उसका फैसला
एकल अभिभावक के लिए बच्चे की परवरिश आसान व सहज नहीं होती। अपनी शादी से बाहर निकल कर विभा अकेले जी रही थी कि किसी ने बढ़ कर हाथ थाम लिया। कुछ पल को लगा, बच्चे की ख़्ाातिर सही, भरोसा करके देखे। लेकिन जल्दी ही एहसास हो गया कि उसे
एकल अभिभावक के लिए बच्चे की परवरिश आसान व सहज नहीं होती। अपनी शादी से बाहर निकल कर विभा अकेले जी रही थी कि किसी ने बढ कर हाथ थाम लिया। कुछ पल को लगा, बच्चे की ख्ाातिर सही, भरोसा करके देखे। लेकिन जल्दी ही एहसास हो गया कि उसे जीवनसाथी मिल भी जाए, बच्चे को पिता नहीं मिलेगा। उसने निर्णय बदल लिया।
प्रशंसा के खोखले शब्दों के सहारे ज्िांदगी नहीं जी सकता है कोई। मुन्ने की नन्ही उंगली थामे जब वह रोज्ामर्रा की आवश्यक चीज्ों जुटाने बाहर निकलती तो आसपास के लोगों की सहानुभूति उसके साथ हो जाती। परित्यक्त का ठप्पा लग जाए तो आज भी समाज में ढंग से जीना आसान नहीं, फिर भी विभा टूटी नहीं और आगे बढती रही। अपने जीवन को बेटे के लिए समर्पित करने के बारे में सोच चुकी थी। उसका एकमात्र लक्ष्य अब उसका बेटा था, क्योंकि पति से ख्ाुद रिश्ता ख्ात्म करके आगे बढ चुकी थी वह। सब कुछ शांत और अपनी गति से चल रहा था कि अनुराग ने जीवन में प्रवेश किया। कुछ समय के लिए भूल गई कि वह एक स्त्री ही नहीं, मां भी है। उसने भावनाओं में बह कर अनुराग से शादी करने का फैसला ले लिया, लेकिन अनुराग के बदले अब लोग चाहते हैं कि मुन्ने को उससे दूर कर दें।
वह मुन्ने को अपने से दूर नहीं कर सकती। उसने मुन्ने का ख्ायाल करके ही अनुराग से विवाह के लिए हामी भरी थी। बच्चे के लिए मां की ममता और पिता की छांव, दोनों की ज्ारूरत है, तभी उसका व्यक्तित्व संवरता है। एक की कमी उसे आधा-अधूरा इंसान बनाती है। विभा को पति रविकांत का स्मरण हो आया। हर पल उसमें कमी खोजते रहते थे वह। आख्िार कितने दिन संबंध चलता, परिणाम हुआ उसकी परित्यक्त ज्िांदगी।
'देखो विभा, मैं मुन्ने को हॉस्टल में रखने के लिए ही तो कह रहा हूं, संबंध तोडऩे के लिए नहीं। मेरी बस एक ही शर्त है कि विवाह के बाद मुन्ना हम दोनों के बीच नहीं, बोर्डिंग में रहे। यही हम तीनों के लिए बेहतर रहेगा।
विभा अनुराग की बात सुन कर सकते में आ गई, 'पर क्यों अनुराग? परित्यक्त पुरुष से शादी करते वक्त क्या लडकी कभी यह शर्त रखती है कि उसके बच्चे उसके साथ नहीं रहेंगे, बल्कि उससे तो यही कहा जाता है कि बच्चे को सगी मां का प्यार देना। क्या लडकी अपनी आकांक्षाओं को परे कर केवल मां का रोल ही याद रखती है? पर तुम ऐसा क्यों कह रहे हो, बोलो अनुराग ?
अनुराग को विभा की बात का जवाब नहीं देते बन रहा था। इतना ही बोला, 'विभा तुम समझ नहीं रही हो...मैं बस..., विभा के लिए तो उसका बेटा ही ज्िांदगी का सार था। मुन्ने के लिए उसने क्या-कुछ नहीं सहा। वह चाहती थी कि उसे पिता का प्यार मिले। अनुराग ज्िांदगी में आया तो पहला विचार यही आया कि अनुराग से परिचय केवल मुन्ना के कारण हुआ था। रविकांत से अलग होते समय बेटा केवल आठ महीने का था। वह शादी एक दुखद अध्याय बन कर रह गई, जिसके पन्ने वह ख्ाुद ही बंद कर आई। वह मां-बाप की देहरी पर भी नहीं गई। ख्ाुद पर भरोसा करके नौकरी के लिए आवेदन किया और सफल हुई।
सहकर्मियों, पडोसियों के मूक प्रश्नों, व्यंग्य, बेवजह संदेह की परवाह किए बिना आगे बढती रही। जाने-पहचाने चेहरों के बीच उसे अपनापन कम और व्यंग्य ही अधिक मिले। सामने मीठा बोलने, सहानुभूति दिखाने वाले लोग पीठ पीछे उसकी खिल्ली उडाते। छोटे से टापू पर खडी झंझावात की आशंका से घिरी रहती, उसे लगता न जाने ज्ामाने की लहरें कब उसे निगल जाएं। इन्हीं क्षणों में अचानक उसकी मुलाकात अनुराग से हुई। किसी सहकर्मी के घर पर हुई मुलाकात का ज्ारिया भी बेटा ही बना। बच्चे के बहाने नज्ादीकी बढी। कभी-कभी उसे लगता कि अकेली समझ कर कहीं अनुराग उस पर रहम तो नहीं कर रहा? सच यह था कि वह अनुराग को और अनुराग उसे पसंद करने लगे थे। मुन्ना भी अनुराग से काफी हिल-मिल गया था।
मित्रता से शुरू हुआ यह संबंध चाहत में बदलने लगा। अनुराग विभा की ज्िांदगी बन गया। आख्िार उसने अपना फैसला सुनाया 'विभा, मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं।
इस दिन के बाद उनके रिश्तों में नया मोड आ गया। विभा इंतज्ाार करने लगी कि अनुराग आगे भी कुछ कहेगा, लेकिन वह कई बार कुछ कहते-कहते ठिठक जाता। बातें करते हुए कहीं खो सा जाता, मानो कोई उलझन परेशान कर रही हो। विभा आशंकित हो जाती। वह कुछ पूछ पाए, इससे पहले ही अनुराग अपनी स्मित मुस्कान से उसे आश्वस्त कर देता। वह अपनत्व भरी चाहत में खो जाती।
एक दिन विभा ने पूछ ही लिया, 'हमें आगे बात करनी चाहिए अनुराग। न जाने क्यों मुझे लगता है कोई बात तुम्हें परेशान कर रही है।
'हां विभा समझ नहीं पा रहा कि कैसे कहूं?
'अब और क्या कहना है तुम्हें? उसने अपना स्नेहिल हाथ अनुराग के कंधे पर रख दिया।
'तुम मुझे ग्ालत तो नहीं समझोगी? विभा, तुम जानती हो कि मैं मुन्ना से बहुत प्यार करता हूं, मगर चाहता हूं कि शादी के बाद वह हमारे साथ न रहे।
'अनुराग ये क्या कह रहे हो तुम? उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। 'तुम कह रहे हो कि वह हमारे साथ नहीं रहेगा? मगर क्यों?
'वह बोर्डिंग में रहेगा, उसका सारा खर्च हम उठाएंगे...., अनुराग ने आगे कहा।
'नहीं, अनुराग कभी नहीं...., वह बुदबुदाई, 'तुम मज्ााक तो नहीं कर रहे हो? तुम जानते हो न कि मैं अपने बच्चे के बिना नहीं जी सकती। तुम भी तो उसे इतना चाहते हो?
शांत स्वर में अनुराग बोला, 'भविष्य में कोई ग्ालतफहमी हो, इससे अच्छा है कि कुछ बातें पहले साफ हो जाएं। अभी तुम उन बातों के बारे में नहीं सोच पा रही हो विभा, जिन्हें लेकर मैं चिंतित हूं। मुन्ना को मैं भले ही कितना भी प्यार दूं, लेकिन अधिकार से कुछ कह नहीं पाऊंगा, कभी ग्ालती होने पर डांट नहीं पाऊंगा। ऐसा हुआ तो हो सकता है कि तुम्हें यह बुरा लगे। मैं कहलाऊंगा सौतेला बाप ही। ऐसे माहौल में क्या उसका विकास ठीक ढंग से हो सकेगा? वह मेरे साथ सहज हो सकेगा? यह भी हो सकता है कि वह अपनी विफलताओं के लिए मुझे ज्िाम्मेदार ठहराने लगे। मैं ऐसी स्थिति में नहीं रहना चाहता....।
'क्या कह रहे हो अनुराग? तुमने मुझे इतना ही जाना है? मैं तुम पर संदेह करूंगी?
'ऐसा नहीं है विभा, मानवोचित भावनाओं से हम छुटकारा कैसे पा सकते हैं? तुम्हें मुन्ना को हॉस्टल में रखने में कठिनाई ज्ारूर होगी, मगर मेरा फैसला यही है।
'लेकिन मैं अपने बच्चे को अकेला नहीं कर सकती। अनुराग तुम समझने की कोशिश तो करो? वह फूट पडी...., 'यह सच है कि तुम्हें जीवनसाथी के रूप में देखना चाहती हूं लेकिन यह भी सच है कि इतने छोटे बेटे को ख्ाुद से अलग नहीं कर सकती। प्लीज्ा अनुराग एक बार फिर पुनर्विचार करो...।
अनुराग जाने के लिए उठ खडा हुआ। फिर बोला, 'सच तो यह है विभा कि तुम्हें खोकर मैं ख्ाुश नहीं रह पाऊंगा। मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं। तुम्हारी जुदाई झेल सकता हूं मगर तुम्हारे साथ रहते हुए निरंतर अविश्वास और झुंझलाहट की ज्िांदगी बर्दाश्त नहीं कर सकूंगा, इसलिए साफ कहने की हिम्मत जुटा रहा हूं। ठंडे मन से सोचो और अपना निर्णय लो। मैं फिर आऊंगा। अनुराग भारी कदमों से बहर निकल गया।
अनुराग की जाते ही वह होश में आ गई और फूट-फूट कर रो पडी। क्षण भर में मानो सब कुछ बिखर गया। वह कमरे में सोते हुए अपने नन्हे बच्चे को एकटक देखती रह गई। क्या मुन्ना उसके बिना रह सकेगा? अनुराग को देख कर उसे यह एहसास हुआ था कि वह बच्चे को पिता का प्यार दे सकेगा। अनुराग जब भी घर आता, मुन्ना दौड कर उसकी गोद में चढ जाता। अनुराग भी उससे बेइंतहा प्यार करता, टॉफीज्ा, चॉकलेट्स लेकर आता। उन दोनों को देख कर वह निहाल हो उठती।
पति का घर छोडऩे के बाद वह लगातार इसी अपराध-बोध में जी रही थी कि उसने एक मासूम बच्चे को पिता के साये से वंचित कर दिया। मुन्ना धीरे-धीरे बडा हो रहा था और कई बातें समझने लगा था। कई बार पूछता, 'मां, मेरे पापा कहां हैं? इस पर वह बच्चे को इधर-उधर बहला देती।
...अनुराग ज्िांदगी में आया तो वह फिर से जीने की कल्पना करने लगी। वह अनुराग को जीवनसाथी और बेटे के पिता के रूप में देखने लगी। सोचती, किसी दिन बेटे से कहेगी, 'अनुराग ही तुम्हारे पापा हैं बेटा।
सपनों का महल बनने से पहले ही टूट गया। अनुराग के जाने के बाद वह रात भर सो नहीं पाई। दूसरे दिन उसने ऑफिस से छुट्टी ले ली। दिन भर बैठ कर वह अपने बारे में सोचना चाहती थी। मन में कई तरह के विचार चल रहे थे। क्या वह अपने लिए जीवनसाथी चाहती है? क्या उसे बच्चे के लिए पिता चाहिए? क्या वह अकेली चलते-चलते थक चुकी है या फिर वह अकेले भी बेटे की ज्िाम्मेदारियां उठा सकती है? कई तरह के विचार मन में गड्डमड्ड हो रहे थे। बहुत सोचने के बाद उसने पाया कि वह सिर्फ यही चाहती है कि उसका बेटा सारे बच्चों की तरह सहज ढंग से पले-बढे। उसने कई लोगों से सुना था कि बच्चा मां-बाप के प्यार के बिना आधा-अधूरा रहता है। यह सच है कि अनुराग जीवनसाथी के रूप में उसका साथ निभा सकता है, लेकिन शायद वह मुन्ना का पिता नहीं बन सकता। क्या चुने क्या छोडे? उसे एक पल को ख्ाुद पर हंसी आने लगी। पहले ही रिश्तेदारों ने कम छलनी नहीं किया, अब तो और हंसेंगे कि बडी चली थी दोबारा शादी करने....! क्या करे? क्या मुन्ना को बोर्डिंग में रख दे? क्या बडा होकर मुन्ना यह नहीं सोचेगा कि मां ने अपने स्वार्थ के लिए उसे दूर कर दिया। ममता के बंधन, भविष्य के सपने, सूने जीवन की खुशियां और लोगों के तानों, प्रश्नों, अंतद्र्वंद्वों ने उसके मन को मथ दिया। वह बेचैन हो गई।
उसे रह-रह कर अनुराग से हुई बहसें याद आ रही थीं। 'अनुराग प्यार शर्तों का मोहताज होता है क्या? क्या तुम एक मां की फीलिंग्स समझ सकते हो? इतने छोटे बच्चे को कैसे अलग कर सकती हूं मैं....?
उसे अनुराग की हर बात याद आने लगी। '...हॉस्टल का खर्च हम उठाएंगे। पुरुष का दंभ इन्हीं अवसरों पर तो दिखता है। क्या वह आर्थिक स्थिरता के लिए अनुराग से शादी कर रही है? वह तो स्वयं आत्मनिर्भर है, बेटे को किसी पर बोझ नहीं बनाना चाहती। वह अनुराग से प्यार ज्ारूर करती है, लेकिन बेटे की कीमत पर वह शादी नहीं कर सकती।
अंतत: उसने फैसला ले लिया। वह केवल मां होकर जिएगी। वह अपने बच्चे को अकेले बडा करेगी। उसे नेक इंसान बनाएगी....। न जाने कैसे उसके मन में निर्भरता की भावना पैदा हो गई? क्यों वह सोचने लगी कि बच्चे को पिता मिल जाए...। अगली बार अनुराग आएगा तो साफ कह देगी कि शादी का फैसला ग्ालत था। किन्हीं कमज्ाोर क्षणों में उसने ऐसा सोच लिया, लेकिन अब वह दुविधा से बाहर निकल चुकी है। अनुराग अपनी ज्िांदगी नए ढंग से शुरू करे। अच्छा हुआ, जो उसने अपनी दुविधा पहले ज्ााहिर कर दी। शादी के बाद ऐसा होता तो...!
निर्णय लेते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने मासूम मुन्ना की ओर देखा, जो एक कोने में बैठा किसी पज्ाल को सुलझाने में जुटा हुआ था। एकाएक वह ज्ाोरों से चिल्लाया, 'मम्मा, देखो-देखो, मैंने कर लिया....। विभा ने प्यार से अपने बच्चे की ओर देखा और कुछ सोचते हुए बोली, 'हां बेटा, अभी-अभी मैंने भी एक मुश्किल पज्ाल हल किया है....।
सुशीला द्विवेदी