अपना भी रखें ख्याल
मां बनने के बाद जिम्मेदारियां स्त्री को थका देती हैं। इससे कई बार पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण नजर आने लगते हैं। ऐसी समस्या से बचने के लिए अपना खयाल रखना भी बेहद जरूरी है।
किसी भी स्त्री के लिए मां बनना एक सुखद एहसास है, लेकिन इसके साथ ही उसके शरीर में कई बदलाव आते हैं-जैसे हार्मोन्स के स्तर में उतार-चढाव, तनाव और नींद की कमी आदि। इसके अलावा डर, अति भावुकता, चिडचिडापन और मूड स्विंग जैसी समस्याएं ज्यादातर स्त्रियों में देखने को मिलती हैं। डिलिवरी के बाद शुरुआती कुछ दिनों तक ऐसी समस्याएं होना आम बात है, जो समय के साथ जल्द ही दूर हो जाती हैं। अगर प्रसव के कई महीने बाद तक भी किसी स्त्री में ऐसे लक्षण मौजूद हों तो मेडिकल साइंस की भाषा में इसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहा जाता है।
प्रमुख लक्षण
थकान, सिरदर्द, चिडचिडापन, अनावश्यक उदासी और छोटी-छोटी बातों पर आंखों में आंसू आना
आत्मविश्वास में कमी, अपराधबोध, दुविधा और खुद को नाकाम मानना शिशु की सेहत और सुरक्षा को लकर हमेशा भयभीत रहना सामाजिक कार्यों में अरुचि अनिद्रा या अत्यधिक सोना ओवर ईटिंग या भोजन के प्रति अरुचि अपनी सेहत, सौंदर्य, सफाई और पहनावे पर जरा भी ध्यान न देना
क्यों होता है ऐसा
डिलिवरी के बाद एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरॉन व कोर्टिसोल हॉर्मोन के स्तर में गिरावट
प्रेग्नेंसी से पहले होने वाली कोई मनोवैज्ञानिक समस्या
आनुवंशिकता
करियर खत्म होने की चिंता
दिनचर्या में परिवर्तन और अनिद्रा
गर्भावस्था की स्वास्थ्य समस्याएं
पति-पत्नी के तनावपूर्ण संबंध
प्रेग्नेंसी से लेकर डिलिवरी तक घर में सपोर्ट सिस्टम का अभाव
आर्थिक परेशानियां
अनियोजित या अवांछित प्रेग्नेंसी की स्थिति में भी स्त्री शिशु की परवरिश से जुडी जिम्मेदारियां उठाने को तैयार नहीं होती। इससे भी उसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन की समस्या हो सकती है।
इन बातों का रखें ध्यान
अगर आपको अचानक अपने व्यवहार में बहुत ज्यादा चिडचिडापन दिखाई देता है तो इसे डिलिवरी के बाद पैदा होने वाली मामूली समस्या समझ कर नजरअंदाज न करें।
कुछ स्त्रियां स्ट्रेच माक्र्स की आशंका से भी इस समस्या की शिकार हो जाती हैं। इसलिए डिलिवरी के बाद स्किन स्पेशलिस्ट से भी सलाह लेना बहुत जरूरी है।
अगर रात को नींद पूरी नहीं हो पाए तो दिन में बच्चे के साथ आप भी थोडी देर आराम कर लें।
अगर पति-पत्नी के बीच आपसी विश्वास और सहयोग की भावना हो तो ऐसी समस्या से बाहर निकलना बहुत आसान हो जाता है।
क्या है उपचार
किसी भी मनोवैज्ञानिक समस्या की तरह काउंसलिंग के जरिये इसका भी उपचार संभव है। इस समस्या से ग्रस्त स्त्रियों को आमतौर पर एंटीडिप्रेसेंट दवाएं दी जाती हैं। हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी भी इस बीमारी के उपचार में मददगार होती है। अगर मां शिशु को ब्रेस्ट फीड देती है तो डॉक्टर इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि किसी दवा की वजह से शिशु की सेहत पर कोई बुरा असर न पडे। आनुवंशिकता इस समस्या की प्रमुख वजह है। इसलिए अगर किसी के परिवार में इस बीमारी की केस हिस्ट्री रही हो तो उसे अपनी डॉक्टर को इस बात की जानकारी अवश्य देनी चाहिए। याद रखें, शिशु की अच्छी देखभाल तभी संभव है, जब आप भी स्वस्थ और प्रसन्न रहेंगी। द्य
सखी फीचर्स
इनपुट्स : डॉ. संजना सराफ, क्लिनिकल
साइकोलॉजिस्ट, मैक्स हॉस्पिटल गुडगांव