Banke Bihari Temple: फिर खुले मंदिर के कपाट, जानें ठाकुर जी के बांके बिहारी मंदिर के बारे में
Banke Bihari Temple वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर बेहद खूबसूरत है और भक्तों के बीच बेहद प्रसिद्ध है। यह मंदिर भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। रविवार यानी 25 अक्टूबर से मंदिर के कपाट फिर से भक्तों के लिए खोल दिए गए हैं।
Banke Bihari Temple: वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर बेहद खूबसूरत है और भक्तों के बीच बेहद प्रसिद्ध है। यह मंदिर भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। रविवार यानी 25 अक्टूबर से मंदिर के कपाट फिर से भक्तों के लिए खोल दिए गए हैं। हालांकि, लोगों को बांकेबिहारी के दर्शन करने के लिए पहले से मंदिर की वेबसाइट पर पंजीकरण कराना होगा। यहां से जो भी तिथि या समय दिया जाएगा उसी आधार पर भक्त दर्शन कर पाएंगे। बांके बिहारी मंदिर मथुरा जिले के वृंदावन धाम में रमण रेती पर स्थित है। यह मंदिर कृष्ण जी को समर्पित है। बांके बिहारी कृष्ण का ही एक रूप हैं। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में।
बांके बिहारी मंदिर का निर्माण सन् 1864 में स्वामी हरिदास ने करवाया था। किंवदंती है कि बांके बिहारी मंदिर के सामने एक दरवाजा है जिस पर पर्दा लगा हुआ है। यह पर्दा हर एक या दो मिनट के अंतराल पर बंद एवं खोला जाता है। श्रीधाम वृन्दावन, एक ऐसी पावन भूमि है जहां आने से ही व्यक्ति के सभी पाप मुक्त हो जाते हैं। श्री बांके बिहारी जी के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति कृतार्थ हो जाता है।
कहा जाता है कि श्रावन तीज के दिन ही ठाकुर जी झूले पर बैठते हैं। सिर्फ यही नहीं, जन्माष्टमी के दिन ही बांके बिहारी की मंगला आरती की जाती है। इस दिन ठाकुर जी के दर्शन सौभाग्यशाली व्यक्ति को ही प्राप्त होते हैं। वहीं, चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया के दिन ही हो पाता है। कहते हैं जो ठाकुर जी के चरण कमलों के दर्शन करता है उस भक्त का बेड़ा-पार लग जाता है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक भक्त बांके बिहारी जी के दर्शन के लिए गया। वे काफी देर तक कृष्ण जी को निहारते रहे। बांके बिहारी जी उनसे उतने मोहित हो गए कि उनके साथ उनके गांव चले गए। जब यह बात बिहारी जी के गोस्वामियों को पता चली तो उन्होंने उनका पीछा किया। गोस्वामियों ने बिहारी जी से काफी मिन्नतें कीं। इसके बाद बिहारी जी मन्दिर में वापस लौटे। बांके बिहारी जी के वापस लौटने पर उनकी झांकी दर्शन की व्यवस्था की गई जिससे उनसे कोई नजर न लड़ा सके। कहा जाता है कि यहां पर मंगल आरती नहीं की जाती है। गोसाइयों का कहना है कि रात्रि में रास से थककर ठाकुरजी भोर में शयन करते हैं। ऐसे में इस समय इन्हें जगाना सही नहीं होता है।
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