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सभ्य मुखौटे

कामकाजी जीवन में लड़कियों का आना अभी हाल की बात है। शायद इसलिए उन्हें आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता। कार्यक्षेत्र में लड़कियों के बारे में नकारात्मक बातचीत या छींटाकशी आम है। ऐसे माहौल में कई बार वे काम छोडऩे पर विवश होती हैं तो कई बार उन्हें बेहद धैर्य

By Edited By: Published: Mon, 22 Dec 2014 03:01 PM (IST)Updated: Mon, 22 Dec 2014 03:01 PM (IST)
सभ्य मुखौटे

कलिका हतप्रभ सी एक हॉल जैसे कमरे में बैठी थी, दिलोदिमाग्ा में अजब सी हलचल लिए। अपनी नए जॉब को लपकने कलिका वर्मा घंटे भर पहले यहां आई थी। मशहूर ब्रैंड 'गोल्डन प्लेनेट के भव्य शो-रूम में फाइनेंस मैनेजर की नौकरी थी यह। पुराने मैनेजर बढती उम्र और स्वास्थ्य समस्याओं के चलते रिटायर हो चुके थे। उनके कमरे को रेनोवेट कर कैंटीन में तब्दील कर दिया गया। अब नई मैनेजर यानी कलिका को पुराने कॉन्फ्रेंस हॉल में डेरा जमाना था। हॉल से लगा एक स्टोर था- जहां हिसाब-किताब के सारे रिकॉर्ड मौजूद थे। दोनों कमरे सफाई मांग रहे थे। चीफ एग्ज्िाक्यूटिव ऑफिसर प्रतिभा सिंह ने आते ही फाइल्स रीअरेंज करने को कहा। प्रतिभा मैडम के अलावा वह रिसेप्शनिस्ट नेहा से भी मिली थी। नेहा की भेदक निगाहें मानो अब उसके पीछे थीं।

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प्रतिभा के जाने के बाद कलिका ने कमरों का मुआयना किया। बडे-बडे बहीखाते और फाइलों के ढेर उसे चुनौती दे रहे थे...। धूल और मकडी के जाले... दीवारों पर रेंगती छिपकलियां! मैम ने कहा था कि मदद के लिए लोअर स्टाफ को भेज देंगी, लेकिन अब तक कोई नहीं आया था। वह उन्हें ढूंढने जाती कि कुछ आवाज्ाों ने ध्यान खींचा। हंसने की आवाज्ा स्टोर की दीवार से रिसकर प्रतिध्वनित होने लगी, 'नई लडकी को देखा? नेहा बता रही थी कि किसी दूसरे शहर से आई है।

'अच्छा कौन है? क्या नाम है उसका?

'नाम तो पता नहीं... कोई मिस वर्मा है। सुना है लिखती भी है। अख्ाबारों में छपते हैं उसके आर्टिकल्स...।

'फाइनेंस की फील्ड और लेखिका! व्हाट अ रेयर कॉम्बिनेशन!

'तब तो देखना पडेगा देवी जी को...।

'छोडो यार! रूखी-सूखी स्टिक जैसी लगती है, अपनी रोमा की तरह नहीं है चॉकलेटी... फुल ऑफ लाइफ। यू नो, 34-24-36 वाली रोमा? हंसी का फव्वारा फिर फूट पडा था। कलिका अवाक सी सुनती रही। तभी चाय वाले की आवाज से क्रम भंग हुआ।

'रख दो, इस बार संवाद में गंभीरता का पुट था। अब चाय सुडकने के अलावा अन्य कोई स्वर नहीं उभरा। मिनट भर में उसके सामने भी चाय का प्याला रख दिया गया। 'तो ऑफिस में चाय सर्व करने का यही रुटीन है। उसी इंतज्ाार में लोग गपशप कर रहे होंगे, कलिका ने सोचा। एक अनजानी आकुलता उसे जकडऩे लगी। इस बीच हेल्पर भी आ गए। वह यंत्रवत उनसे काम करवाती रही। सोचा था, ऑफिस के बाद लेडीज हॉस्टल की तनहाई में आराम करेगी। व्यस्त दिनचर्या के बाद निद्रा देवी की गोद भाती है, लेकिन नींद आंखों से कोसों दूर थी।

न जाने कब हाथों ने कलम थाम ली। आज सभ्य लोगों की असभ्य बातों ने बहुत आहत किया। कडवे अनुभव एक-एक कर मन पर दस्तक दे रहे थे...। लिखते-लिखते वह इतनी तन्मय हुई कि समय का ध्यान ही न रहा। थकान ने देह को जकड लिया। कलिका ने हाथ के पंजों को फंसाया और उस पर सर टिकाते हुए आंख मूंद ली। अब साधारण कुर्सी ही आरामकुर्सी का मज्ाा दे रही थी। उसे अपने पीटी सर वरुण देव याद आ गए। किस बेशर्मी से डांस-रिहर्सल के बाद मणि से बोले थे, यू नीड स्पोर्ट ब्रा फॉर डांस प्रैक्टिस...। क्या यह बात वह किसी दूसरी महिला टीचर से नहीं कहलवा सकते थे?

जींस-टॉप उसके दुबले-पतले शरीर पर फबता था, फिर भी कॉलेज के सीनियर लडकों को आपत्ति थी...।

दिन निकल गया। सुबह वाली घटना ने आर्टिकल की भूमिका बांध दी थी, पर दिमाग्ा थकने लगा। हॉस्टल मेस में हलका-फुल्का खाकर वह बिस्तर पर पड गई।

दूसरे दिन टी-ब्रेक के दौरान उसके कान दीवार पर टिके थे। नियमित समय पर महिफल जमी। इस बार उन्होंने किसी महिला-सेल्स रिप्रेज्ोंटिव का चरित्र-हनन किया, 'अच्छी-ख्ाासी उम्र तो है, शादी नहीं हुई, ज्ारूर कोई चक्कर होगा...। उसके साथ 'गोटी फिट करने का स्कोप किसके लिए कितना हो सकता था, इस पर गहन चिंतन हुआ। कलिका को उबकाई सी आने लगी। जिन बातों की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी, उन्हें पुरुष ऐसे ख्ाुलेआम कैसे कर रहे थे? प्रतिभा मैम ने उससे कहा था, फुर्सत में सारे स्टाफ से परिचय कराएंगी, मगर वह ज्ारूरी असाइनमेंट में व्यस्त हो गईं। कलिका को खुद रिक्वेस्ट करनी पडी, तब जाकर उन्होंने उसे 'गोल्डन प्लेनेट का राउंड लगवाया। इस क्रम में सबसे परिचय हुआ। टेलरिंग रूम की ड्रेस-डिज्ााइनर रोमा से भी मिली। झूठ नहीं कहते थे लोग। वाकई ग्ाज्ाब की सुंदरी थी रोमा। साडिय़ों वाले फ्लोर पर उस सेल्स रीप्रेज्ोंटेटिव श्यामला को भी देखा, जिसके चेहरे पर उम्र के निशान नज्ार आ रहे थे। ज्िाम्मेदारियों से बंधी सीधी-साधी लडकी, विकलांग पिता, छोटे भाई-बहन...। आख्िार घर कैसे और कब बसाती! उसे कहां मालूम था कि उसकी मजबूरी का कितना भद्दा मज्ााक बनाया जा रहा था! मज्ााक बनाने वालों के पास न दिल था, न संवेदना। यदि ज्ारा भी ग्ौरत होती तो लडकियों पर छींटाकशी करने से पहले सौ बार सोचते। चाय-सभा के सदस्यों में सर्वप्रथम जुगल किशोर थे। स्टोर से सटे केबिन में नाम की तख्ती लटक रही थी। असिस्टेंट सीईओ का पदभार और मनचलों की फौज, दोनों उनके मत्थे। बात-बात पर ही-ही करने वाले सेल्स मैनेजर गुप्ते, छिछोरे संवादों से पब्लिक को गुदगुदाने वाले मार्केटिंग मैनेजर रामास्वामी की आवाज्ों ही कानों में ज्य़ादा पडतीं। काइयां नज्ारों वाला टेलर मास्टर मनमीत, प्रौढ अनाउंसर सरला जी और ओवर स्मार्ट नेहा भी इन्हीं में शामिल थे।

अगले दिन कोई ज्ञानी पुरुष महंगाई को लेकर ज्ञान बघार रहा था। इस चर्चा के बीच नेहा का ज्िाक्र भी आया। कुछ गप-गोष्ठियों के बाद कलिका को लगा कि यह नेहा ही थी, जो इन लोगों को स्त्री कर्मचारियों के बारे में अंदर की बात बताती थी। संभवत: इसलिए, क्योंकि ये अकसर कैंटीन में उसे फ्री-ट्रीट दे देते थे और इसलिए भी कि वह ख्ाुद बडी पंचायती थी। न जाने क्यों हर बार बातों की सुई स्त्रियों पर ही अटक जाती है।

'गोल्डन प्लैनेट में कुछ ही दिन हुए थे। कलिका ने फाइल-सिस्टम और कंप्यूटर ट्रांजेक्शनों को दुरुस्त कर दिया। मैम बहुत खुश थीं। उन्हें ख्ाुश देख कर कलिका उत्साहित हो जाती। उसके होम टाउन में 'गोल्डन प्लैनेट की नई ब्रांच खुल रही थी। उसने प्रतिभा जी से वहां ट्रांस्फर लेने की इच्छा जताई। वे मान भी जातीं, अगर जुगल किशोर ने बीच में टांग न अडाई होती। कलिका मन मसोस कर रह गई।

समय बीत रहा था। अब चाय के साथ वह प्रपंच भी गटक जाती। एक कान से सुनकर, दूसरे से निकालने की कोशिश करती। काम में ध्यान लगाना ज्य़ादा ज्ारूरी था।

मगर उस दिन तो हद हो गई। मनमीत टेलर किसी लेडी-कस्टमर के नख-शिख का बखान कर रहा था और सब चटखारे ले रहे थे। कलिका का मन ग्ाुस्से से भर गया। सोचने लगी, 'ये पुरुष न तो बिगडे हुए रईस हैं और न नाली के कीडे, संभ्रांत घरों के ये पुरुष ऐसी घिनौनी बातें कैसे कर लेते हैं? जो पुरुष सभ्य मुखौटों के भीतर अपनी स्त्री सहकर्मियों के प्रति ऐसी भावनाएं रखते हैं, क्या गारंटी कि किसी स्त्री से अभद्रता न करें। इन्हें किसी का भय तक नहीं है!

जो भी हो, इनके सौजन्य से ही कलिका के विचार पन्नों पर उतर आए थे। वह अपने ग्ाुस्से, क्षोभ को काग्ाज्ा के पन्नों पर उतार रही थी। लिखने के बाद कई दिनों का बोझ उसके मन पर कुछ कम हुआ। मन हलका हुआ तो इत्मीनान से अगले दिन के लिए तैयार हुई। ऑफिस में सुबह शांति से गुज्ारी। कलिका ने कई काम निपटाए। स्टोर में घुसी तो पाया कि वॉल पेपर का टुकडा दीवार से कुछ दूर पडा था। नज्ार ऊपर उठते ही वह बुदबुदाई, तो दीवार पर वेंटिलेटर जैसी ओपनिंग है, जो संलग्न कक्ष में घटने वाली घटनाओं की चुगली कर रही थी...। अभी भी यह वॉल पेपर से ढकी थी, सिर्फ एक छोटा टुकडा अलग था। शायद सड कर गिरा हो। अलबत्ता 'साहब लोगों की बातें जारी रहेंगी और उन्हें पता तक न चलेगा। वह मुस्कुराई, पर मुस्कान अगले ही क्षण विलुप्त हो गई। आवाज्ों फिर आने लगी थीं,

'हमने सुना, कलिका....अरे उसी नई लडकी ने सिस्टम में कुछ चेंज किया है, रामास्वामी ने शब्दों को चबाते हुए कहा।

'हां जी हां...बडी बेकार दिखती है, इस बार गुप्ते थे, 'बडी शाणी बनती थी... मैडम जी पर इंप्रेशन मारती, लो बोले किस वास्ते? हमारे सबके ऊपर बैठ जाएगी क्या?

'ना जी ना, जुगल जी कब चूकने वाले थे, 'वो भूरी आंखों वाली बिल्ली बडी शातिर है- वो इधर से ट्रांस्फर चाहती है अपनी नई ब्रांच में। मैडम से सिफारिश कर रही थी पर हम ही अड गए। बताओ ये भी कोई बात है? हर काम थ्रू प्रॉपर चैनल होना चाहिए। उसके बॉस हम हैं या मैडम?

'तो ये आपका ईगो प्रॉब्लम है...

'और क्या! सर आप अडे रहिए... मैडम अकेले उसे कितना सपोर्ट करेंगी।

'आजकल सरला भी उसके साथ ही रहती है। दोनों कैंटीन में साथ लंच करती हैं।

'उसकी गांव वाली है न, इसलिए! 'इसीलिए क्या? अरे उम्र में तो इतना फर्क है? सरला तो अब रिटायरमेंट की ओर बढ रही है.. और ये...

'अरे सर, उम्र से क्या होता है, क्या मस्त फिगर है उनकी। उन पर तो कोई भी मर सकता है...। अब बातचीत एग्ज्िाक्यूटिव्स तक सिमट गई थी। कलिका ने हैरान होकर माथा ठोक लिया। भावावेश में उसकी कनपटी लाल हो गई, इतना शर्मनाक कमेंट आज तक नहीं सुना। इन्होंने तो अपनी मां समान सरला आंटी को भी नहीं छोडा!

....कुछ दिन बाद उसका लेख स्थानीय अख्ाबार में छपा था। सुबह ऑफिस पहुंचते ही गुड मॉर्निंग के बाद जुगल किशोर ने पूछा, 'आज के न्यूज पेपर में आपका लेख है? कलिका ने हां में सिर हिला दिया।

'सुपर्ब आर्टिकल! मैं तो कहता हंू कि आप हमारे प्रोडक्ट्स के लिए कैप्शन लिखने का काम शुरू कर दीजिए...।

'थैंक यू सर, शिष्टतावश बोली कलिका।

'आपके थॉट्स तो बहुत आई ओपनिंग हैं, आगे भी कुछ बोल रहे थे जुगल किशोर, मगर कलिका सहन नहीं कर पाई। दबे हुए अंगारे फूट पडे, स्वर में व्यंग्य उतर आया, 'सर, लोग जिसे भूरी बिल्ली और होपलेस स्टिक कह कर मखौल बनाते हैं, जिसके बारे में अनर्गल प्रलाप करते रहते हैं, उस लडकी में भी थोडी योग्यता तो होती ही है।

यह सुन कर तो जुगल किशोर को दिन में तारे नज्ार आने लगे! जिन जुमलों को उन्होंने ख्ाुद उछाला था, उन्हीं में लपेट कर कलिका ने उन्हें पटखनी दे दी थी! अगले दिन पता चला, जुगल सर ने कलिका के ट्रांस्फर को अप्रूव कर दिया था।

विनीता शुक्ला


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