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वायदा

वृद्धावस्था के दर्द को बयां करती एक मार्मिक उर्दू कहानी, जिसका अनुवाद किया है सुरजीत ने।

By Edited By: Published: Thu, 28 Apr 2016 01:07 PM (IST)Updated: Thu, 28 Apr 2016 01:07 PM (IST)
वायदा

अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त बच्चों के पास बीमार मां की तीमारदारी का वक्त नहीं और मां है कि अपने अंतिम समय में हर बच्चे का मुंह देखना चाहती है। मां के एक फोन कॉल ने सबके कार्यक्रम डिस्टर्ब कर दिए मगर अंतिम इच्छा तो पूरी करनी ही थी। वृद्धावस्था के दर्द को बयां करती एक मार्मिक उर्दू कहानी, जिसका अनुवाद किया है सुरजीत ने।

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अम्मो-अम्मो! अभी आप बिलकुल ठंडी पड गई थीं!'

'हम समझे कि...' अम्मो के आसपास खडे उनके तीन बेटे, बहुएं और उनके बच्चे...घबरा गए। अम्मो जिंदा हैं, हम समझे कि हमने उनके मरने का दुख कितनी आसानी से सह लिया...।'

अम्मो सबकी तरफ दुख से देख रही थीं।

उनके सबसे बडे बेटे ने कितनी जल्दी सफेद कपडा डाल कर अम्मो का मुंह छुपाना चाहा था। अगर अम्मो हाथ उठा कर चादर न हटा देतीं तो शायद वे सब दूसरे कमरे में जाकर उन्हें दफन करने की तैयारी शुरू कर देते!

वे सब नजरें झुकाए खडे थे, जैसे अम्मो ने देख लिया कि उनके मरने पर किसी की आंख से एक बूंद आंसू भी नहीं निकलेगा।

दो बरस हो गए, जब डॉक्टर ने कहा था कि कैंसर अम्मो के सारे बदन में फैल गया है। किसी भी वक्त कुछ भी हो सकता है। जबसे यह बात उनकी दोनों बहुओं ने सुनी, वे अम्मो का ज्यादा ख्ायाल करने लगी थीं। हर महीने फोन पर अम्मो की खैरियत पूछतीं। दूसरी बहू इधर नहीं थी। वह इंडिया की गरमी बर्दाश्त नहीं कर सकती थी, फिर भी वह हर साल आती। किसी फाइव स्टार होटल में ठहरती थी। हैदराबाद की सैर-तफरीह से फुर्सत मिलती तो किसी दिन अम्मो की मिजाजपुरसी भी कर लेती थी। तीनों बेटे उनके इलाज के लिए बडी पाबंदी के साथ डॉलर और रियाल भेजते थे। अम्मो के लिए बहुत अच्छा डॉक्टर, बेहतरीन इलाज... घर में हर तरह का आराम...दिन-रात खिदमत करने वाली ख्वाजा बी, जिसे दूर बैठी हुई इनामों से नवाजती रहती थीं। शिकागो में एक दिन सुबह-सुबह ख्वाजा बी का फोन आया,

'बेगम साहब की तबीयत बहुत ख्ाराब है। डॉक्टर साहब बोले कि इनके बेटों को फोन कर दो। जल्दी आने को बोलो...।

फोन से सारे घर में हलचल मच गई। सबके प्रोग्राम डिस्टर्ब हो गए।

'ओफ्फोह... अम्मो हमेशा इसी तरह परेशान करती हैं। भला यह कोई मौसम है इंडिया जाने का? गरमी के मारे मर जाएंगे हम सब! बहू नसीम घबरा गई।

'हेलो... हेलो... !

चारों तरफ से फोन आने लगे।

न्यूयार्क से जमशेद कह रहा था, 'भाईजान! ख्वाजा बी का फोन आया है कि 24 घंटे... लेकिन इस वक्त लीव लेना मुश्किल है!

'लेकिन जमशेद! तुम्हें याद है कि हम सबने अम्मो से प्रॉमिज किया था कि हम चारों भाई मिल कर उनकी डेड-बॉडी उठाएंगे, इसलिए हमें जाना पडेगा। रशीद ने उसे समझाया।

फिर दुबई से तीसरे भाई खुर्शीद का फोन आया, 'भाईजान! हम सब मिलकर अमेरिका तफरीह करने जा रहे थे। अब निशी को भी साथ ले जाऊं तो इंडिया में गरमी बहुत होगी। आप वहां किसी फाइव स्टार होटल में हमारे लिए रिजर्वेशन करवा दीजिए!

'हां भई, मेरे लिए भी इस मौसम में इंडिया जाना बहुत मुश्किल है!

अम्मो अच्छी-भली होंगी। जरा दिल घबराया तो ख्वाजा बी से फोन करवा दिया है।

'ख्ाुर्शीद! अभी मैंने डॉक्टर आरिफ से बात की। वह कह रहे थे कि ज्यादा से ज्यादा 24 घंटे...। 'तो फिर में आ जाऊंगा, दिल्ली के एक सेमिनार का इन्विटेशन भी आया है...।

'अरे फिर तो हम एक हफ्ते में वापस आ जाएंगे न डैड..., पिंकी ने ख्ाुश होकर कहा।

'हां, बेबी! हम चारों भाइयों ने अम्मो से प्रॉमिज किया है कि उनकी डेड-बॉडी...

'आफ्टर डेथ... कितनी मासूम-सी ख्वाहिश है ग्रैंड मॉम की..., बेबी ने मुंह बना कर इंग्लिश में कहा, 'ग्रैंड मॉम ने अपने चारों बेटों के साथ जिंदगी एंजॉय करने का कोई प्रॉमिज क्यों नहीं लिया? उलझी सांसों के दर्द को दिल में थामे, यही बात अम्मो भी सोच रही थीं। सुनसान घर, ख्ााली कमरे, सूना आंगन, अंधेरे कमरे में अकेली लेटी वह दर्द से तडप रही थीं। दवा का कोई असर नहीं होता। बदन का कोई हिस्सा काबू में न था। कांपते हाथ से पानी की बोतल उठाने की कोशिश करतीं तो सारा बिस्तर भीग जाता।

'पानी.... पानी... ख्वाजा बी... कहां मर गई? किसी का फोन आया है..., देखो तो दरवाज्ो पर कौन आया है?

ख्वाजा बी कमरा बंद किए अपने मियां के साथ सोती रहती थीं।

'बुढिया को चिल्लाने की आदत हो गई है। मैं तो पागल हो जाऊंगी मियां! कोई दूसरी नौकरी ढूंढ दें जी अब...। उनके मियां की वकालत बस यूं ही चलती थी, मगर अम्मो ने जायदाद बेच कर चारों बेटों को डॉक्टर-इंजीनियर बना दिया। अच्छी डिग्रियां मिलते ही सबके पंख निकल आए और उन्होंने अमेरिका की तरफ उडने की ठानी। अम्मो को यह बात अच्छी न लगी। इतनी दूर .. अल्लाह मियां के पिछवाडे? हम सब अमेरिका में जा कर बसेंगे?

'हम सब ...? तुम्हें कौन ले जाएगा अमेरिका? बच्चों के अब्बा ने हंस कर कहा था,'अमेरिका में मां-बाप नहीं रहते हैं। वह नौजवानों का मुल्क है!

'अच्छा! तो मां-बाप कहां जाएंगे? अम्मो ने आश्चर्य से पूछा था।

'कूडे की टोकरी में! अब्बा ने ख्ाफा होकर कहा था।

वीरान घर के आंगन में बैठी कबूतरों को दाना डालती अम्मो सोचती थीं, कूडे का ढेर बन गया है यह घर! बार-बार लाइट चली जाती है। अंधेरे में माचिस नहीं मिलती। पोस्टमेन ख्ात फेंक जाए तो वह किसी क्यारी के पीछे पडा महीनों बाद मिलता है। वैसे भी उनके बेटे अब ख्ात लिखने की पुरानी रस्म भूल चुके हैं। जरूरत हुई तो फोन कर लेते हैं। दूध वाला दूध फाटक पर रख कर चला जाता है तो रोज कुत्ता उठा कर ले जाता है। कभी आंगन में किसी बच्चे की गेंद गिर जाए तो अंदर आने से पहले वह अम्मो की सूरत देख कर भाग जाता है। रिश्तेदारों को फुर्सत नहीं मिलती आने की।

कितनी बार वह फोन पर कहती थीं, 'रशीद, अब मैं तुम्हारे पास आ जाऊंगी। मुझे रोज बुख्ाार आ जाता है। खांसी बहुत बढ गई है। अकेले घर में जी घबराता है।

'मगर अम्मो, आपकी बीमारी का इलाज यहां बहुत महंगा है। घर में कोई नहीं रहता। आपकी देखभाल कैसी होगी? रशीद अम्मो को अपनी मजबूरी सुनाता था।

'अच्छा, तो फिर हनी और तारिक से कहो, मुझ से फोन पर बात करें। बच्चों को देखने को को जी चाहता है मेरा...।

बच्चों को याद कर उन्हें रोना आ जाता था।

'बात यह है अम्मो, बच्चों को उर्दू नहीं आती। वे आपकी बात नहीं समझ सकते।

अम्मो फोन रख देतीं। मेरी बात कोई भी नहीं समझता। न बच्चे, न उनके मां-बाप। जब तीनों भाई अमेरिका गए तो अम्मो-अब्बा के पास हमीद को छोड गए थे।

हमीद का दिल पढाई में नहीं लगता था। सारा दिन निकम्मे दोस्तों के साथ घूमता। कभी स्टूडेंट्स यूनियन का झंडा थामे सडकों पर घूम रहा है तो कभी किसी सियासी पार्टी के साथ नारे लगा रहा है। फिर एक दिन सुना, वह किसी पार्टी में शामिल हो गया है।

'तुम्हारे इम्तिहान में एक महीना रह गया है। स्टडी क्यों नहीं करते? अब्बा उसे बार-बार याद दिलाते थे।

'अब्बा... मैं इस साल इम्तिहान नहीं दूंगा। मुझे इलेक्शन का काम करना है!

अब्बा बहुत ख्ाफा हुए। अम्मो ने रो-रोकर समझाया। भविष्य के भयानक नक्शे खींचे, जब जिंदगी भर भाइयों के आगे हाथ फैलाना पडेगा। मगर हमीद अब घर कम आता था। फिर ख्ाबर आई कि विरोधी पार्टी के मेंबर को मारने के जुर्म में हमीद गिरफ्तार हो गया है। सुना है, वह आदमी अस्पताल में मर गया!

सारे मुहल्ले के लोग अब्बा-अम्मो के पास अफसोस प्रकट करने आए। न जाने कौन से गुनाह की सजा मिली कि हमीद इस घर में पैदा हुआ। अब उसे फांसी की सजा मिलेगी। दोस्त-रिश्तेदार शोक प्रकट करने लगे।

'फांसी पर चढेंगे हमीद के दुश्मन! अब वह हमारा हीरो है! हमीद के दोस्त कह रहे थे। उनकी पार्टी बहुमत में आ गई थी। कुछ दिनों तक मुकदमा चलता रहा, फिर मामला ठप हो गया। एक दिन हमीद का एक दोस्त आया तो उसने अम्मो से कहा, 'कोई पार्टी वर्कर दो-चार मर्डर कर दे तो पार्टी टिकट देने पर मजबूर कर देती है।

वही हुआ, गुनाहों की लंबी फेहरिस्त ने हमीद को पार्टी का खास लीडर बना दिया।

'अब देखता हूं कि हमारे हलके का कौन वोटर है जो मुझे वोट दिए बगैर जिंदा रह सकता है।

अम्मो और अब्बा दम साधे बैठे रहते थे। जब गले में फूलों के हार डाले, जुलूस के साथ हमीद घर आया, अब्बा दोनों हाथों में मुंह छुपाए बैठे थे। वह अब्बा से गले मिलने के लिए झुका तो अब्बा नीचे गिर पडे।

फिर हमीद मंत्री बन गया और जिद की, 'अम्मो मेरे साथ दिल्ली चलो, सरकारी बंगले में रहना! गवर्नमेंट के झंडे वाली कार में घूमना, ठाठ करना। अम्मो ने 'मंत्री की अम्मी बनने के लिए नए जोडे सिलवाए, नई चप्पल खरीदी, मगर वह मंत्री के बंगले में फिट न हो सकीं। नौकरों से गोश्त-तरकारी का हिसाब मांगतीं। चौकीदार और ड्राइवर के सलामों के जवाब में 'जीते रहो, सलामत रहो! कह कर ख्ाुश होतीं। बंगले के लॉन में खाट डालकर पापड बेलने बैठ जातीं।

इसलिए 'मंत्री की बेगम ने उन्हें फिर वहीं भेज दिया, जहां वह सिर झुकाए अचार-मुरब्बे बनाने में जुटी रहती थीं।

...तीन दिन हो गए। सब अम्मो के आसपास हाथ बांधे खडे थे। बार-बार ऑक्सीजन की ट्यूब ठीक करते। अम्मो को कुछ होने वाला है। आने वाले दुख को वे अपने चेहरों पर चित्रांकित कर चुके थे। अम्मो बडी मुश्किल से आंख खोल कर सबको देखतीं।

'हमीद नहीं आया? मेरा हमीद..! शायद अम्मो का दम हमीद में अटका है!

ख्वाजा बी कह रही थी कि हमीद दिल्ली में है। इस बार उसकी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। अब हमीद मंत्री नहीं रहेगा। ऐसे वक्त वह दिल्ली से बाहर कैसे जा सकता है!

'मगर हम सबने अम्मो से वायदा किया था कि उनके आख्िारी वक्त... रशीद बहुत ग्ाुस्से में था। अम्मो बार-बार आंखें खोलतीं।

तुम सबको पास देख कर जी चाह रहा है कि बच्चों को अपने हाथ से बना पुलाव...

'अल्लाह... इस वक्त भी अम्मो का दिल पुलाव में अटका हुआ है.... तौबा! बडी बहू ने गालों को छूकर कहा।

'अम्मो! यसीन शरीफ पढिए... अल्लाह को याद कीजिए...

'मेरा हमीद अब मेरे जनाज्ो को कंधा देने... वह रोने लगीं... 'तुम सबने वायदा किया था कि मेरे जनाज्ो को मिल कर उठाओगे...।

'हेलो... हेलो.. अब अम्मो का क्या हाल है? हमीद का दिल्ली से फोन आ गया।

'क्या? ऑक्सीजन दी जा रही है, मगर अब ऑक्सीजन देने से क्या फायदा....? डॉक्टर कह चुका है कि अंतिम समय है। भाईजान, मेरी बात सुनिए... अगर ख्ाुदा न करे, अम्मो को आज रात में कुछ हो गया तो प्राइम मिनिस्टर भी मुझे पुरसा देने आएंगे लेकिन परसों हमारी मिनिस्टरी ख्ात्म हो रही है। इसलिए आप अम्मो को फौरन किसी शानदार हॉस्पिटल में ले जाइए। इंतकाल की न्यूज टी.वी. पर आए तो उस हॉस्पिटल का नाम भी होना चाहिए, फिर उसने कहा, 'जरा भाभी को फोन दीजिए...।

'हेलो... भाभी सब इंतजाम अच्छा कीजिए। ख्ार्च की फिक्र मत करना। मुमिकन है, टी.वी. वाले भी उन्हें न्यूज में शामिल करने के लिए घर पर आएं।

'आप फिक्र न करें हमीद भाई! मैंने इंतजाम कर दिया है, भाभी ने इत्मीनान दिलाया।

'क्या कह रहा है हमीद... कब आ रहा है? अम्मो ने डूबती सांसों को रोक कर पूछा।

तब ड्राइंगरूम में जाकर ख्ाुर्शीद ने कहा,

'कल मुझे दिल्ली में एक सेमिनार अटेंड करना है.. और मैं सिर्फ तीन दिन की लीव ले कर आया था।

'बच्चे गरमी से घबराए जा रहे हैं, अमेरिकन बहू ने मुंह बना कर कहा।

सुबह-सुबह ... अम्मो की आंख खुलने से पहले वे सब चुपके-चुपके गेट से बाहर निकले। उन्होंने ख्वाजा बी को अम्मो की अच्छी तरह देखभाल करने की हिदायत दी और ढेर सारे डॉलर, रियाल थमा दिए।

'अम्मो की खैरियत बताती रहना...बाय!

ख्वाजा बी अंदर आई और यह देख कर डर गई कि अम्मो की आंखें खुली थीं। शायद उन्होंने अपने बेटों को जाते देख लिया था।

फिर उसने एक दुकान का फोन नंबर लगाया, 'हेलो.. मय्यत ले जाने वाली एक लॉरी भेज दीजिए। साथ में चार आदमी भी हों। और कुछ नहीं चाहिए। उनके लडके हर इंतजाम कर गए हैं।

जीलानी बानो


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