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बेेटे को भी चाहिए आपका साथ

शादी से पहले लड़की की मां उसके व्यक्तित्व को निखारने की पूरी कोशिश करती है, पर बेटों के मामले में ज्य़ादातर माता-पिता ध्यान नहीं देते। जबकि बेटी की ही तरह बेटे को भी शादी से पहले माता-पिता के सहयोग और मार्गदर्शन की ज़रूरत होती है, ताकि शादी के बाद वह जि़म्मेदार पति और अच्छा दामाद साबित हो सके।

By Babita kashyapEdited By: Published: Tue, 25 Nov 2014 12:06 PM (IST)Updated: Tue, 25 Nov 2014 12:10 PM (IST)
बेेटे को भी चाहिए आपका साथ

शादी से पहले लड़की की मां उसके व्यक्तित्व को निखारने की पूरी कोशिश करती है, पर बेटों के मामले में ज्य़ादातर माता-पिता ध्यान नहीं देते। जबकि बेटी की ही तरह बेटे को भी शादी से पहले माता-पिता के सहयोग और मार्गदर्शन की ज़रूरत होती है, ताकि शादी के बाद वह जि़म्मेदार पति और अच्छा दामाद साबित हो सके।

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शादी की बात पक्की होते ही लड़कियों को चारों ओर से नसीहतें मिलने लगती हैं कि ससुराल में सबका ख़्ायाल रखना, वहां के नए माहौल के साथ घुलने-मिलने की कोशिश करना, पति की भावनाओं को समझते हुए उसी के अनुकूल व्यवहार करना। वहीं जब लड़के की शादी की बात होती है तो परिवार वाले का$फी निश्चिंत नज़र आते हैं। यह सच है कि शादी के बाद लड़की की जि़ंदगी में बहुत बड़ा बदलाव आता है और उसे एक नए परिवेश में बिलकुल अलग ढंग से अपनी जि़ंदगी की शुरुआत करनी पड़ती है, इसलिए उसकी ओर से एडजस्टमेंट की ज्य़ादा ज़रूरत होती है। लड़के शादी के बाद भी अपने ही घर में रहते है। लिहाज़ा शादी से पहले उन्हें लड़कियों जैसी घबराहट नहीं होती। फिर भी शादी के बाद उनकी जि़ंदगी में भी बहुत कुछ बदल जाता है। ऐसे में उनके लिए भी यह बेहद ज़रूरी होता है कि वे ख़्ाुद को इस बदलाव के लिए मानसिक रूप से तैयार करें, ताकि उनके नए जीवन की ख़्ाुशियां बरकरार रहें।

बदल जाता है बहुत कुछ

अब तक ऐसा माना जाता था कि शादी के बाद लड़कों को एडजस्टमेंट की कोई ख़्ाास ज़रूरत नहीं होती, लेकिन सच्चाई यह है कि शादी के रिश्ते में लड़के बराबर के भागीदार होते हैं। शादी के बाद वे भी नई जि़म्मेदारियों के बंधन में बंध जाते हैं। अपने नए रिश्तों के साथ एडजस्टमेंट के लिए उन्हें भी थोड़े समय और पर्सनल स्पेस की ज़रूरत होती है। ऐसे में बेटे के माता-पिता की यह जि़म्मेदारी बनती है कि वे उसे नए रिश्तों की अहमियत समझाएं। इस संबंध में मैरिज काउंसलर डॉ.अनु गोयल कहती हैं, 'आजकल शादी से पहले काउंसलिंग के लिए कई युवा जोड़े हमारे पास आते हैं। उनमें से ज्य़ादातर लड़के सि$र्फ इसी बात को लेकर तनावग्रस्त होते हैं कि मैं पत्नी, ससुराल और माता-पिता के साथ अपने रिश्तों के बीच संतुलन कैसे स्थापित कर पाउंगा। ऐसी स्थिति में कई बार हमें लड़कों के पेरेंट्स से भी बात करनी पड़ती है। हम उनसे यही कहते हैं कि शादी के व$क्त लड़के ख़्ाुद पर बहुत ज्य़ादा दबाव महसूस करते हैं। वे सोचते हैं कि अगर मैं अपनी पत्नी या उसके परिवार वालों का ज्य़ादा ख़्ायाल रखूंगा तो मेरे माता-पिता मुझसे नाराज़ हो जाएंगे। ऐसे में बेटे के माता-पिता को भी अपनी भावी बहू और उसके परिवार वालों के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार रखना चाहिए। इसे देखकर लड़का अपने नए रिश्तों के प्रति सहज रहेगा। कुछ पेरेंट शादी तय होने के बाद छोटी-छोटी बातों को लेकर बेटे के सामने ही लड़की के परिवार के प्रति अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करना शुरू कर देते हैं। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि बेटे के दांपत्य जीवन पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।Ó

अहमियत ससुराल की

अपनी ससुराल के साथ दामाद का बड़ा ही नाज़ुक रिश्ता होता है। इसलिए शुरुआत से ही इस रिश्ते के प्रति लड़कों को ख़्ाास तौर से सजगता बरतनी चाहिए। इस संबंध में मनोवैज्ञानिक सलाहकार विचित्रा दर्गन आनंद कहती हैं, 'चाहे समय कितना भी क्यों न बदल जाए, लेकिन दामाद को विशेष रूप से सम्मान देने की परंपरा आज भी कायम है। इसी भावना का $गलत $फायदा उठाते हुए पुराने समय में दामाद छोटी-छोटी बातों पर नाराज़ हो जाते थे। अब ज़माना बदल चुका है। लड़कियां भी शिक्षित और आत्मनिर्भर हैं। आज अगर कोई पति ससुराल वालों के साथ बुरा व्यवहार करता है तो पत्नी के मन में पहला सवाल यही उठता है कि जब मैं इनके पूरे परिवार का हर तरह से ख़्ायाल रखती हूं तो क्या ये मेरे परिवार वालों के साथ सामान्य शिष्टïाचार भी निभा नहीं सकते? इसीलिए आज के ज़माने में ससुराल के साथ रिश्तों की मधुरता बनाए रखने के लिए दामाद को भी अपनी ओर से थोड़ी कोशिश करनी चाहिए। वैसे भी लड़की वाले दामाद से बहुत ज्य़ादा उम्मीदें नहीं रखते। अगर आप केवल उनके साथ शालीन व्यवहार रखें तो इतने भर से भी आपके सास-ससुर आपसे बेहद ख़्ाुश रहेंगे।Ó

बढ़ी हैं जि़म्मेदारियां

आजकल एकल परिवारों में ज्य़ादातर एक या दो ही संतानें होती हैं। ऐसे में बेटे या बेटी की शादी के बाद माता-पिता बिलकुल अकेले पड़ जाते हैं। उनके साथ परिवार का कोई ऐसा $करीबी व्यक्ति नहीं होता, जो उनकी देखभाल कर सके। ऐसे हालात में बेटे-बहू के साथ बेटी-दामाद की भी यह जि़म्मेदारी होती है कि वे दोनों परिवारों का ख़्ायाल रखें। इस संबंध में 65 वर्षीय होममेकर शारदा शर्मा कहती हैं, 'मेरे माता-पिता हमारे घर का पानी तक नहीं पीते थे, पर समय के साथ लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है। हमारी दोनों बेटियां डॉक्टर हैं। उनकी शादी हो चुकी है। उनके जाने के बाद हम अकेले पड़ गए हैं, पर मेरे दामाद इतने अच्छे हैं कि वह हर वीकएंड पर हमें अपने साथ ले जाते हैं और कभी-कभी मैं भी अपनी बेटियों को अपने घर बुला लेती हूं।Ó

ख़्ाुशहाली का रास्ता

लड़कियां हमेशा से ही अपने पति के माता-पिता की सेवा करती आ रही हैं, लेकिन समय के साथ लड़कों में भी अपने रिश्ते के प्रति सजगता आ गई है। वे इस बात को समझने लगे हैं कि मुझे भी पत्नी के माता-पिता और छोटे भाई-बहनों का ख़्ायाल रखना चाहिए। इस संबंध में डॉ.विचित्रा आगे कहती हैं, 'पुराने समय में दांपत्य जीवन को ख़्ाुशहाल बनाने की जि़म्मेदारी पत्नी को अकेले ही निभानी पड़ती थी, पर अब ऐसा नहीं है। आज का पति इस बात को अच्छी तरह समझता है कि सफल दांपत्य जीवन के लिए पत्नी की छोटी-छोटी ख़्ाुशियों का भी ख़्ायाल रखना ज़रूरी है। फिर मायका तो हर स्त्री को बेहद प्रिय होता है। इसलिए आज के जागरूक पति इस फॉम्र्युले को अच्छी तरह समझ गए हैं कि पत्नी को ख़्ाुश रखने के लिए उसके मायके को भी ख़्ाुश रखना बहुत ज़रूरी है।Ó

यह सच है कि समय के साथ रिश्तों के प्रति समाज का नज़रिया बदल रहा है और उन्हें सही ढंग से निभाने के लिए संतुलित व्यवहार बेहद ज़रूरी है।

सबसे प्रिय दामाद हूं मैं

यशपाल शर्मा, अभिनेता

मैं मूलत: हिसार (हरियाणा) का रहने वाला हूं और मेरी पत्नी सरिता मराठी हैं। दिल्ली आने के बाद एनएसडी में सरिता से मेरी मुला$कात हुई। जब मैं सरिता के घर उनका हाथ मांगने गया तो उनके परिवार वालों को इस बात पर सख़्त ऐतराज था कि लड़का कुछ कमाता नहीं है, इसलिए यह शादी नहीं हो सकती। अंतत: हमारी शादी हो गई। यह बताते हुए मुझे बहुत ख़्ाुशी होती है कि अब मैं अपनी सास का सबसे प्रिय दामाद हूं और अपने अच्छे व्यवहार से वहां मैंने सबका दिल जीत लिया है।

मामूली वैचारिक मतभेद हैं

सुभाष कपूर, निर्देशक एवं पटकथा लेखक

हमारी लव मैरिज हुई है। मेरी पत्नी डिंपल उच्च मध्यवर्गीय परिवार से हैं, लेकिन जब हमने शादी का निर्णय लिया था, तब मेरी माली हालत अच्छी नहीं थी। फिर भी इसे मैं डिंपल के पिता का बड़प्पन कहूंगा कि वह इस शादी के लिए राजी हो गए। दरअसल मैं नास्तिक हूं, इस बात को लेकर डिंपल और अपनी ससुराल वालों से मेरे कुछ वैचारिक मतभेद ज़रूर हैं, फिर भी मैं उन लोगों की भावनाओं को पूरा सम्मान देता हूं। इसी वजह से उस परिवार में मेरी ख़्ाासी अहमियत है।

कला के कद्रदान ससुर जी

मुश्ता$क ख़्ाान, अभिनेता

यह 1985 की बात है। मेरी पत्नी सलमा की बड़ी बहन शादी से पहले मुझे देखने आई थीं। तब एक कमरे में मैं अपने चार दोस्तों के साथ रहता था। उस व$क्त कमरा बहुत बिखरा हुआ था। बड़ी साली साहिबा ने घर वापस जाकर बताया कि लड़का तो बड़ा तंगहाल है, पर मेरे ससुर जी कला के कद्रदान थे। उन दिनों मैं स्ट्रगलर था। उन्हें पता था कि मेहनती लड़का है। कुछ न कुछ कर ही लेगा। इसीलिए उन्होंने शादी के लिए हां, कर दी। उनके लिए मेरे दिल में बहुत इज़्ज़त है।

हमेशा जाता हूं ससुराल

सौरभ शुक्ला, अभिनेता

हम दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि बिलकुल अलग है। मैं गोरखपुर का हूं और मेरी पत्नी वर्णाली बंगाली हैं। मुंबई में जब मैंने उन्हें पहली बार प्रपोज किया था तो वह बुरी तरह नाराज़ हो गईं, अपनी मां के पास कोलकाता वापस लौट आईं। मां के समझाने पर जब $गुस्सा शांत हो गया तो मान गईं और हमने शादी कर ली। मैं वर्णाली की हर ख़्ाुशी का ख़्ायाल रखता हूं। चाहे कितनी ही व्यस्तता क्यों न हो, उनके साथ ससुराल जाने के लिए समय निकाल ही लेता हूं।

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