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Arulmigu Ramanathaswamy Temple: श्री राम और हनुमान ने कुछ इस तरह की थी इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना

Arulmigu Ramanathaswamy Temple रामानाथस्वामी मंदिर एक हिंदू मंदिर है जो भारत के तमिलनाडु राज्य में रामेश्वरम द्वीप पर स्थित है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2020 11:00 AM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2020 01:42 PM (IST)
Arulmigu Ramanathaswamy Temple: श्री राम और हनुमान ने कुछ इस तरह की थी इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना

Arulmigu Ramanathaswamy Temple: रामानाथस्वामी मंदिर एक हिंदू मंदिर है जो भारत के तमिलनाडु राज्य में रामेश्वरम द्वीप पर स्थित है। यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है। इस ज्योतिर्लिंग के स्थापित होने के पीछे भी एक पौराणिक कथा है जिसका वर्णन हम यहां कर रहे हैं। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने की थी। तो चलिए जानते हैं कि शिवजी का यह ज्योतिर्लिंग रामेश्वरम में कैसे हुआ था स्थापित।

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जब भगवान् श्रीराम रावण का वध कर वापस लौट रहे थे तब उनका पहला पड़ाव समुद्र के उस पार गन्धमादन पर्वत था। जब वहां के ऋषियों और मुनिगणों को पता चला तो वो सब भगवान् श्री राम के दर्शन के लिए उनके पास पहुंच गए। सभी ने राम जी का खूब आदर-सत्कार किया। भगवान राम ने उन सभी से कहा कि उन्हें रावण का वध कर ब्रह्महत्या का पाप लगा है। इससे निवृत्ति का कोई उपाय बताए। सभी ऋषियों-मुनियों ने श्री राम को कहा, "आपको यहां शिवलिंग की स्थापना करनी होगी। इससे आप ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाएंगे।"

जब श्रीराम ने उन सभी की बात सुनी तो उन्होंने तुरंत ही हनुमान जी को कैलाश पर्वत जाकर शिवलिंग लाने का आदेश दिया। श्री राम का आदेश सुनकर हनुमान जी कैलाश पर्वत के लिए निकल पड़े। लेकिन जब वो वहां पहुंचे तो उन्हें वहां शिव जी के दर्शन नहीं हुए। शिव जी के दर्शन के लिए हनुमान जी वहीं बैठकर प्रार्थना करने लगे। कुछ काल पश्चात्‌‌ ही हनुमान जी को शिवजी ने दर्शन दे दिए। फिर हनुमानजी शिवलिंग लेकर श्री राम के पास लौट आए। लेकिन इससे पहले ही वहां सीता माता से लिंग की स्थापना कराई जा चुकी थी। ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि उन्हें लगा कि शुभ मुहूर्त न बीत जाए।

जब हनुमानजी ने यह सब देखा कि तो उन्हें बेहद दुख हुआ। वो इतने व्याकुल थे कि उन्होंने अपना दुख श्री राम को कहा। श्री राम ने हनुमान जी से कहा कि अगर वो चाहें तो यहां से लिंग उखाड़ सकते हैं। यह सुनकर हनुमान जी बहुत प्रसन्न हुए और लिंक उखाड़ने लगे। काफी कोशिशों बाद भी लिंग वहां से नहीं निकला। फिर हनुमान जी ने शिवलिंग को अपनी पूंछ में लपेटा और उसे उखाड़ने लगे। लेकिन लिंग भूमि से नहीं निकला। वहीं, हनुमान जी भी मूर्च्छित होकर भूमि पर गिर पड़े। हनुमान जी के शरीर से रक्त बहने लगा। यह देखकर माता सीता अपने हनुमान के शरीर पर हाथ फेरनी लगी और विलाप करने लगीं।

जब हनुमान जी को होश आया तो उन्होंने श्री राम को परम ब्रह्म के रूप में पाया। तब उन्होंने उन्हें शंकरजी की महिमा बताई। वहीं, हनुमानजी द्वारा कैलाश पर्वत से लाए गए लिंग को भी पहले वाले लिंग के पास स्थापित कर दिया गया।  


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