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गृहिणी : कुछ छवियां

अर्थशास्त्र के अलावा पत्रकारिता और जनसंचार में स्नातकोत्तर डिग्री। हिंदी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कार्य का अनुभव, समाचार-वाचन और एंकरिंग का अनुभव, अध्यापन क्षेत्र से जुड़ाव।

By Edited By: Published: Fri, 01 Apr 2016 04:43 PM (IST)Updated: Fri, 01 Apr 2016 04:43 PM (IST)
गृहिणी : कुछ छवियां

अर्थशास्त्र के अलावा पत्रकारिता और जनसंचार में स्नातकोत्तर डिग्री। हिंदी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुडे विषय पर शोधकार्य। प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कार्य का अनुभव, समाचार-वाचन और एंकरिंग का अनुभव, अध्यापन क्षेत्र से जुडाव। पत्र-पत्रिकाओं में लेख-कविताएं प्रकाशित, एक काव्य संग्रह 'देहरी के अक्षांश पर प्रकाशित।

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संप्रति : मुंबई में रहते हुए स्त्रियों-बच्चों सहित सामयिक मुद्दों पर नियमित लेखन।

1. सिंदूरी क्षितिज

अपनों के बीच

एकाकी अंधेरे से घिरी

आगत-विगत की गुंथी रस्सी पर

संतुलन बनाती

और आकंठ अपराध-बोध में

डूबी गृहिणी

जीवन के झंझावातों

और मन के मौसमी उत्पातों को भुला

कभी अलसाई भोर और

अंधेरे का लिहाफ ओढती

सांझ के सिंदूरी क्षितिज को

ख्ाामोश बैठ निहारना चाहती है

पर ज्िाम्मेदारियों संग

लुकाछिपी खेलने का नहीं है

कोई रिवाज

देहरी के भीतर...।

2. मिथ्या मुस्कुराहट

एक साधारण सी गृहिणी

होती है कितनी असाधारण

कर लेती है सब कुछ

भले ही वो नहीं होती

विशेषज्ञ किसी एक विषय की

वो होती है निपुण भेद छुपाने में

घर के सारे मतभेद-मनभेद

देहरी के भीतर ही समा लेने की

पा जाती है दक्षता

जो अपने भी न करें साझा

अंतर्वेदना तो

संरक्षित कर लेती है हर कष्ट

स्वयं ही के भीतर

उर की पीडा कहने की

आदत ही छूट जाती है उसकी

इस सीमा तक कि

उसके अपने भी नहीं जान पाते

उसकी मिथ्या मुस्कुराहट का भेद।

3. आधा-अधूरा मन

गृहिणी का

आधा-अधूरा अनमना सा मन

और थकन से परिपूर्ण तन

िकफायत से सहेजे रहता है

अपराध-बोध की उष्णता

प्रेम-पगी स्निग्धता

स्नेह-बोध की आद्र्रता

वात्सल्य की मृदुता

धरती-तुल्य उदारता

अंतर-व्यथा की तपन

अपनत्व प्रमाणित

करने की लगन

आवेश भरा असंतोष

स्वयं अपना ही समर्थन

न पाने का रोष

सब कुछ संवारने का लोभ

मन का जीवंत क्षोभ

बोझिल पलकें

स्मृतियों का भार

पर हर भाव नेपथ्य में धकेल

वह जीती है

यांत्रिक भावशून्यता को।

4. एकांत

अपने मन-मस्तिष्क को

सांत्वना देने और

अंतर्मन की संयमित आकुलता को

साधने की उत्कंठा लिए

निरंतर सांसारिक संवाद

और भीतर के

एकांत को जीती

गृहिणी

चुपचाप अपने

अकेलेपन से बतियाना सीख लेती है।

5. रसोईघर

रसोई की हद और

चूल्हे-चौके की ज्ाद में

जीवन की सारी जटिलताओं

और भावों से

परिचय पा ही लेती है

हर गृहिणी

खट्टे, मीठे, नमकीन, कसैले

यहां तक कि

स्वादहीनता में भी एक स्वाद

बना ही लेती है गृहिणी।

गृहस्थी के अक्षांश पर

6. देहरी के अक्षांश पर

अविराम गतिमान

गृहिणी का जीवन

परंपराएं निभाने

और बंधनों से मुठभेड

करने में ही बीत जाता है

कायदों से भरी

इस धुरी पर चलते भीतर

कितना कुछ रीत जाता है

जितना बिखरता है उसके भीतर

उतना ही बाहर संवरता है पर

इस रूपांतरण के

बोध का अवकाश

न उसे मिलता है

न उसके अपनों को।

डॉ. मोनिका शर्मा


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