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परलोक सुधारने के लिए

परलोक सुधारने के लिए कई बार लोग इहलोक को बिगाड़ बैठते हैं। अम्मा की इच्छा थी भागवत कथा सुनने की। लिहाज़्ाा इसका आयोजन किया गया। मगर उन्हें कहां मालूम था कि अपनी भक्ति व श्रृद्धा की ख़्ाातिर उन्हें इतना ख़्ार्च करना पड़ेगा कि बजट हिल जाएगा और ऐसे आयोजनों पर

By Edited By: Published: Mon, 01 Feb 2016 02:54 PM (IST)Updated: Mon, 01 Feb 2016 02:54 PM (IST)
परलोक सुधारने के लिए

परलोक सुधारने के लिए कई बार लोग इहलोक को बिगाड बैठते हैं। अम्मा की इच्छा थी भागवत कथा सुनने की। लिहाज्ाा इसका आयोजन किया गया। मगर उन्हें कहां मालूम था कि अपनी भक्ति व श्रृद्धा की ख्ाातिर उन्हें इतना ख्ार्च करना पडेगा कि बजट हिल जाएगा और ऐसे आयोजनों पर पुनर्विचार करने की ज्ारूरत पड जाएगी।

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जबसे अम्मा के दिल के वॉल्व ख्ाराब हुए हैं, चिकित्सकों ने शल्य चिकित्सा का सुझाव दिया है। वानप्रस्थ संपन्न कर रही अम्मा को परलोक की चिंता सताने लगी है। बाबूजी बिना तीरथ-बरत किए परलोकवासी हो गए, वे भी चली गईं तो परलोक न सुधरेगा। ख्ाूब सोच-विचार कर कहने लगीं, 'भागवत सुनना है। बडे पुत्र यज्ञ दत्त को लगा, ऐसी अनोखी बात अम्मा ने कभी नहीं की। बोले, 'अम्मा सर्जरी होनी है और तुम हो कि भागवत की साध लिए बैठी हो।

'कुछ धरम-करम नहीं किया। भगवान को क्या मुंह दिखाएंगे? छोटे पुत्र रुद्रनाथ ने उनका हौसला तोडा, 'जो पैसा भागवत सुनने में ख्ार्च करोगी, उससे किसी ग्ारीब को पढा दो। यही धरम-करम है।

'रुद्र हम तो भागवत सुनेंगे। लडके समझ गए कि अम्मा हठ न छोडेंगी। पंडित महावीर जी को बुलाया गया। पंडित जी पुलकित होकर बोले, 'मेरे फुफेरे भाई भागवत बांचते हैं। मैं बात करता हूं। वैसे तो इक्यावन हज्ाार से नीचे नहीं लेते, पर यह घर की बात है। मैं इकतीस हज्ाार में तैयार कर लूंगा। ईश कृपा रही तो कार्य सिद्ध होगा। आज ही कॉल करके पूछता हूं कि कब समय निकाल पाएंगे। बात करके पंडित जी चौथे दिन आए, 'मई में समय मिल जाएगा। जो-जो सामग्री चाहिए, मैंं लिख लाया हूं। पंडित जी ने सूची यज्ञ दत्त को पकडा दी।

यज्ञ के मुख पर तनाव देख पंडित जी बोले, 'धर्म-कर्म में पैसे का नहीं, भावना का महत्व होता है। आप पर भगवान की कृपा है।

अम्मा ने पूछा, 'स्वामीजी कितना लेंगे?

'कहा तो, इक्यावन से कम नहीं लेंगे, पर मैंने इकतीस हज्ाार की बात कर ली है।

...आननफानन कार्ड छपे, सबको भेजे गए। घर के बाहर चौगान में यज्ञशाला का निर्माण हुआ। लाल पताका फहराई गई, ताकि लोगों को कथा के बारे में सूचना मिल सके। ठीक दो दिन पहले स्वामी जी ने यज्ञ दत्त से बात की, 'घर में भीड होगी, हमारे लिए अच्छे होटल में तीन कमरे बुक करा दें। हमारा भोजन हमारा शिष्य बनाता है। यज्ञ दत्त के लिए यह अलग और नया अनुभव था। अम्मा से कहा, 'स्वामी जी के लिए अच्छे होटल में तीन कमरे बुक कराने हैं। आजकल के पंडित-पुरोहित हैं। मोबाइल रखते हैं, एसी गाडी में चलते हैं...।

प्रात: दस बजे पूजा का मुहूर्त....मगर स्वामी जी इसके बाद अपनी मार्शल से तीन युवा शिष्यों के साथ पधारे। इनमें लाहिडी मार्शल चलाता और जाप करता है। ब्रह्म्ाचारी भोजन बनाता और जाप करता है। परमानंद स्वामीजी के साथ भागवत बांचता है। स्वामी जी के माथे पर इतना तेज था कि वास्तविक आयु का पता लगाना कठिन था। घंटे, घडिय़ाल, कलश, आरती से स्वागत हुआ। लाल वस्त्र में लिपटी भागवत सामूहिक मंत्रोच्चार के साथ अम्मा के सिर पर रखी गई। अम्मा यज्ञशाला की जानिब चलीं। तबला, हारमोनियम, सिंथेसाइज्ार गाडी से उतारे गए। स्वामीजी की नज्ार प्रवेश द्वार पर पडी तो ठिठक कर बोले, 'यज्ञ जी हमने कहलाया था हमारे नाम का बैनर गेट पर लगवा दें, ताकि लोगों तक सूचना पहुुंचे।

सामूहिक मंत्रोच्चार के साथ पूजा आरंभ हुई। अम्मा ने भागवत पाठ का संकल्प स्वामी जी को सौंपा। आरती के बाद स्वामी जी माइक पर ज्ाोर से बोले, 'भगवान श्रीकृष्ण की जय! हर हर महादेव! स्वामी जी और शिष्यों ने अपने हाथ उठा लिए। फिर स्वामी जी ने व्याख्या दी, 'ईश-स्मरण दोनों हाथ उठाकर करना चाहिए। इसका अर्थ है- स्वयं को ईश्वर के आश्रय पर छोड देना।

यज्ञशाला में स्वामी जी का प्रभुत्व है। घर के भीतर रिश्तेदारों का प्रपंच। अम्मा समय पर न दवा ले पाई, न खाना। ...द्वार पर लहराते बैनर ने स्वामी जी को गदगद किया। यज्ञ और उसकी पत्नी गोपा ने आरंभिक पूजा की। पांच सौ रुपये स्वामी जी को और 251 रुपये उनके संगी-साथियों को दक्षिणा-स्वरूप दिए गए। आरती हुई और सभी कथा बांचने में लग गए। प्रत्येक अध्याय की समाप्ति पर स्वामी जी हाथ से संकेत करते और अम्मा हाथ में लिया अक्षत व पुष्प कलश की जानिब छोड देती। अम्मा ने सुना है, भागवत पाठ कानों तक न पहुंचे तो पुण्य नहीं मिलता। चिंतित होकर बोलीं, 'स्वामी जी आप मौन होकर बांच रहे हैं। हम सुन नहीं पा रहे हैं। स्वामी जी के महीन अधरों पर मुस्कराहट तैर गई, 'मैं यह सब आपके ही निमित्त कर रहा हूं। मन में शंका न रखें। एक दिन में साठ अध्याय बांचने पडते हैं, जो मैं और परमानंद बांच रहे हैं। स्वामी जी की आवाज्ा प्रभावशाली है। अम्मा को आश्वस्त कर स्वामी जी ने छोटे से जनसमूह पर नज्ार डाली। वह चाहते हैं, लोग ज्य़ादा आएं तो चढावा अधिक मिले। दोपहर के भोजन के लिए होटल जाने से पूर्व उन्होंने यज्ञ दत्त को बुलाया, 'यज्ञ जी, सबको आमंत्रण भेजा है न? धार्मिक अनुष्ठान जन-कल्याण के निमित्त ही किए जाते हैं। हम सार्वजनिक स्थलों पर जाते हैं। हज्ाारों लोग होते हैं। यहां कुछ कमी सी लग रही है। आप हमारी तसवीर और प्रवचन के सार को स्थानीय अख्ाबारों में छापने के लिए भेजें। केबिल वाले को भी कवरेज करने को कहें।

....स्वामी जी होटल चले गए। यज्ञ अम्मा के पास आया, 'अम्मा, स्वामी जी सुपर चैनल वालों को बुलाना चाहते हैं। भागवत पाठ न हुआ, फिल्म शो हो गया। अम्मा बोलीं, 'हम तो अपने संतोष के लिए भागवत सुन रहे हैं। भीड क्यों लगानी है?

स्वामी जी ने नित्य की तरह लगभग साढे बारह बजे पाठ समाप्त किया। फिर बोले, 'सायं चार बजे से कथा और भजन होगा। मैं लीला प्रसंग कहूंगा। आप सभी बंधु-बांधवों के साथ पधारें। चढावा समेट स्वामी जी चले गए। रुद्र ने चुटकी ली, 'स्वामी जी पंचामृृत तो बंटवा गए, मगर मिठाई ले गए। खाकर बीमार हो गए तो पाठ कौन करेगा?

शाम चार बजे कथा-प्रसंग प्रारंभ हुआ। स्वामी जी भजन से शुरू करते हैं, 'हे कृष्ण गोविंद हरे मुरारी... स्त्रियों की तादाद देख बोले, 'धर्म को स्त्रियों ने ही जीवित रखा है।

सबके सोने के बाद रात में अम्मा उठीं और बर्तन ढूंढते हुए बोलीं, 'कुछ बर्तन नहीं मिल रहे। लडकियां-बहुएं बडी लापरवाह हैं।

सुबह पाठ के लिए बैठते हुए स्वामी जी ने अम्मा से पूछा, 'नींद अच्छी आई? अब तबीयत कैसी है? विवरण रुद्र ने दिया, 'रात भर तो बर्तन ढूंढती रहीं। नींद कैसे आती?

'अच्छा सुनिए, कल यशोदा के लाला का जन्म होगा। धूमधाम होगी, बैंड-बाजा बुलाना होगा। ऐसा भावना-प्रधान वातावरण बनाना है कि लोग याद रखें कि भागवत हुई थी। कृष्ण जन्म के लिए नई साडी, पोशाक, आभूषण, मुकुट आदि की लिस्ट हम बना लाए हैं।

स्वामी जी का आदेश शिरोधार्य। शाम को यज्ञ और गोपा बाज्ाार निकले। 'अम्मा ने दस हज्ाार ही दिए हैं, हो जाएगा न? यज्ञ ने मुंह बनाया, 'क्या पता। स्वामी जी पाठ कम, नौटंकी अधिक कर रहे हैं।

कृष्ण-जन्म चमत्कारिक भाव में हुआ ।

नई साडी की आड बना कर कृष्ण की मूर्ति को सूप में रखा गया। वस्त्राभूषण से अलंकृत मूर्ति को नवीन सिंहासन पर विराजमान किया गया। फिल्मी धुनों पर स्त्रियां नाचीं। कइयों ने साडी चढाई। सुपर चैनल वालों ने कृष्ण जन्म को सफल बना दिया। स्वामी जी बोले, 'अच्छा कवरेज मिलना चाहिए।

गदगद स्वामी जी जनसमूह से मुख्ाातिब हुए, 'कल कृष्ण-रुक्मणी विवाह है। कोई ख्ााली हाथ न आए। जनसमूह को सुझाव देकर स्वामी जी आंगन में विराजे। बोले, 'अम्मा के अलावा जो लोग भी चाहें, पैर पखार लें। गुरुमंत्र के बिना अनुष्ठान का फल नहीं मिलता। आप लोगों ने गुरु दीक्षा ले ली?

'अखाडे के एक नागा साधु से ली है। यज्ञ की बात सुन स्वामी जी मलिन पड गए। 'गुरु-दीक्षा नागा से नहीं, गृृहस्थ से लेनी चाहिए। ख्ौर, जाने दें। यज्ञ की सबसे छोटी बहन मुक्ता की दो पुत्रियां हैं, इन्हें कृष्ण-रुक्मणी बनाएंगे। पैर पखारने के लिए पांच बडे बर्तन, स्वर्ण, चांदी, सुहाग सामग्री चाहिए। आयोजन प्रतिष्ठा के अनुरूप हो।

कृष्ण-रुक्मणी विवाह की झांकी मनोहारी थी। पीले रेशमी वस्त्र, नकली घुंघराले बाल, मोर पंख, माला धारण किए दोनों बच्चियों को आसन पर बैठाया गया। अम्मा ने पांच बडे बर्तन और चांदी के सुंदर लोटे से पैर पखारे। यज्ञ और रुद्र ने सपत्नीक पैर पखारे। एकत्र सामग्री को स्वामी जी के शिष्य दक्षता के साथ समेटते जा रहे थे। स्वामी जी आरती के उपरांत बोले, 'कल कृष्ण-सुदामा भेंट होगी। कोई ख्ााली हाथ न आए। ग्ारीब सुदामा भी सखा से मिलने तंदुल लेकर गए थे। रोज्ा ऐसी बातें सुन कर लोगों की आस्था टूट रही थी, मगर स्वामी जी थे कि हर शाम यही बात दोहराते थे।

भागवत पाठ पूर्ण होने पर सायंकाल हवन हुआ। दूसरे दिन भंडारा। अगले दिन स्वामी जी की विदाई। अम्मा ने महावीर पंडित को भीतर बुलाया, 'स्वामी जी को इकतीस हज्ाार और शिष्यों को दो-दो हज्ाार देते हैं। इन्हें विदा करें, फिर आपका हिसाब होगा। पंडित जी यज्ञशाला में आए। अनुमान से कम राशि देख मुंह बनाने लगे, '51 हज्ाार से कम न लेंगे, वह भी इसलिए कि महावीर पंडित का आग्रह था। यज्ञ ने निवेदन किया कि यह पारिवारिक आयोजन था, ख्ार्च काफी हो गया है। रुद्र बोला, 'चढावा भी मिला दें तो इक्यावन हज्ाार हो ही जाता है। फिर वह महावीर पंडित की ओर देखने लगा। पंडित जी भी क्या समझाएं? स्वामी जी को इक्यावन हज्ाार का वचन देकर अम्मा को इकतीस बताया कि किसी तरह काम शुरू हो और लगे हाथों वे भी कुछ कमा लें। हो सकता है स्वामी जी से प्रभावित होकर अम्मा ख्ाुद ज्य़ादा दे दें। पंडित जी ने स्वामी जी को मनाने की कवायद की, मगर सब व्यर्थ। देर तक मोल-भाव के बाद अम्मा उठीं, 'यज्ञ, आओ हमारे साथ और अलमारी से बीस हज्ाार रुपये निकालकर बोलीं, 'बीस हज्ाार और देकर विदा करो। अंगूठी हम न देंगे।

मगर स्वामी जी अड गए, 'स्वर्ण दान के बिना यज्ञ पूरा नहीं होता।

'हमारा बजट बिगड गया है स्वामी जी। ये बीस हज्ाार अंगूठी ख्ारीदने के लिए रखे थे। अंगूठी अब नहीं दे पाएंगे। दो-टूक उत्तर देकर अम्मा ने सबको चौंका दिया।

इस बीच मार्शल में सामान रखा जा चुका था। स्वामी जी असंतुष्ट से दिखते चले गए।

दूसरे दिन महावीर पंडित जी अपना और सदाचारी का हिसाब लेने आए तो रुद्र ने विरोध दिखाया, 'पंडित जी, ये लोग तो हमें लूट कर चले गए। पंडित जी ने गर्दन झटकी, 'मैं तो उनके आचरण पर हैरान हूं। कितने लोभी हैं? मैं और सदाचारी भी जाप में बैठते थे। चढावे में हमारा भी हिस्सा था, मगर वे तो पूरा समेट ले गए। उन्होंने भागवत के सारे अध्याय भी नहीं बांचे। नौटंकी दिखाते रहे। पंडित जी की व्यग्रता कम नहीं हो रही थी। सोचा था, फायदा होगा, अम्मा कुछ तो देंगी ही, मगर स्वामी जी ने महाजनी दिखा दी। अम्मा सदमे में आकर बोलीं, 'क्या पंडित जी, पाठ पूरा नहीं हुआ?

पंडित जी बोले, 'इसके भागी तो वही बनेंगे। आपने उन्हें संकल्प दिया था, ईमानदारी से निभाते। अब तो सब पैसे का खेल हो गया है। सोना न मिलने पर कितना बोल रहे थे।

अनिष्ट की आशंका से अम्मा पीली पड गईं, 'कहीं हमें श्राप तो न देंगे वह?

'तुमने भागवत सुन ली, बाकी स्वामी जी जानें। यज्ञ सांत्वना दे रहा है या सता रहा है, अम्मा न समझ पार्ईं। मगर यह ज्ारूर लगा कि परलोक सुधारने के लिए उन्होंने जो ख्ार्चीला आयोजन कर डाला है, इसकी न आवश्यकता थी, न कोई उपयोगिता।

सुषमा मुनींद्र


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