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श्रीहरि प्रिया हैं तुलसी

सनातन संस्कृति में औषधीय गुणों वाले पेड़-पौधों को देव-तुल्य सम्मान देने की परंपरा रही है। तुलसी भी इन्हीं में से एक है। भक्तों के लिए भगवान विष्णु की तरह भगवती तुलसी भी वंदनीय हैं। इसीलिए उन्हें विष्णुप्रिया, विष्णुकांता एवं केशव प्रिया आदि नामों से पुकारा जाता है।

By Edited By: Published: Tue, 15 Nov 2016 10:39 AM (IST)Updated: Tue, 15 Nov 2016 10:39 AM (IST)
श्रीहरि प्रिया हैं तुलसी
उत्पत्ति की कथा देवी भागवत पुराण के नवम स्कंद की कथा के अनुसार प्राचीन काल में राजा धर्मध्वज और रानी माधवी के यहां कार्तिक पूर्णिमा को एक अत्यन्त सुंदर कन्या ने जन्म लिया, जिसका नाम तुलसी रखा गया। उनका विवाह दानव कुल के राजकुमार शंखचूड के साथ हुआ। तुलसी के सतीत्व के प्रभाव से शंखचूड को ऐसी शक्ति प्राप्त हो गई थी जिससे उसे कोई भी पराजित नहीं कर सकता था। इसी के बल पर उसने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग में अपना आधिपत्य जमा लिया। तब उनकी सहायता के लिए श्रीहरि ने तुलसी के पति शंखचूड का रूप धारण कर उनका सतीत्व भंग कर दिया, जिससे शंखचूड मारा गया। सत्य को जान लेने पर तुलसी जी ने भगवान विष्णु को शिला बन जाने का श्राप दे दिया, जिसके फलस्वरूप श्रीहरि शालिग्राम शिला बन गए। पति के वियोग में तुलसी जी ने भी अपना शरीर त्याग दिया, जिससे गण्डकी नदी उत्पन्न हुई और उनके केशों ने तुलसी के दिव्य पौधे का रूप धारण कर लिया। इस तरह वह संसार में पूजनीय हो गईं। तुलसी का शुभ विवाह कार्तिक शुक्ल की देवोत्थानी एकादशी को भगवान के श्री विग्रह के साथ तुलसी जी का विवाह बडे धूमधाम से संपन्न होता है। इस अवसर पर लोग तुलसी चौरे या गमले को गेरु से सजाकर उसके चारों और ईख का मंडप बनाकर तुलसी के पौधे पर लाल चुनरी चढाते हैं। फिर श्री शालिग्राम एवं तुलसी जी की पूजा होती है। सुहाग से संबंधित समस्त सामग्रियां तुलसी जी को निवेदित की जाती हैं। फिर शालिग्राम जी को हाथों में लेकर तुलसी की सात बार परिक्रमा और आरती के बाद विवाहोत्सव संपन्न होता है। सौभाग्यदायक अनुष्ठान शालिग्राम और तुलसी विवाह को ज्योतिषशास्त्र और कर्मकांड के ग्रंथों में दांपत्य सुख-सौभाग्य प्रदान करने वाला कहा गया है। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक मास में वृंदावन स्थित श्रीराधा-दामोदर मंदिर के प्रांगण में विशेष अनुष्ठान करवाने से विवाह योग्य युवक-युवतियों को शीघ्र ही मनोवांछित वर/वधू की प्राप्ति होती है। वस्तुत: विष्णु-स्वरूप शालिग्राम का विष्णुकांता तुलसी से मिलन करवाना एक पवित्र कार्य है। कार्तिक माह में तुलसी और शालिग्राम जी के पूजन का विशेष माहात्म्य है। अन्य देव प्रतिमाओं की तरह शालिग्राम शिला का आह्वान और विसर्जन नहीं किया जाता क्योंकि उसमें श्रीहरि सदैव विराजमान रहते हैं। नारियल को शुभ क्यों माना जाता है ? सभी धार्मिक अनुष्ठानों और शुभ कार्यों में नारियल को आवश्यक रूप से शामिल किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास है। इसके पेड की तुलना मनोवांछित फल प्रदान करने वाले कल्प वृक्ष से की गई है। यह लोगों को समृद्धि प्रदान करता है। इसीलिए इसे श्रीफल भी कहा जाता है। इसके ऊपरी हिस्से पर बनी तीन आंखों जैसी आकृति को त्रिनेत्र का प्रतीक माना जाता है। सामाजिक समारोहों में भी वरिष्ठ लोगों को सम्मान स्वरूप नारियल ही प्रदान किया जाता है। भइया दूज 1 नवंबर छठ पूजा 6 नवंबर गोपाष्टमी 8 नवंबर अक्षय नवमी 9 नवंबर देवोत्थानी एकादशी 11 नवंबर बैकुंठ चतुर्दशी 13 नवंबर कार्तिक पूर्णिमा 14 नवंबर महाभैरवाष्टमी 21 नवंबर उत्पन्ना एकादशी 25 नवंबर भौमवती अमावस्या 29 नवंबर संध्या टंडन

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