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क्या बच्चों पर पढ़ाई का बोझ बढ़ता जा रहा है?

आज की शिक्षा व्यवस्था में क्या बच्चों पर पढ़ाई का बोझ सचमुच बढ़ता जा रहा है, क्या इसमें बदलाव होने चाहिए या वाकई क्या यह आज की ज़रूरत है? इस मुद्दे पर क्या सोचती हैं दोनों पीढिय़ां, आइए जानते हैं सखी के साथ।

By Edited By: Published: Wed, 22 Mar 2017 02:22 PM (IST)Updated: Wed, 22 Mar 2017 02:22 PM (IST)
क्या बच्चों पर पढ़ाई का बोझ बढ़ता जा रहा है?

समझें अपनी जिम्मेदारी मंजू अग्रवाल, गाजियाबाद वाकई आजकल बच्चों पर पढाई का बोझ बढता जा रहा है। पेरेंट्स भी उनसे बहुत ज्य़ादा उम्मीदें रखते हैं। इससे वे अपना बचपन भूलते जा रहे हैं। नौवीं-दसवीं कक्षा से ही उन पर स्कूल की पढाई के साथ इंजीनियरिंग की कोचिंग का भी दबाव बढ जाता है। ऐसे में वे अपनी रुचियों को भूलकर माता-पिता के दबाव में उस करियर का चुनाव कर लेते हैं, जिसके लिए वे पूरी तरह सक्षम नहीं हैं। इसी वजह से आजकल स्कूली छात्रों में भी एंग्जायटी और डिप्रेशन जैसी गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्याएं तेजी से बढ रही हैं। उन्हें ऐसी परेशानियों से बचाने के लिए हर अभिभावक की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने बच्चे की रुचियों को बारीकी से समझे, उस पर हमेशा नंबर वन बने रहने का दबाव न डालें। अगर उसे अपनी पसंद से करियर चुनने की आजादी मिलेगी तो भविष्य में वह निश्चित रूप से कामयाब होगा।

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रोचक हो पढाई का तरीका अपर्णा मोअज्जम, दिल्ली आजकल बच्चों को ऐसे कठिन प्रोजेक्ट्स और होमवर्क दिए जाते हैं, जिन्हें पेरेंट्स को ही पूरा करना पडता है। ऐसी शिक्षा से क्या फायदा, जो शुरू से ही बच्चों के मन में पढाई के प्रति अरुचि पैदा कर दे। इस समस्या से बचने के लिए पढाई के तरीके को रोचक बनाने की जरूरत है। हालांकि, शिक्षा प्रणाली में आने वाला यह बदलाव स्वाभाविक है। फिर भी शिक्षण संस्थानों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे बच्चों के स्कूल बैग से किताबों का बोझ कम करें।

विशेषज्ञ की राय समय के साथ एजुकेशन सिस्टम में थोडा बदलाव आना स्वाभ्भाविक है। पुराने समय की तुलना में आज स्कूल जाने वाले बच्चों की तादाद काफी बढ गई है। आजकल जिस तेजी से शिक्षा का प्रचार-प्रसार हो रहा है, उससे प्रतियोगिता बहुत बढ गई है। ज्य़ादातर पेरेंट्स और टीचर्स को यह मालूम नहीं होता कि औसत दरजे के छात्रों के लिए करियर के बेहतर विकल्प क्या हो सकते हैं। पेरेंट्स को यह बात समझनी चाहिए कि परीक्षा बच्चों के जीवन का एक जरूरी हिस्सा है पर वही सब कुछ नहीं है। हर स्टूडेंट की क्षमता और रुचियां दूसरे से अलग होती हैं। पेरेंट्स को भी इसका सही अंदाजा होना चाहिए, ताकि वे अपने बच्चे को उसी के अनुकूल ट्रेनिंग दे सकें। छोटी उम्र से ही बच्चों को पढाई के अलावा घर के रोजमर्रा के कार्यों में भी शामिल करना चाहिए लेकिन पेरेंट्स उन्हें ओवर प्रोटेक्शन देते हैं, जिससे वे रोजमर्रा की व्यावहारिक जरूरतों से जुडे छोटे-छोटे कार्य नहीं सीख पाते। हालांकि, जीवन में इन कार्यों की भी बहुत ज्य़ादा अहमियत है। जहां तक पठिकाओं के विचारों का सवाल है तो मैं भी उन दोनों की इस बात से सहमत हूं कि बच्चों पर पढाई का बोझ बढता जा रहा है और उन्हें अच्छी शिक्षा देने के लिए पेरेंट्स और शिक्षण संस्थानों को मिलकर प्रयास करना चाहिए। गीतिका कपूर, मनोवैज्ञानिक सलाहकार

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