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तुम्हारे बिना

आज स्त्री-पुरुष दोनों मिल कर परिवार का जीवन-यापन कर रहे हैं मगर जैसे ही कोई समस्या आती है, स्त्री को ही करियर छोडऩा पड़ता है। क्या उसका करियर महत्वपूर्ण नहीं है? इसी सवाल से जूझ रही है इस कहानी की नायिका।

By Edited By: Published: Mon, 29 Feb 2016 03:57 PM (IST)Updated: Mon, 29 Feb 2016 03:57 PM (IST)
तुम्हारे बिना

आज स्त्री-पुरुष दोनों मिल कर परिवार का जीवन-यापन कर रहे हैं मगर जैसे ही कोई समस्या आती है, स्त्री को ही करियर छोडऩा पडता है। क्या उसका करियर महत्वपूर्ण नहीं है? इसी सवाल से जूझ रही है इस कहानी की नायिका।

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फिस के बाहर गीता को देख आश्चर्यमिश्रित खुशी से मैं चिल्लाई, 'अरे गीता, तुम यहां कैसे? न कोई फोन, न मेसेज....!

'बस यूं ही मन किया तो चली आई, गीता के चेहरे पर हलकी सी मुस्कुराहट आकर लुप्त हो गई।

'क्या बात है कुछ परेशान लग रही हो... घर में सब ख्ौरियत तो है न!

'सब ठीक है। अब घर तो चलो। मैंने कार स्टार्ट की और गीता बगल की सीट पर बैठ गई। घर पहुंच कर मैंने फिर पूछा, 'अब बताओ, इतनी उदास क्यों हो?

'अनु, तुम्हारे और रजत के बीच आजकल कैसा चल रहा है? गीता ने पूछा।

'मतलब?

'मतलब यह कि तेरा उसके साथ कोई कॉन्टैक्ट है या नहीं?

'ऐसा क्यों कह रही हो गीता? क्या रजत ने कुछ कहा है?

'अरे नहीं, उसने मुझसे कुछ नहीं कहा, मगर तुम मेरी बात का जवाब दो।

'कॉन्टैक्ट क्यों नहीं होगा यार...पति है मेरा। हां, इधर व्यस्त कुछ ज्य़ादा हो गई हूं। पहले रोज्ा फोन पर बात हो जाती थी, लेकिन आजकल ऑफिस से लौटते-लौटते ही इतनी देर हो जाती है कि फोन करती भी हूं तो लंबी बात नहीं हो पाती।

'तुम दो-तीन महीने से दिल्ली आई भी नहीं, गीता ने फिर टहोका।

'अरे भई, इतनी बिज्ाी हूं कि....

'कि अपना पति-घर भी भूल चुकी हूं!

गीता व्यंग्य से बोली।

'कैसी बात कर रही हो गीता, अपना घर भी भला कोई भूलता है। बस कुछ दिनों की बात है, फिर मैं दिल्ली ट्रांस्फर करवा लूंगी।

'तब तक शायद बहुत देर हो जाए।

गीता की बात पर मैं चौंकी, 'क्या मतलब? तुम कुछ छिपा रही हो मुझसे? प्लीज्ा बताओ न क्या बात है?

'अनु, रजत तुमसे अलग होने के बारे में सोच रहा है। गीता गंभीर होकर बोली।

'यह क्या कह रही हो तुम? देखो गीता, मुझे ऐसे मज्ााक पसंद नहीं हैं।

फिर मैंने डरते-डरते पूछा, 'रजत की ज्िांदगी में कोई आ गया है क्या? गीता ने सहमति में सिर हिलाया तो मेरे पैर के नीचे मानो ज्ामीन खिसकने लगी।

'कौन....कौन है वो? डूबते स्वर में मैंने

पूछा तो गीता बोली, 'सारा...। रजत और गौरव के बॉस की बेटी के रिसेप्शन में उससे मुलाकात हुई थी। ख्ाूबसूरत-स्मार्ट लडकी है। रजत तो पहली ही बार मिल कर उससे प्रभावित हो गया। दूसरी मुलाकात मेरे बर्थ डे पर हुई। हम साथ डिनर पर गए थे। तुम्हें फोटो दिखाऊं? गीता ने मोबाइल पर उसकी तसवीर दिखाई। रजत के बगल में बैठी थी वह और किसी बात पर खिलखिला रही थी।

'मैं बीच में भैया के पास अहमदाबाद चली गई थी। लौटी तो गौरव ने मुझे रजत और सारा के अफेयर के बारे में बताया।

गीता की बात ख्ात्म हुई तो मैंने कहा 'लेकिन रजत ऐसे क्यों करेंगे? यार हम पति-पत्नी हैं, फेरे लिए हैं हमने, कोई मज्ााक है कि दो महीने पत्नी से दूर हो गए तो कहीं और रिश्ता जोड लिया....? मैं भी बेबस तो हूं नहीं गीता जो पति की ज्य़ादती सहन करूं। मैं भी उसे ऐसा सबक सिखाऊंगी कि सिर से इश्क का भूत उतर जाए..., क्रोध और अपमान से मेरी आंखों से आंसू बहे जा रहे थे।

रोते हुए मैं बोली,...'याद है तुम्हें, मेरी सास को हार्टअटैक पडा था। पूरे एक महीने मैंने ऑफिस से छुट्टी लेकर उनकी सेवा की थी। उसका यह सिला दिया उसने मुझे?

'मुझे सब याद है अनु, मगर सच कहूं तो कहीं न कहीं इन स्थितियों के लिए तुम भी ज्िाम्मेदार हो। आख्िार पुरुष शादी क्यों करता है? इसीलिए न कि अपनी लाइफ में सेटल हो जाए! एक घर हो, पत्नी, बच्चा हो.....मगर रजत तो शादी करके तनहा हो गया। करियर की चाह में उसकी बीवी ही उससे दूर जाकर बैठी है...। ऐसे में उसकी ज्िांदगी में कोई और आ जाए तो इसमें आश्चर्य कैसा?

'गीता, तुम दोस्त मेरी हो और पक्ष रजत का ले रही हो? मैंने ग्ाुस्से में कहा।

'अनु, मैं तुम्हारी सहेली हूं, तुम्हारे साथ कुछ भी ग्ालत होगा तो मुझे दुख होगा। इसीलिए तो यह सब बताने चली आई।

गीता खाना खाकर सो गई, लेकिन मेरी आंखों से नींद उड चुकी थी। उसकी कही हुई एक-एक बात दिल में हलचल पैदा कर रही थी। रजत मुझे छोड सकते हैं, यह बात मेरा दिल मानने को तैयार नहीं था। दूसरी ओर गीता मेरे बचपन की सहेली है, वह भला क्यों झूठ बोलेगी! उसी ने हमारी शादी करवाई थी। रजत गौरव के दोस्त थे और गीता-गौरव की शादी में ही उन्होंने मुझे देखा था। गीता ही मैरिज प्रपोज्ाल लेकर हमारे घर आई थी। रजत बेहद केयरिंग और समझदार इंसान हैं। मेरी आंखों के आगे एक-एक पल रील की तरह चलने लगा। मेरी छोटी-छोटी ख्वाहिशें पूरी करना, घर के कामों में मदद करना, मुझसे दिल की हर बात शेयर करना....कौन सी ऐसी चाह थी जो मेरे मुंह से निकली हो और रजत ने न पूरी की हो। फिर वही रजत इतना कैसे बदल सकते हैं!

हमारी शादी को दो साल हो चुके थे। मुझे याद है, एक रात रजत ने रोमैंटिक होते हुए मुझसे पूछा था, 'अनु, क्या अब हमें परिवार बढाने के बारे में नहीं सोचना चाहिए?

मैंने ख्ाुश होकर कहा, 'हां रजत, मैं तो ख्ाुद यह बात कहना चाहती थी तुमसे, मगर कह नहीं पा रही थी। हम बच्चे और उसके साथ आने वाली ज्िाम्मेदारियों को लेकर देर रात तक बात करते रहे।

दो दिन बाद ऑफिस पहुंची तो पता चला, कंपनी मुझे प्रमोशन पर मुंबई भेजना चाहती है। इस अप्रत्याशित ख्ाबर से मेरी ख्ाुशी का ठिकाना न रहा। पिछले छह माह से मैं प्रमोशन का इंतज्ाार कर रही थी। शाम को रजत आए तो यह ख्ाबर सुनाई। वह भी ख्ाुश हो गए, लेकिन जैसे ही मुंबई जाने की बात सुनी, उनका चेहरा मुरझा गया। बोले, 'मुंबई कैसे जाओगी अनु? तुम्हें प्रमोशन छोडऩा होगा।

'नहीं रजत, मैं प्रमोशन नहीं छोडऩा चाहती। तुम जानते हो न, मैं कब से इस दिन की प्रतीक्षा कर रही थी। प्लीज्ा, हां कर दो।

'अनु, मैंने तुम्हें किसी भी चीज्ा के लिए मना किया? पता नहीं क्यों तुम्हारे दूर जाने की बात मैं सहन नहीं कर पा रहा हूं।

मैंने फिर समझाने की कोशिश की, 'रजत, एक साल की बात है। फिर मैं यहीं ट्रांस्फर करा लूंगी।

'एक साल कोई छोटा पीरियड नहीं होता, फिर हमें परिवार भी तो बढाना है....।

'रजत, तुम अपना ट्रांस्फर मुंबई क्यों नहीं करा लेते, मैंने सुझाव दिया था। रजत मुझे घूरते हुए बोले, 'अनु, यहां हमारा घर, दोस्त और रिश्तेदार हैं। वहां कौन है?

'माई डियर हज्बैंड, लोग नौकरी के लिए विदेश चले जाते हैं और तुम हो कि मुंबई जाने में हिचक रहे हो। मगर मैं जाऊंगी...।

गीता और गौरव ने मुझे समझाया, लेकिन मैं यह चांस किसी भी कीमत पर नहीं गंवाना चाहती थी, आख्िार में सभी मेरी ज्िाद के आगे हार गए।

शुरुआत में मैंने रजत को बहुत मिस किया, हर महीने 2-3 दिन की छुट्टी पर दिल्ली चली जाती। फिर व्यस्तता बढ गई। अब तो फोन भी दो-तीन दिन में करती। पिछले तीन-चार दिन से मैंने रजत से बात भी नहीं की। यही सोचते-सोचते रात बीत गई, मगर मेरी आंख न लगी। मैं बहुत अकेलापन महसूस कर रही थी। अब तक हर दुख-सुख गीता के साथ बांटती थी, पर इस मामले में तो वह भी मेरे साथ नहीं थी। ख्ाुद तो शादी करके घर बैठी है, भला मेरी दुविधा कैसे समझेगी? मेरी आंखों से आंसू निकल पडे। एकाएक पापा की बातें याद आ गईं। वह कहते थे, आंसू इंसान की कमज्ाोरी ज्ााहिर करते हैं। कमज्ाोर इंसान जीवन में कुछ हासिल नहीं कर सकता। पापा की बात याद आते ही मुझे अपनी राह समझ आने लगी। अगली सुबह गीता को वापस दिल्ली जाना था। एयरपोर्ट जाते समय मैंने कहा, 'गीता, तुम मुझे सारा का मोबाइल नंबर दो।

'उससे क्या होगा?

'मैं सारा से बात करूंगी।

'ठीक है, मैं पता करके देती हूं। वैसे अनु मेरा कहा मानो, नौकरी का चक्कर छोडो और दिल्ली वापस चलो। सब ठीक हो जाएगा।

'ठीक है गीता, मैं इसी संडे दिल्ली आ रही हूं..., गीता को छोड कर मैं ऑफिस आ गई और ख्ाुद को काम में झोंक दिया। अगले दिन ही गीता ने मुझे सारा का नंबर दिया। कांपते हाथों से मैंने नंबर डायल किया। दूसरी ओर से आवाज्ा आई, 'हेलो, सारा स्पीकिंग।

'सारा, मैं रजत की पत्नी अनु बोल रही हंू।

'हां, कहिए, सारा का रूखा स्वर सुना तो मैंने गला खंखारते हुए कहा, 'मुझे पता चला है, तुम्हारा मेरे पति के साथ अफेयर चल रहा है। क्या यह सही है?

'हां, तुमने ठीक सुना है।

मैं उस लडकी की बेशर्मी पर अचंभित होते हुए बोली 'एक विवाहित पुरुष को फंसाते तुम्हें शर्म नहीं आई? ख्ाुद लडकी हो, दूसरी लडकी का जीवन क्यों बर्बाद कर रही हो।

'...तुम यह सब मुझसे क्यों कह रही हो? अपने पति से बात करो न! हां, लेकिन तुम्हारे पास वक्त ही कहां है उससे बात करने का। तुम तो अपनी नौकरी में ही ख्ाुश हो न! कितनी स्वार्थी हो तुम? उधर से सारा ने फोन ही काट दिया।

ठीक ही तो कह रही है वो लडकी। जब दोष ख्ाुद मेरे पति का हो तो दूसरी लडकी के मुंह क्या लगना। मैं ख्ाुद को संडे तक नहीं रोक सकी। ऑफिस में लीव एप्लीकेशन भेजी और दिल्ली चली आई।

टैक्सी घर के बाहर रुकी तो देखा, मेरी गाडी के आगे ही एक गाडी और रुकी। उसमें से गौरव उतरा और अब वह घर के भीतर जा रहा था। गीता ने बताया था कि वह पंद्रह दिनों से हैदराबाद में था। न जाने क्या हुआ कि मैं घर के बाहर ही ठिठक गई। घर में रजत, गीता और गौरव की आवाज्ों आ रही थीं। रजत कह रहे थे, 'गौरव, तुम्हें एक सरप्राइज्िांग न्यूज्ा देनी है, इसीलिए एयरपोर्ट से सीधे यहीं बुला लिया।

'कैसी न्यूज्ा? गौरव ने पूछा।

'अनु जॉब छोडकर दिल्ली आ रही है।

'अरे वाह! मगर यह हुआ कैसे?

रजत ने हंसकर कहा, 'दरअसल मैंने और गीता भाभी ने मिलकर एक प्लैनिंग की। गीता भाभी मुंबई गईं और इन्होंने अनु से कहा कि मेरा सारा नाम की लडकी से अफेयर चल रहा है। हमें मालूम है कि यह सुनते ही वह दौडी चली आएगी...।

'हां, मगर यह सारा है कौन? गौरव ने पूछा। गीता बोली, 'मेरी कज्ान मिताली ही सारा है। उसकी फोटो दिखा कर हमने अनु की उससे बात भी करा दी। मिताली ने क्या ख्ाूब ऐक्टिंग की कि अनु ताड भी नहीं पाई।

यह सुनना था कि मेरे क्रोध की सीमा न रही। दनदनाती अंदर जा पहुंची और बोली, 'अफसोस तुम लोगों की प्लैनिंग काम नहीं आई। अचानक मुझे सामने पाकर तीनों अचंभित रह गए।

'अरे अनु तुम अचानक! तुम तो कल आने वाली थी न! रजत हडबडा गए।

'अच्छा हुआ, जो आज आ गई। मुझे पता तो चला कि तुम लोगों को मेरी भावनाओं की कितनी चिंता है।

'अनु, मैं तुम्हारे बिना रह नहीं पा रहा था, इसलिए मैंने गीता से वह सब कहलवाया।

'सॉरी अनु, गीता बोली। मैंने उसकी बात

का जवाब नहीं दिया और रजत से कहा, 'प्लीज्ा रजत, थोडा सोचो। मुझे बताओ, अगर मेरे बदले तुम्हें प्रमोशन पर मुंबई जाना होता तो क्या तुम नहीं जाते?

'अनु, मेरी बात और है। मैं पुरुष हूं और मेरी सैलरी से घर चलता है।

'आज लडकियां भी तो घर चला रही हैं रजत..., माता-पिता उन्हें भी लडकों की ही तरह पढा-लिखा रहे हैं, उनका करियर भी बना रहे हैं। और हां, प्लीज्ा मेरी बात को अन्यथा मत लेना। जहां तक सैलरी की बात है तो क्या मेरी सैलरी काम नहीं आती? क्या घर ख्ारीदने में मेरा पैसा नहीं लगा है? रजत ने तुरंत बात बदली, 'अनु, तुम्हें इस बात से ख्ाुशी नहीं हुई कि अफेयर वाली बात ग्ालत थी, जो सच भी हो सकती थी!

'तुम ठीक कह रहे हो रजत, यह बात सच भी हो सकती थी, मगर इसकी क्या गारंटी कि मेरे साथ होने पर भी तुम किसी दूसरी लडकी के प्रति आकर्षित नहीं होगे। रजत, पति-पत्नी का रिश्ता भरोसे पर ही टिकता है। विश्वास टूट जाए तो रिश्ता भी नहीं बचता। जिस रिश्ते में इतनी भी गहराई न हो कि ज्ारा सी दूरी बर्दाश्त कर सके, उस रिश्ते का क्या मतलब? तुम्हें याद है, शादी के बाद तुमने मुझसे कहा था, हम दोनों हर कदम पर एक-दूसरे का साथ देंगे, एक-दूसरे की ताकत बनेंगे, कमज्ाोरी नहीं। बचपन से ही मैंने ज्िांदगी में ऊंचा मुकाम हासिल करने का सपना देखा था। आज जब मुझे कामयाबी मिल रही है, तुम अवरोध पैदा कर रहे हो। अपने करियर के साथ मैं समझौता नहीं कर सकती।

कमरे में ख्ाामोशी छा गई। थोडी देर बाद गीता और गौरव ने फिर से मुझे सॉरी बोला और उठकर चले गए। मैं भी अपने घर को सहेजने में जुट गई। दो दिन बाद मुझे वापस मुंबई लौटना था। रात में रजत ने धीरे से कहा, 'अनु, सॉरी, मैंने तुम्हारा दिल दुखाया। मैं जानता हूं कि मैंने तुम्हारे साथ ग्ालत किया, मगर इसके पीछे मेरी मंशा ग्ालत नहीं थी। अच्छा हुआ, जो तुमने मुझे बता दिया कि मैंने कहां ग्ालती की, इसी से मेरी सोच को दिशा मिली। मैंने ख्ाुद को तुम्हारी जगह रख कर देखा तो मैं शांत हो गया। यदि मेरे लिए मेरा करियर अहम हो सकता है तो तुम्हारा करियर भी तो तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण हो सकता है! देखो, नाराज्ा मत हो, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। हो सकता है, मैं ही मुंबई ट्रांस्फर करा लूं। प्लीज्ा अब ग्ाुस्सा थूक दो। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।'

'रजत, मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकती,' कहते हुए मैं रजत के सीने से लग गई।

रेनू मंडल


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