Move to Jagran APP

विदाई

शादी जीवन भर का रिश्ता है, इसलिए यह फैसला बहुत सोच-समझ कर लेना चाहिए। कई बार माता-पिता भी नासमझी में ऐसा निर्णय ले लेते हैं, जिससे बाद में उन्हें पछताना पड़ सकता है। बेटियों को अपने जीवन का फैसला लेने का अधिकार दें और उनकी बात सुनें, यही संदेश है

By Edited By: Published: Sat, 26 Dec 2015 04:04 PM (IST)Updated: Sat, 26 Dec 2015 04:04 PM (IST)
विदाई

शादी जीवन भर का रिश्ता है, इसलिए यह फैसला बहुत सोच-समझ कर लेना चाहिए। कई बार माता-पिता भी नासमझी में ऐसा निर्णय ले लेते हैं, जिससे बाद में उन्हें पछताना पड सकता है। बेटियों को अपने जीवन का फैसला लेने का अधिकार दें और उनकी बात सुनें, यही संदेश है इस कहानी का।

prime article banner

राज आज अपने दोस्त से बहन का हाल सुन कर बहुत दुखी हो गया था। वह अपराध-बोध से घिर गया था और पहुंच गया था तीन वर्ष पीछे, जिस दिन उसकी छोटी बहन माला ने विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। दोनों भाई-बहन एक ही कॉलेज में पढे थे, वहीं कॉलेज में अपने सहपाठी अमर से माला के अफेयर की बात पता चलते ही राज ने पिताजी को बता दिया। पिताजी भी आननफानन माला के लिए सुयोग्य वर ढूंढने लग गए थे। राज ने बहन माला को अमर के साथ बात करते क्या देख लिया कि उसके गाल पर ज्ाोरदार थप्पड जड दिया और बडे भाई का हक जताते हुए कहा था, 'ख्ाबरदार जो उस आवारा लडके से आज के बाद मिली, हाथ-पैर काट कर फेेंक दूंगा।

...सारी बातें एक-एक कर राज को इस तरह याद आ रही थीं, जैसे किसी ने कैनवस पर अभी-अभी ताज्ाा तसवीर बनाई हो। उसकी आंखों से आंसू बहे जा रहे थे, जो लाख कोशिशों के बावजूद रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। जितना वह उस बात को भूलना चाहता था, उतनी ही यादें ताज्ाा हो जातीं। दिन का चैन और रातों की नींद उड गई थी। बार-बार उसे एक ही ख्ायाल आ रहा था कि काश! तीन वर्ष पहले उसने अपनी बहन की बात सुन ली होती। माला ने रो-रोकर कहा था, 'भैया एक बार तो मेरा विश्वास करो। जिस इंसान के साथ मुझे ज्िांदगी भर के लिए विदा कर रहे हो, उसके बारे में एक बार तो पता कर लो। राज को लगा, शायद माला के सिर से अभी तक प्यार का भूत उतरा नहीं है, इसलिए वह ड्रामा कर रही है। माला ने मां को भी समझाने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन मां ने भी कह दिया, 'बेटी हम तुम्हारे मां-बाप हैं, तुम्हारा भला-बुरा भलीभांति समझते हैं। आख्िारकार उसकी शादी मनीष से कर दी गई। माला करती भी क्या, मूक बन कर विदा हो गई थी।

फिर भी माला ने कभी अपने परिवार वालों से कोई शिकायत नहीं की। पूछने पर यही कहती कि सब ठीक है। राज भी कभी-कभी फोन पर उसका हाल-चाल पूछ लेता। माला उससे भी कह देती, 'हां भैया, सब ठीक है। शादी के तीन वर्ष बीत चुके थे लेकिन अभी तक माला ने कोई अच्छी ख्ाबर नहीं सुनाई थी। मुंह से भले ही वह कुछ न कहे, लेकिन मां से उसकी स्थितियां छुपी न थीं। एक दिन मां उदासी भरे स्वर से बोलीं, अगर एक बच्चा हो जाता तो शायद माला कुछ ख्ाुश रह पाती। इस पर राज ने बात को हंसी में टाल दिया और बोला, 'अरे मां अभी नई शादी है, हो जाएगा बच्चा भी...। राज को कई बार लगता था कि माला शायद पुराने प्यार को भुला नहीं पा रही है। समय के साथ हर घाव भर जाएगा।

मगर दूरदर्शी पिता को काफी कुछ समझ आने लगा था। रात-दिन बेटी की चिंता में डूबे पिता एक दिन अचानक दिल के दौरे के बाद चल बसे। मरने से पहले इतना ही बोले, 'बेटा, तुम्हारे सिवा माला का इस दुनिया में कोई नहीं है, उसका ख्ायाल रखना। राज इसीलिए कभी-कभी माला का हालचाल पूछ लेता था। संयोगवश उसके एक दोस्त का तबादला उसी शहर में हो गया, जहां माला की ससुराल थी। इत्तफाक यह भी था कि वह उसी मुहल्ले में रहने लगा, जहां माला का घर था। एक दिन माला से आमना-सामना हुआ तो उसकी स्थितियां उसे दिख गईं। माला की हालत पूरा मोहल्ला जानता था, लिहाज्ाा धीरे-धीरे सारी बातें राज के दोस्त तक भी पहुंच गईं। उसने फोन करके राज को सब कुछ बताया।

दोस्त के फोन से राज बहुत दुखी हो गया। तीन साल पहले जल्दबाज्ाी में किए गए शादी के फैसले ने माला की ज्िांदगी बर्बाद कर दी थी। बार-बार उसे एक ही ख्ायाल सता रहा था। पूरे परिवार की ग्ालती की सज्ाा माला अकेले ही क्यों भुगते? उससे रहा न गया, उसने झट से माला को फोन किया और पूछा, 'माला सच-सच बताओ, कैसी हो? आज भी माला ने वही जवाब दिया था, 'भैया मैं ठीक हूं। ज्यादा पूछने पर उसने कहा, 'भैया मैं आपसे बाद में बात करूंगी। इसके कई दिन बाद तक भी माला का फोन न आया। राज बार-बार ख्ाुद को कोसता और उस दिन को याद करता, जब माला ने हाथ जोड कर पापा से कहा था, 'पापा एक बार तो छानबीन कर लीजिए मनीष के बारे में। मुझे पता चला है कि उसे कई बार इलेक्ट्रिक शॉक्स लगे हैं। पिता के ध्यान न देने पर उसने यही बात राज के सामने भी दोहराई, मगर राज ने भी उस पर ध्यान नहीं दिया।

आज फिर राज ने माला को फोन किया और उससे पूछ बैठा, 'सच-सच बताओ माला, क्या मनीष तुम्हें मारता-पीटता है और उसे पागलपन के दौरे अभी भी आते हैं? फोन पर माला की चुप्पी ने उसे सब कुछ समझा दियाष। दोस्त ने उसे बताया था कि मनीष कोई काम-धंधा नहीं करता था। दो-चार जगह नौकरी की भी तो उसके बुरे व्यवहार के कारण उसे निकाल दिया गया। माला एक प्राइवेट स्कूल में पढा कर किसी तरह घर चला रही थी। आए दिन मनीष उसके साथ गालीगलौज करता था और उसे जानवरों की तरह पीट भी देता था। सारा मोहल्ला उसके तमाशों से वाकिफ था। माला बेचारी उफ तक न कर पाती। कहती भी किससे? उसके मायके वालों ने उसकी एक न सुनी थी और उसे जबरन इस परिस्थिति में धकेल दिया गया था। राज को यह बात लगातार कचोट रही थी। वह प्रतिवर्ष नौ दिन नवरात्रि के उपवास रखता था। उसे रह-रह कर बचपन के दिन याद आ रहे थे, जब मां कंजक की पूजा करती तो राज से सभी के पैर धुलवाती थीं और कहती थीं कि कन्याएं देवी का स्वरूप होती हैं, इसलिए हम इन्हें पूजते हैं। वह बार-बार सोचता कि घर में हर वर्ष कन्यापूजन होता है, फिर भी हम झूठी शान और सम्मान की ख्ाातिर अपने घर की कन्याओं की बलि चढा देते हैं। हम लडकियों को उनकी ज्िांदगी के फैसले क्यों नहीं लेने देते? उन्हें मवेशियों की तरह किसी के भी खूंटे से क्यों बांध देते हैं? राज ने ठान लिया था कि वह माला को उस नर्क में नहीं रहने देगा।

इस बीच एकाएक किसी दिन उसकी मुलाकात माला के दोस्त अमर से हुई। अमर माला से शादी करना चाहता था और वह अच्छा लडका था। इसके बावजूद राज को यह बात चुभी कि माला कैसे अपनी शादी का फैसला ख्ाुद ले सकती है। उसे लगता था कि ज्ारूर अमर ने उसकी बहन को फंसाया है और बाद में वह माला को तंग करेगा....।

ख्ौर, अब तो यह बीते ज्ामाने की बात थी। इतने वर्षों बाद अमर से मिल कर उसे अच्छा ही लगा। राज ने ख्ाुद जाकर उससे हाथ मिलाया। दोनों बातें करने लगे और अमर से ही उसे पता चला कि उसने अब तक शादी नहीं की है। उसने यह भी बताया कि माला को लेकर वह गंभीर था और उसे भुला नहीं पाया था। िफलहाल वह नौकरी में ही ख्ाुद को व्यस्त रखने की कोशिश करता है। न जाने क्यों आज राज को अमर की बातें सही लग रही थीं और कहीं मन में राहत भी महसूस हो रही थी कि वह अभी अविवाहित है। अमर की बातें सुनने के बाद राज अपराध-बोध से घिर गया। एकाएक राज अमर से पूछ बैठा, 'क्या अब अगर मैं अपनी बहन का हाथ तुम्हारे हाथ में दूं तो तुम इसे स्वीकार करोगे? अमर ने बेहद सहज भाव से कहा, 'स्वीकारने की बात क्या है भैया, आपका आदेश मेरे लिए पहले भी मान्य था और आज भी मैं उसे मानूंगा। बस, आपका आशीर्वाद चाहिए। अमर से बातें करके राज को बहुत राहत मिली।

एक दिन राज अचानक ही माला की ससुराल जा पहुंचा। बहन की हालत देख कर तो वह दहल गया। माला बहुत बुरी स्थिति में थी। उसके माथे पर चोट के ताज्ो निशान थे। पूछने पर कहने लगी कि बाथरूम में फिसल गई तो चोट लग गई। राज समझ गया कि माला उससे हमेशा अपनी स्थिति छिपाती है। मगर जब भाई का हाथ उसने अपने कंधे पर महसूस किया तो फफक पडी और देर तक रोती रही। इसके बाद राज को किसी सफाई की ज्ारूरत नहीं थी। उसी दिन उसने दामाद को ख्ाूब खरी-खोटी सुना डाली।

माला ने बहुत समझाने की कोशिश की, 'भैया प्लीज्ा, आप चले जाओ। मनीष को कुछ न कहो। मगर राज इन स्थितियों में माला को किसी भी तरह छोडऩे के लिए तैयार नहीं था। जब वह मनीष को डांट रहा था तो मनीष ढिठाई से बोल उठा कि बहन से इतना ही प्यार है तो ले क्यों नहीं जाते अपने साथ। राज ने सीधे-सीधे माला से पूछ लिया कि क्या वह इसके बाद भी इस घर में रहना चाहती है? इस पर माला रो पडी, 'प्लीज्ा भैया, अब यही मेरा घर है। आप यहां से चले जाओ। राज को बहन पर भी ग्ाुस्सा आ गया। चिल्ला उठा, 'आख्िार तुम किस बात की सज्ाा भुगत रही हो? कौन सी ऐसी ग्ालती की है तुमने जो इस राक्षस की मार सहन करती हो रोज्ा? मगर जो माला अपने भाई और मां-बाप के आगे कुछ न बोल पाई, वह भला कैसे बताती कि जिस घर में उसकी शादी की गई है, वहां तो कोई उसे इंसान समझता ही नहीं।

अंतत: राज ने फैसला ले लिया और माला के बहुत रोने और अनुनय-विनय करने के बावजूद माला को अपने साथ घर ले आया। घर आने के बाद भी माला यही कहती रही, 'भैया यह ठीक नहीं हुआ। वह मेरी ससुराल है, मायके में आख्िार कोई भी लडकी कितने दिन रह सकती है? राज बहन के आगे हाथ जोड बैठा, उससे माफी मांगने लगा। वह गहरे अपराध-बोध में डूबता जा रहा था। बार-बार एक ही बात दोहरा रहा था, 'मुझे माफ कर दो माला, तुम्हारी बात कुछ साल पहले सुनी होती तो तुम्हारे इतने साल बर्बाद न होते। मैं तुम्हारा अपराधी हंू। लेकिन अब तुम्हें यह सब नहीं सहन करने दूंगा। मैंने तुम्हारे प्रति अन्याय किया और जो ग्ालती मैंने की है, उसे मुझे ख्ाुद ही सुधारना भी होगा।

राज ने तुरंत वकील से संपर्क किया और घरेलू हिंसा के तहत मामला दर्ज कराया। इसके बाद तलाक का केस डाल दिया। काफी समय तक मनीष और उसके घरवाले साम-दाम-दंड-भेद जैसे नुस्ख्ो आज्ामाते रहे लेकिन राज की कोशिशों के आगे उनकी हार हुई। कुछ ही समय बाद माला का तलाक हो गया। इसके कुछ ही दिन बाद राज ने अमर को घर पर बुलाया और अपनी बहन का हाथ उसे सौंपते हुए बोला, 'आज से तुम दोनों अपनी दोस्ती को नया नाम और पहचान दो। मैं अपनी बहन का हाथ तुम्हारे हाथ में सौंप रहा हूं, इसे हर हाल में ख्ाुश रखना। इसने इतने साल बहुत आंसू बहा लिए। अब भविष्य में कभी ऐसा न हो....।

अमर समेत पूरे परिवार की आंखों से आंसू बह रहे थे और राज बहन के आगे हाथ जोड कर बैठा था। आज उसे ऐसा महसूस हो रहा था, मानो वह बहन का पिता बन गया है और बेटी को विदा कर रहा है। वह ख्ाुश था। उसका अपराध-बोध ख्ात्म हो गया था। एक तरफ लोग दुर्गा विसर्जन की तैयारियां कर रहे थे, दूसरी तरफ वह अपनी बहन की विदाई की तैयारियां कर रहा था।

रोचिका शर्मा


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.