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मिस यू..

कहानी के बारे में : आज के व्यस्तता भरे दौर में कामकाजी दंपतियों के बीच कई बार न चाहते हुए भी टकराव हो जाता है। थोड़ी सी समझदारी और परिपक्वता से काम लिया जाए तो स्थितियां ठीक हो सकती हैं।

By Edited By: Published: Tue, 21 Mar 2017 04:20 PM (IST)Updated: Tue, 21 Mar 2017 04:20 PM (IST)
मिस यू..

कहानीकार के बारे में : राजस्थान शिक्षा विभाग से प्रधानाचार्य पद से अवकाश-प्राप्त, 20 वर्र्षों से लेखन में सक्रिय, 100 से अधिक कहानियां, 40 बाल-कथाएं, लघु उपन्यास व दो कहानी-संग्रह प्रकाशित। कई पुरस्कार प्राप्त। संप्रति : कोटा (राजस्थान) में। विदा करने आए थे। पति अमर, सास-ससुर, देवर-देवरानी, रोहिणी के मम्मी-पापा, भैया-भाभी, सहकर्मी और उसका पांच वर्षीय बेटा अमोल। अमोल की आंखों से आंसू बह रहे थे। अमर ने उसे गोद में उठाया हुआ था। राधिका यूं तो मुस्कुरा रही थी पर उसने आंसुओं को किसी तरह रोका हुआ था। अमर और अमोल की चिंता उसे खाए जा रही थी। कैसे मैनेज कर पाएंगे वे? अमोल को सुबह स्कूल के लिए तैयार करना कितना कठिन था, यह वही जानती थी। अमर भी उस पर पूरी तरह निर्भर थे। 'राधिका मेरा टूथब्रश नहीं मिल रहा है। कौन छेडता है मेरी चीजें? कल ब्रश करने के बाद यहीं रखा था..। 'अरे, अच्छी तरह देखो अमर... मैं नाश्ता तैयार कर रही हूं, चाय भी चढी हुई है। 'नहीं मिल रहा है।

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'... शेविंग बॉक्स में देखो तो... थोडी देर बाद अमर की आवाज आती है, 'थैंक्यू डार्लिंग...मिल गया ब्रश वहीं...। पास आकर मुस्कुराते हुए कहता, 'यू आर रिअली ए जीनियस, आई लव यू। सुनते ही राधिका का सारा गुस्सा पल भर में ही बर्फ की तरह पिघल जाता। अमर की यही बात उसे अच्छी लगती थी कि उसके प्यार भरे शब्द बोझिल माहौल को हलका बना देते थे। आज अमर चुप था। यह पहला अवसर था कि वे दोनों लंबे अरसे के लिए दूर हो रहे थे। अपनों से दूर जाने की छटपटाहट कैसी होती है, इसे आज वह गहराई से महसूस कर रही थी, हालांकि वह चाहती भी थी कि कुछ समय के लिए सबसे दूर चली जाए।

पहली बार विदेश जा रही थी। एक ओर उत्साह था तो दूसरी ओर छटपटाहट। एयरपोर्ट पर औपचारिकताएं पूरी करने में दो घंटे लग गए, यूएसए के लिए सीधी उडान भारतीय समय के अनुसार सुबह साढे तीन बजे की थी। घरवाले लाउन्ज में बैठे थे कि फ्लाइट टेकऑफ होने से पहले कहीं राधिका को किसी चीज की जरूरत न पड जाए। राधिका साइंटिफिक प्रोडक्ट्स बनाने वाली दिल्ली की एक कंपनी में साइंटिस्ट थी। पांच वर्ष फिजिक्स में शोध करने के बाद वह वैज्ञानिक बन चुकी थी। अमर एक प्राइवेट हॉस्पिटल में अधिकारी था। अस्पताल में अकसर मेडिकल उपकरण खरीदने के क्रम में राधिका की कंपनी में उसका आना-जाना होता था। वहीं पहली बार दोनों का परिचय हुआ था। धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती हुई और फिर कुछ साल बाद उन्होंने विवाह कर लिया। फ्लाइट सही समय पर थी। घडघडाहट के साथ प्लेन लंबा रनअप लेकर आसमान में ऊपर उठा। कुछ ही देर में दिल्ली की झिलमिलाती रोशनियां पीछे छूटती गईं। राधिका ने सीट पर सिर टिका लिया। वह रात भर की जगी थी मगर नींद आंखों से दूर थी। विचारों का सिलसिला जारी था।

राधिका और अमर के विवाह में एक बाधा थी, वह यह कि राधिका के पिता महेश भारद्वाज ने अपने दोस्त ललित शर्मा को कई वर्ष पहले वचन दिया था कि अपनी बेटी का हाथ उनके बेटे के हाथ में सौंपेंगे। बडी होने के बाद राधिका इस बात से बहुत नाराज हो गई। बोली, 'मैं ऐसे रिश्तों को नहीं मानती, आप ऐसा कर भी कैसे सकते हैं? यह कोई पुराना जमाना नहीं है कि वचन दे दिया है और उसे निभाना पडेगा। खैर, अच्छा यही था कि बात बिगडऩे से पहले संभल गई। लडके ने खुद ही रिश्ता तोड दिया क्योंकि वह किसी दूसरी लडकी को पसंद करता था। राधिका ने भी अमर से शादी कर ली।

उसका वैवाहिक जीवन अच्छा चल रहा था। अब तो उनकी जिंदगी में बेटा अमोल भी आ चुका था, फिर भी कभी-कभी अमर राधिका के उच्च पद और सैलरी के कारण हीनभावना से ग्रस्त हो जाता। हालांकि राधिका ने स्वयं कभी इस बारे में न तो सोचा और न कुछ कहा। वह यह मानती थी कि पति-पत्नी के बीच केवल प्यार और समझदारी मायने रखती है, पैसा नहीं। अमर कब कुंठा से ग्रस्त होता गया, उसे भी पता न चला। कई बार वह जाने-अनजाने राधिका को आहत कर देता, उसे ताने देने लगता।

शुरू में राधिका समझ नहीं पाई मगर फिर उसे समझ आ गया कि अमर के व्यवहार में यह बदलाव क्यों आ रहा है। उसने अमर से कहा कि यह सब मायने नहीं रखता रिश्ते में मगर अमर का व्यवहार बदलता जा रहा था, हालांकि राधिका अपनी ओर से रिश्ते को सामान्य बनाए रखने की सारी कोशिशें करती थी। बेटा अमोल पांच साल का हो रहा था और वह भी कहीं न कहीं माता-पिता के बीच चल रही इस संवाद-हीनता को महसूस कर रहा था।

...उस दिन उनकी वेडिंग एनिवर्सरी थी। दोनों ने सुबह एक-दूसरे को विश किया। राधिका की आशा के विपरीत अमर ने कहा, 'मैंने आज ऑफिस से छुट्टी ली है। हम एनिवर्सरी सेलिब्रेट करेंगे...अमोल को स्कूल नहीं भेजेंगे। तुम भी छुट्टी ले लो। 'अमर आज तो बिलकुल नहीं हो सकता, आज मुझे जरूरी काम है। हमारी जूनियर टीम का ट्रेनिंग सेशन है...मैं आपको बताना ही भूल गई थी कि आज बहुत व्यस्त रहूंगी। सॉरी...रात में भी शायद देर हो। प्लीज एक दिन मैनेज कर लीजिए। 'मम्मी, आपने प्रॉमिस किया था कि वॉटर पार्क दिखाओगी? अमोल ने इसरार किया। 'आज नहीं बेटा, फिर कभी...। अमोल का उतरा चेहरा देख अमर ने कहा, 'डोंट वरी बेटा... मैं हूं न। मैं तुम्हें लेकर चलूंगा। आज हम कहीं घूमने चलेंगे...।

कार के हॉर्न की आवाज सुनाई दी तो राधिका हडबडा कर दौडऩे लगी, 'अमर, मेरे बॉस मिस्टर व्यास आ गए हैं। उन्होंने कहा था कि सुबह 8 बजे मुझे पिकअप करेंगे। ओके बाय, सी यू...। राधिका ने पर्स और लैपटॉप उठाया और हवा के झोंके की तरह निकल गई कमरे से। उसके जाने के बाद बेमन से उठा अमर, अमोल को नहला-धुला कर तैयार किया। मन तो नहीं था पर अमोल के कारण उसे जाना पडा। शाम को उसे फिल्म दिखा दी।

घर लौटे तो शाम के 7 बजे रहे थे और राधिका अभी भी नहीं लौटी थी। फोन भी शायद साइलेंट मोड पर था। वह बुरी तरह खीझ गया था। ...साढे सात बजे के आसपास राधिका अपने बॉस के साथ लौटी। वह उसे छोड कर जा रहे थे लेकिन राधिका ने एक कप कॉफी पीने का आग्रह किया। उसने सोचा, इस बहाने अमर और बेटे से भी उन्हें मिला देगी। राधिका आते ही किचन में घुस गई ताकि जल्दी कॉफी तैयार कर सके। उसके बॉस अमर से बातचीत करने लगे।

कॉफी पीते हुए उन्होंने अमर से कहा, 'कंपनी आपकी वाइफ को तीन महीने के लिए कैलिफोर्निया भेजना चाहती है। देखिए, यह बहुत बडा मौका है उनके लिए। ऐसे मौके कम ही लोगों को मिल पाते हैं लेकिन राधिका अभी इसके लिए मन नहीं बना पा रही हैं। उन्होंने कहा है कि आपसे पूछ कर ही तय करेंगी कि जाएं या न जाएं। वह बेटे की वजह से चिंतित हैं। वैसे, आप क्या सोचते हैं इस बारे में? तीन महीने की ही तो बात है, उनका करियर ग्राफ बढ जाएगा, सैलरी और पक्र्स भी बढेंगे।

यह सुनकर अमर आश्चर्य से भर गया। पिछले कुछ समय से न जाने क्यों वह राधिका के बारे में नकारात्मक बातें सोचने लगा था और एक वह है कि बिना उसकी अनुमति के कोई भी निर्णय लेने को तैयार नहीं है। अमर ने कहा, 'सर, मुझे तो बहुत खुशी हो रही है कि राधिका को यह मौका मिला है...मुझे भला क्यों आपत्ति होगी? मेरा मानना है कि राधिका को यह अवसर बिलकुल नहीं गंवाना चाहिए।

अमर की ये बातें सुन कर राधिका मुस्कुरा दी। उसे भी आश्चर्य हुआ कि अमर कैसे यह बोल रहा है, जबकि वह हमेशा उसकी नौकरी को लेकर ताने देता रहा है। वह अकसर उसे सुनाता रहता है कि जॉब के साथ कोई भी स्त्री अपने घर-परिवार की देखरेख ठीक से नहीं कर सकती। वही अमर आज इतना खुश दिख रहा है और उसके विदेश जाने की बात पर खुशी जाहिर कर रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके बॉस के सामने वह दिखावा कर रहा हो...? बॉस के विदा लेते ही उसने राधिका को गले से लगा लिया, 'राधिका, यह हमारी वेडिंग एनिवर्सरी का सबसे प्यारा गिफ्ट है। तुमने खुद को साबित कर दिखाया। तुम इतना अच्छा मौका मत छोडो, मैं यहां सब संभाल लूंगा, तुम बस करियर के बारे में सोचो...।

...पता नहीं कितना समय निकल गया। राधिका की तंद्रा भंग हुई तो एयरहोस्टेस उसके पास खडी थी। उसने राधिका को कॉफी और स्नैक्स सर्व किए। 'थैंक्स, कहते हुए उसने कॉफी ली और पूछा, 'हम कहां पहुंच रहे हैं? 'मैम, हम दुबई एयरपोर्ट पर लैंड करने वाले हैं, यहां प्लेन फ्यूल लेगा और लगभग एक घंटे रुकेगा। कुछ ही देर में असंख्य लाइट्स से चकाचौंध दुबई एयरपोर्ट पर प्लेन लैंड कर गया। वहां की भव्यता देखते ही बनती थी। आंखों पर सहज विश्वास करना कठिन था कि इंसान ने अपने सक्रिय दिमाग से कितना कुछ रच डाला है। काश कि जीवन मूल्यों को भी इतनी ही खूबसूरती के साथ निखारा होता तो धरती स्वर्ग बन जाती।

विदेशी धरती पर आकर राधिका को लगा जैसे एक विशाल मगर खूबसूरत शहर में उसे अकेले भटकने को छोड दिया गया है। जिस प्रतिष्ठान में वह गई थी, वह बेहद बडा, आलीशान और खूबसूरत था। वहां का वर्क कल्चर कमाल का था और लोग जबर्दस्त प्रोफेशनल। काम के अलावा वहां और कुछ होता ही नहीं था मगर एक चीज थी, जो वह मिस कर रही थी। वह था- अपनापन।

ये तीन महीने राधिका के लिए पहाड जैसे थे। अलग होते ही उसने पति के नजरिये से स्थितियों को देखने की कोशिश की तो उसे लगा, अपनी प्रोफेशनल व्यस्तता के कारण वह जिम्मेदारियों को नजरअंदाज कर रही थी। काम से छुट्टी पाते ही वह गेस्ट हाउस जाकर अमर को फोन लगाती। देर तक पति और बच्चे से बातें करती...। उसके लिए एक-एक पल यहां रहना मुश्किल हो रहा था। एक दिन उसने फोन पर कह ही दिया, 'जानते हैं अमर, आपसे दूर रहने के बाद मुझे महसूस हो रहा है कि जीवनसाथी और प्यार की क्या अहमियत होती है। जब कोई चीज सामने होती है तो हम महत्व नहीं समझ पाते मगर उससे अलग होते ही हमें उसकी कीमत पता चल जाती है।

उसे पति पर गर्व हो रहा था, जो उसके बिना भी बेटे के प्रति सारे दायित्व निभा रहा था। कई बार अमर को ऑफिस से छुट्टी भी लेनी पडती लेकिन उसने कभी राधिका से इसकी शिकायत नहीं की। यहां अपने स्टाफ की सारा एंब्रोसन और उसके हस्बैंड ब्रायड से उसकी अच्छी दोस्ती हो गई थी। उनके चार साल के बेटे हेनरी के साथ वह हिल-मिल गई थी। अकसर उसका वीकेंड उन्हीं लोगों के साथ बीतता।

ब्रायड सारा से इतना प्रेम करता था कि ऑफिस से फ्री होते ही ठीक साढे पांच बजे सारा को लेने ऑफिस पहुंच जाता। सारा को देर होती तो वह ऑफिस के सामने बने पार्क में इंतजार करता रहता। इस जोडे को देख कर राधिका के मन में हूक सी उठती, काश अमर भी यहां होता। वाकई बीता समय नहीं लौटता। अकसर शनिवार रात राधिका का डिनर सारा के घर पर होता। ढेरों बातें होतीं। अमर के जन्मदिन पर उसने भी एक छोटी सी पार्टी दे दी। विडियो चैट पर उसने अमर को केक दिखाया और उसे विश किया, सारे दोस्तों ने भी अमर को बर्थडे विश किया। राधिका के आंसू बहे जा रहे थे और अमर उससे बार-बार कह रहा था, 'बस थोडे दिन और... फिर हम सब साथ होंगे...।

...फिर वह दिन भी आ गया, जब राधिका वापस घर जाने को तैयार थी। सभी दोस्त उसे छोडऩे आए थे। मन में उत्साह था और आंखों में चमक। वह जल्दी ही पति व बेटे से मिलने वाली थी और इस बार कभी अलग न होने के लिए। प्लेन उडान भर चुका था और वह खिडकी से बाहर विस्तृत नीले आकाश को देखने लगी थी...।


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