Move to Jagran APP

Guru Granth Sahib Stapana: आज ही के दिन सन् 1604 में हुई थी गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना

Sri Harmandir Sahib आज का दिन यानी 27 अगस्त सिखों के इतिहास के लिए विशेष महत्व रखता है। बता दें कि आज ही के दिन सन् 1604 में गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना की गई थी।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Thu, 27 Aug 2020 08:52 AM (IST)Updated: Thu, 27 Aug 2020 08:52 AM (IST)
Guru Granth Sahib Stapana: आज ही के दिन सन् 1604 में हुई थी गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना
Guru Granth Sahib Stapana: आज ही के दिन सन् 1604 में हुई थी गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना

Guru Granth Sahib Stapana: हिंदूओं में गीता, मुसलमानों में कुरान और ईसाइयों में बाइबिल का अलग ही महत्व है। इन सभी को पवित्रतम स्थान हासिल है। वहीं, सिखों की बात करें तो इस धर्म में सबसे पूजनीय पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब है। आज का दिन यानी 27 अगस्त सिखों के इतिहास के लिए विशेष महत्व रखता है। बता दें कि आज ही के दिन सन् 1604 में गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना की गई थी। इसे अमृतसर के बेहद लोकप्रिय हरमंदिर साहिब यानी स्वर्ण मंदिर में इसे स्थापित किया गया था।

loksabha election banner

हरमंदिर साहिब को दरबार साहिब या स्‍वर्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। स्वर्ण मंदिर के दर्श करने और यहां अपना मत्था टेकने के लिए लोग दूर-दराज से आते हैं। यहां सिर्फ भारतीय लोग ही नहीं बल्कि विदेशी सैलानियों भी आते हैं। मान्यता है कि सिखों के जो पांचवे गुरू थे श्री गुरु अर्जुन देव, उन्होंने ही स्वर्ण मंदिर की नींव रखी थी। जैसे कि इसके नाम से पता चलता है इस गुरुद्वारे का बाहरी हिस्‍सा सोने से निर्मित है। यह कारण है कि इसे स्‍वर्ण मंदिर कहा जाता है। यह सरोवर के बीचों बीच स्थि है। इसके द्वार चारों दिशाओं में खुलते हैं। इस सरोवर के चारों ओर अमृतसर शहर बसा हुआ है।

गुरु ग्रंथ साहिब का मूल मंत्र:

श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बाणी की शुरूआत मूल मंत्र से होती है। ये मूल मंत्र है एक ओंकार सतनाम, कर्तापुरख, निरभऊ निर्वैर, अकाल मूरत, अजूनी स्वैभं गुरु परसाद॥ आइए जानते हैं मूल मंत्र का अर्थ।

एक ओंकार: अकाल पुरख यानी परमात्मा एक है। वो हर जगह मौजूद है और उसके जैसा कोई और नहीं है।

सतनाम: अकाल पुरख का नाम सबसे सच्चा है।

करता पुरख: उसी ने सब कुछ बनाया है। वो ही है जो सब कुछ करता है। वह सब बनाकर उसमें रस-बस गया है।

निरभऊ: अकाल पुरख को कोई डर नहीं है।

निर्वैर: अकाल पुरख की किसी से दुश्मनी नहीं है।

अकाल मूरत: परमात्मा की शक्ल काल रहित है। इस पर समय का कोई असर नहीं। इसका कोई आकार नहीं।

अजूनी: जो न तो पैदा होता है और न ही मृत्यु को प्राप्त होता है। वह किसी जूनी यानी योनि में नहीं पड़ता है।

स्वैभं: जो प्रकाश से उत्पन्न हुआ है। इसे न तो किसी ने बनाया है और न ही जन्म दिया है।

गुरप्रसाद: अकाल पुरख की समझ इंसान को गुरु की कृपा से ही होती है।  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.