटे लेकिन बैल यानी शिव शंकर भूमि में अंतध्र्यान होने लगे। फिर भीम ने बैल की पीठ का त्रिकोण हिस्सा पकड़ लिया। इससे भगवान शंकर बेहद प्रसन्न हुए क्योंकि पांडवों में भक्ती और दृढ़ संकल्प साफ नजर आ रहा था। इसके बाद शिवजी ने पांडवों को दर्शन देकर पाप से मुक्त किया। तब से शंकर जी बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।


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