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Janmashtami 2022: 'कृष्णावतार को पूर्णावतार माना गया है, इसीलिए वे जगद्गुरु के रूप में सारे संसार के हैं प्रदर्शक

भगवान श्रीकृष्ण का पृथ्वी पर अवतरण जन कल्याण के लिए हुआ था। उनका उद्देश्य पृथ्वी पर हो रहे अत्याचारों को मिटाना था। उन्होंने अपने युग को नवसृजन की दिशा में मोड़ा। शास्त्रों में कृष्णावतार को पूर्णावतार माना गया है इसीलिए वे जगद्गुरु के रूप में सारे संसार के प्रदर्शक हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 15 Aug 2022 05:33 PM (IST)Updated: Mon, 15 Aug 2022 05:33 PM (IST)
Janmashtami 2022: 'कृष्णावतार को पूर्णावतार माना गया है, इसीलिए वे जगद्गुरु के रूप में सारे संसार के हैं प्रदर्शक
Janmashtami 2022: लीला पुरुषोत्तम श्री कृष्ण, जो हैं जन जन के आराध्य

गोपाल चतुर्वेदी। द्वापर युग में मथुरा के राजा उग्रसेन के पुत्र कंस के अत्याचारों से त्रस्त भक्तजनों की पुकार पर सप्तपुरियों में श्रेष्ठ मधुपुरी अर्थात मथुरा की दिव्य भूमि पर जन्म लेने वाले षोडश कलायुक्त भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण को पूर्णावतार माना गया है, क्योंकि उन्होंने स्थितप्रज्ञ होकर जीवन के समस्त आयामों को पूर्णरूपेण स्वीकार किया। भारतीय संस्कृति में पूजित दशावतारों में आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण ही एकमात्र ऐसे हैं, जिनका जन्मोत्सव श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विश्व के प्रत्येक कोने में अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। उनका जन्म मथुरा के अत्यंत क्रूर व अत्याचारी राजा कंस के कारागार में संवत् 3168 की भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में रात्रि के ठीक 12 बजे माता देवकी के गर्भ से हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा में जन्म लेने के पश्चात अपनी तिरोधान लीला से पूर्व के 120 वर्षों में अनेकानेक लीलाएं कीं। उन्होंने अपने संपूर्ण लीला काल में समाज को विभिन्न रीति-नीति, कला, ज्ञान, व्यवहार आदि की जानकारी दी।

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भगवान श्रीकृष्ण का चरित्र बहुआयामी है। कभी वह बालरूप में नंदरानी को मातृत्व सुख प्रदान करते हैं, तो कभी ग्वाल-बालों के साथ उनके सखा के रूप में लीला करते हुए राक्षसों का वध करते हैं। कभी वह यमुना में स्नान करती गोपियों को शिक्षा देते हैं तो कभी कुरुक्षेत्र में वीर अर्जुन को उपदेश देकर उसके परिवार मोह को भंग करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा की गई महारास लीला उनके कृष्णावतार की श्रेष्ठतम लीला है। उन्होंने इस लीला के माध्यम से गोपियों के अहंकार और काम के घमंड को समाप्त कर निष्काम प्रेम को परिभाषित किया। साथ ही, कौरवों व पांडवों के मध्य हुए धर्म-अधर्म रूपी 18 दिवसीय महासंग्राम में अर्जुन के सारथी बने। वस्तुत: भगवान श्रीकृष्ण का पृथ्वी पर अवतरण जन कल्याण के लिए हुआ था। उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य पृथ्वी पर हो रहे अत्याचारों को मिटाना था। उन्होंने अपने युग को नवसृजन की दिशा में मोड़ा।

शास्त्रों में 'कृष्णावतार' को पूर्णावतार माना गया है। इसीलिए वे जगद्गुरु के रूप में सारे संसार के प्रदर्शक हैं। उन्होंने सारी दुनिया को कर्मयोग का पाठ पढ़ाया। उन्होंने प्राणीमात्र को यह संदेश दिया कि केवल कर्म करना व्यक्ति का अधिकार है, फल की इच्छा रखना उसका अधिकार नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण का स्वयं का भी जीवन उतार-चढ़ाव से ओतप्रोत है। वे जेल में पैदा हुए, महल में जीये और जंगल से विदा हुए। उनका यह मानना था कि व्यक्ति जन्म से नहीं, कर्म से महान बनता है। उनके द्वारा कुरुक्षेत्र के मैदान में गीता-ज्ञान का ऐसा उपदेश दिया गया, जो कर्तव्य से विमुख हो रहे हर व्यक्ति को दिशा व ऊर्जा प्रदान करने वाला है। वस्तुत: 'श्रीमद्भगवद्गीता' उनके उपदेश का एक ऐसा दर्शन है, जो हमें नश्वर जगत में अपना कर्तव्य निस्पृह भाव से निभाने के लिए प्रेरित करता है। यह ग्रंथ हिंदू धर्म के विभिन्न संप्रदायों को एक सूत्र में बांधने वाला ग्रंथ है। गीता के इस अपूर्व उपदेश के ही कारण वे न केवल अपने समय के, अपितु चिरकाल के लिए सारे संसार के गुरु बन गए। वह लीला पुरुषोत्तम हैं। जन-जन के आराध्य हैं, इसीलिए उनका चरित्र लोक रंजक है। उनका कोई भी कार्य कौतुक या निरर्थक नही है। उनमें वैराग्य योग, ज्ञान योग, ऐश्वर्य योग, धर्म योग और कर्म योग आदि समाहित हैं। उनकी प्रासंगिकता आज भी है। भगवान श्रीकृष्ण ने समस्त विश्व को प्रेम व सहिष्णुता का संदेश दिया। उनकी लीलाओं में सर्वत्र प्रेम ही प्रेम दृष्टिगत होता है।

ब्रज क्षेत्र श्रीकृष्णोपासना का प्रमुख केंद्र है। ब्रज में कृष्णजन्माष्टमी की धूम अद्भुत व अनूठी होती है, जो श्रीकृष्ण की छठी पूजने तक निरंतर जारी रहती है। यहां कृष्ण भक्ति का रस सर्वत्र बरसता है। इस पर्व पर यहां वात्सल्यमय वातावरण दिखाई देता है। मथुरा के प्राय: प्रत्येक मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से एक दिन पूर्व भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को सांय काल यशोदा महारानी का सीरा-पूड़ी व रसीले पदार्थों से भोग लगाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की ख़ुशी में घर-आंगन से लेकर गली-मुहल्लों तक को दुल्हन की भांति सजाया जाता है। घर-घर में अनेकानेक व्यंजन व पकवान बनते हैं। भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को प्रात: से ही अधिकांश घरों में व्रत रखा जाता है। घर-घर में धनिया की पंजीरी व पंचामृत बनाया जाता है। सारे दिन भजन-कीर्तन के कार्यक्रम चलते हैं। रात्रि को 12 बजते ही मंदिरों व घरों से शंख, घंटा-घडिय़ाल आदि की आवाज गूंज उठती है। सभी अपने-अपने ठाकुर विग्रहों का पंचामृत से अभिषेक करते हैं। श्रीकृष्ण जन्म महोत्सव का प्रमुख उत्सव मथुरा की श्रीकृष्ण जन्मभूमि में होता है। लोग-बाग यह कहकर नाच उठते हैं - नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की, ज्वानन को हाथी घोड़ा बूढ़ेन को पालकी।

ब्रज के सभी मंदिरों में ठाकुर जी के नयनाभिराम श्रंृगार होते हैं। उनके जन्म की खुशी में नौबत बजाई जाती है। वृंदावन के ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर में वर्ष भर में केवल इसी दिन प्रात:काल अन्य मंदिरों की तरह मंगला आरती होती है। वृंदावन स्थित सप्त देवालयों में से तीन देवालयों- ठाकुर राधादामोदर मंदिर, ठाकुर राधारमण मंदिर एवं ठाकुर राधागोकुलानंद मंदिर में जन्माष्टमी दिन में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। इन मंदिरों के सेवायतों का तर्क है कि उनके ठाकुर अत्यंत सुकोमल हैं, अतएव उन्हें रात्रि में जगाकर उनका जन्मदिन मनाना उचित नहीं है। राधादामोदर मंदिर में प्रात: काल ठाकुर जी का एवं वहां विराजित गिरिराज शिला का पंचामृत से अत्यंत धूमधाम के साथ अभिषेक किया जाता है। ठाकुर राधारमण मंदिर में ठाकुर जी का अभिषेक रात्रि के 12 बजे के स्थान पर दोपहर 12 बजे होता है। साथ ही उन्हें नवीन पीत वस्त्र धारण कराकर स्वर्ण सिंघासन पर विराजमान किया जाता है। इस दिन इस मंदिर में तिल-पंजीरी-पाग का विशेष भोग लगाया जाता है। साथ ही विशेष उत्सव आरती भी होती है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन समूचे ब्रज में नंदोत्सव की धूम रहती है। हर एक घर व मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा को पालने में झुलाया जाता है और बधाइयां गायी जाती हैं। जगह-जगह दधिकांदा होता है। लोग यत्र-तत्र फल, मेवा, मिष्ठान, वस्त्र आदि लुटाते हैं। प्रत्येक इसे कान्हा का प्रसाद समझकर लूटता है। नंदोत्सव का मुख्य आयोजन गोकुल स्थित गोकुलनाथ मंदिर में होता है। यहां प्रात:काल भगवान श्रीकृष्ण की झांकी अत्यंत धूमधाम के साथ निकाली जाती है। साथ ही भगवान श्रीकृष्ण के पालने के भी शुभ दर्शन होते हैं। मथुरा के द्वारिकाधीश मंदिर में नंदोत्सव के दिन भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह को चांदी के पालने में झुलाया जाता है। नंदोत्सव पर नंदगांव के नंदभवन में भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा के स्वर्ण पालने में दर्शन होते हैं। बरसाना वासी, नंदगांव वासियों को श्रीकृष्ण के जन्म की बधाई देने नंदगांव आते हैं।

वृंदावन के ठाकुर राधादामोदर मंदिर में नंदोत्सव आनंद महोत्सव के रूप में अति हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ब्रजवासी बालक मंदिर प्रांगण में होने वाली मटकी फोड़ लीला में भाग लेकर नाना प्रकार की अठखेलियां करते हैं। मंदिर के सेवायतों द्वारा यहां उपस्थित अपार जन समूह में फल, मिष्ठान्न, कपड़े व बर्तन आदि लुटाये जाते हैं। लड्डू गोपाल स्वरूप ठाकुर जी को झूले पर झुलाया जाता है। इस फिन यहां खीर का विशेष प्रसाद भी बंटता है। वस्तुत: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व प्रतिवर्ष हमें भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को मनाया जाना तभी सार्थक है, जब हमारे हृदय में भगवान श्रीकृष्ण का उदय हो।

[आध्यात्मिक विषयों के लेखक]


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