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कविताएं

विगत 27 वर्षों से लेखन के क्षेत्र में हैं दिनेश वर्मा। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन, कवि सम्मेलनों में शिरकत, मंचीय प्रस्तुतियों का अनुभव। आकाशवाणी से कविताओं का प्रसारण।

By Edited By: Published: Mon, 29 Feb 2016 04:14 PM (IST)Updated: Mon, 29 Feb 2016 04:14 PM (IST)
कविताएं

विगत 27 वर्षों से लेखन के क्षेत्र में हैं दिनेश वर्मा। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन, कवि सम्मेलनों में शिरकत, मंचीय प्रस्तुतियों का अनुभव। आकाशवाणी से कविताओं का प्रसारण।

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फागुन की मस्ती में रंगों से सराबोर होली ने साहित्यकारों, कवियों और शायरों को हमेशा प्रेरित किया है। कृष्ण-राधा और गोपियों की होली तो हमेशा ही साहित्य का प्रिय विषय रहा है। होली पर प्रस्तुत हैं कुछ पुच्छल दोहे।

संप्रति : पूरनपुर, पीलीभीत (उप्र) में कार्यरत

दिनेश वर्मा कनक

होली के दोहे

1.

फगुनाहट के जोर से, बढऩे लगी उमंग,

प्रण जितने भी आज हैं, हो जाएं न भंग।

हिय उछले है आज ज्यों, उछले जलधि-तरंग,

सुधियों के आनंद से, पुलकित है हर अंग।

फाग तो चांदी-सोना,

प्यार से इसे संजोना।

2.

सुन सखि अपनो सांवरो रोज हि रहो सताय,

मटकी बांको फोड दे, नयनन तीर चलाय।

कह न सकूं कछु लाज से, जिव्हा रुक रुक जाए,

जसुदा से अब जाय के, दें चल रपट लिखाय।

बडा दु:ख जा ने दीन्हों,

हमारो चैना छीन्हों।

3.

जोवन चढते फाग में, पछुआ मारे जोर,

मन बांके का बावरा, जल सा लेय हिलोर।

चंद्रबदन रंगने को जब, पहुंचा उसके ठौर,

चिल्ला के कहने लगी, पकडो आया चोर।

मचा फिर ऐसा हल्ला,

वहां से भागे लल्ला।

4.

बालम मोकू आज तू, मल दे आय गुलाल,

अपनी सुध बिसराय के, हो जाऊं मैं लाल।

नाचूं फिर बल खाय के, संग तोरे दे ताल,

बइयां में गिर जाउं तो, मोकू लियो संभाल।

फाग संग मैं बौराई,

सजन मदहोशी छाई।

5.

कसक उठै हिय मध्य औ, तन में उपजै पीर,

निकसत जब इस राह से, हुरियारन की भीड।

दरवज्जे पे मैं खडी, भर नयनन में नीर,

आओगे तुम कब पिया, लेकर लाल अबीर।

तुम्हारी याद सताती,

जुबां कुछ कह ना पाती।

6.

बाजू मोरी छोड दे, घर जाने दे मोय,

लाला अब संझा भयी, मैं जाऊंगी खोय।

देखत होइए आसरा, बाबा अंसुअन रोय,

सइयां मैं पइयां पडूं, कसम देत हूं तोय।

सता मत भोली छोरी,

कन्हैया कर ना जोरी।

7.

कल तो मैंने राधिका, तोय दियो थो छोड,

अब पनघट ना जाइयो, दूंगो मटकी फोड।

चाहे मो से रूठ जा, या चाहे कर जोड,

जी भर तोय सताउंगो, देऊं बांह मरोड।

आज खेलूंगो होरी,

करूंगो मैं बरजोरी।

8.

बगिया में जब कूकती, कोयल टेर लगाय,

हियरा ना बस में रहे, मनवा उड-उड जाय।

श्वांसन को बंधन पिया, तो से लियो बंधाय,

दुखिया मैं तो बावरी, तो को रही मनाय।

मान जा आई होरी,

चुनरिया रंग दे मोरी।


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