श्री गणेश तीन स्वरूपों में विराजते हैं चिंतामन गणेश मंदिर में
उज्जैन के निकट श्री गणेश का एक अत्यंत प्राचीन मंदिर स्थापित है। इस मंदिर में गणपति के तीन स्वरूप पूजे जाते हैं।
गणेश जी के तीन स्वरूपों का मंदिर
उज्जैन में श्री गणेश का पवित्र तीर्थ चिंतामन गणेश मंदिर के रूप में स्थापित है । ये स्थान उज्जैन से करीब 6 किलोमीटर दूर फतेहाबाद रेलवे लाइन के पास स्थित है। चिंतामन गणेश मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि यहां पर श्री गणेश तीन रूप में एक साथ विराजमान है। ये तीनों स्वरूप चितांमण गणेश, इच्छामण गणेश और सिद्धिविनायक के रूप में जाने जाते है। कहते हैं कि इनमें से चिंतामण गणेश चिंताओं को दूर करते हैं, इच्छामण इच्छाओं की पूर्ति करते हैं और सिद्धिविनायक रिद्धि-सिद्धि देते हैं। ये भी माना जाता है कि गणेश जी की ऐसी अद्भुद और अलौकिक प्रतिमा देश में शायद और कहीं नहीं है।
मंदिर से जुड़ी कथा
चिंतामन मंदिर से जुड़ी एक रोचक कथा भी सुनने में आती है। कहते हैं कि त्रेतायुग में भगवान राम ने गणपति की ये मूर्ति स्वयं स्थापित कर इस मंदिर का निर्माण कराया था। पौराणिक कथा के अनुसार वनवास काल में एक बार सीता जी को प्यास लगी। तब राम की आज्ञा से लक्ष्मण जी ने अपने तीर इस स्थान पर मारा जिससे पृथ्वी में से पानी निकला और यहां एक बावडी बन गई। तभी श्री राम ने अपनी दिव्यदृष्टि से वहां की हवाएं दोषपूर्ण होने की बात जानी और इसे दूर करने के लिए गणपति से अनुरोध कर उनकी उपासना की इसके बाद ही सीता जी बावड़ी के जल को पी सकीं। इसके पश्चात श्री राम ने यहां के इस चिंतामन मंदिर का निर्माण कराया। कहते हैं आज भी लक्ष्मण बावड़ी के नाम से वो तालाब यहां मौजूद है।
मंदिर से जुड़े पर्व
इस मंदिर में श्री गणेश से जुड़े कई पर्व बड़ी धूमधाम से मनाये जाते हैं। जैसे गणेश चतुर्थी के अवसर पर चिंतामन गणेश मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण भगवान गणेश का दर्शन करने आते है। वहीं रक्षाबंधन के अवसर पर महिलायें बड़ी संख्या में अपनी राखियां भगवान गणेश को भेंट करती है। ऐसे ही चैत्र मास के प्रथम बुधवार से जत्रा पर्व की की शुरुआत होती हैं, और उसे इस महीने के प्रति बुधवार को मनाया जाता है। इस माह में पहले बुधवार को मंदिर में इस दिन विशेष श्रृंगार किया जाता है। इस उत्सव के दौरान भगवान को विशेष भोग भी लगाया जाता है। साथ ही लोग यहां अपनी मान्यता पूरी होने पर क्विटलों में भोग लगाते हैं। चैत्र माह के आखिरी बुधवार को इसका समापन होता है। मकर संक्रांति पर भी महिलाएं इस दिन व्रत के बाद चिंतामण गणेश को तिल के बने व्यंजनों का भोग लगाती हैं।