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अजन्मे शिशु के साथ अनूठा सफर

आइए जानें, गर्भस्थ शिशु के विकास और उन नौ महीनों के दौरान भावी मां की सेहत से जुड़ी कई ज़रूरी बातें वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. वारिजा के साथ।

By Edited By: Published: Wed, 01 Jun 2016 04:47 PM (IST)Updated: Wed, 01 Jun 2016 04:47 PM (IST)
अजन्मे शिशु के साथ अनूठा सफर

फस्र्ट ट्राइमेस्टर 0-3 महीने

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शुरुआती दो सप्ताह

स्त्री के शरीर में नए जीवन की शुरुआत कोशिकाओं के विभाजन के साथ होती है। सहवास के बाद शुरुआती तीस घंटों में पहली कोशिका का विभाजन होता है। उसके बाद तीन दिनों के भीतर इसी तरह अलग-अलग कोशिकाओं के विभाजन से कुल आठ कोशिकाएं तैयार हो जाती हैं और इसका आकार तरल पदार्थ भरे गेंद जैसा होता है। इसके बाद भी कोशिका विभाजन की प्रक्रिया जारी रहती है। इसकी भीतरी कोशिकाएं भ्रूण के रूप में विकसित होती हैं और बाहरी कोशिकाएं सुरक्षा कवच का काम करती हैं।

तीसरा-चौथा सप्ताह

भ्रूण तीन सतहों में विभाजित होकर विकसित होने लगता है। कोशिकाओं की बाहरी सतह से नर्वस सिस्टम और त्वचा का विकास शुरू हो जाता है और ब्रेन के लिए पतले धागे के आकार के न्यूरॉन का निर्माण शुरू हो जाता है। कोशिकाओं के मध्य भाग से मांसपेशियों, हड्डियों का ढंाचा, रक्त-संचार का सिस्टम और अन्य आंतरिक अंगों की संरचना विकसित होने लगती है। कोशिकाओं की आंतरिक सतह से पाचन संस्थान, फेफडे, लिवर, किडनी और यूरिनरी ब्लैडर की संरचना शुरू हो जाती है।

दूसरा महीना

जबडा, आंख, कान और गले की संरचना शुरू हो जाती है। शुरुआती दौर में विभाजित हो चुकी आठ कोशिकाओं का बाहरी हिस्सा हाथ-पैर और उंगलियों का आकार ग्रहण करने लगता है। भ्रूण के भीतर ब्लड सेल्स बनने लगते हैं और इसके बाहरी हिस्से का विकास बहुत तेजी से हो रहा होता है।

तीसरा महीना

गर्भस्थ शिशु की आंखें बन चुकी होती हैं, लेकिन पलकें बंद रहती हैं।

प्रमुख लक्षण

शरीर में प्रोजेस्टेरोन हॉर्मोन का स्तर बढने की वजह से गर्भवती स्त्री की आंतों में खिंचाव पैदा होता है, जिससे एसिडिटी और उल्टी जैसे समस्याएं हो सकती हैं। पेट के निचले हिस्से में दर्द और बार-बार यूरिनेशन की समस्या हो सकती है।

क्या न करें

यह प्रेग्नेंसी का सबसे नाजुक दौर है। इस दौरान ज्यादा भारी वान उठाने और सीढियां चढने के अलावा कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जिससे शरीर के निचले हिस्से पर दबाव पडे। सहवास से दूर रहें, इससे मिसकैरेज का ख्ातरा बढ जाता है।

क्या करें

संतुलित और पौष्टिक आहार लें। इसी अवस्था में गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क का विकास शुरू हो जाता है, इसलिए अपनी डॉक्टर की सलाह पर फॉलिक एसिड की गोलियों का नियमित सेवन करें।

सेकंड ट्राइमेस्टर 4-6 महीने

चौथा महीना

शिशु का वोकल कॉर्ड विकसित हो जाता है और वह अपना सिर ऊपर उठा सकता है। हाथ-पैरों की उंगलियों पर नाख्ाूनों का निर्माण शुरू हो जाता है। शिशु के जेनाइटल अंगों की संरचना विकसित होने लगती है। लिवर, किडनी और आंत जैसे सभी आंतरिक अंगों का विकास तेजी से हो रहा होता है।

पांचवां महीना

गर्भस्थ शिशु के कद और वजऩ में तेजी से वृद्धि हो रही होती है। उसका चेहरा आकार ग्रहण कर चुका होता है। जबडे के भीतर उसकी जीभ का भी विकास हो रहा होता है। सिर पर बाल और पूरे शरीर की त्वचा पर रोएं दिखाई देने लगते हैं। त्वचा की सुरक्षा के लिए उस पर फैट की हलकी परत जम जाती है। वह सुनने में सक्षम हो जाता है और यूट्रस के भीतर मौजूद एम्नीओटिक फ्लूइड में तैरना शुरू कर देता है।

छठा महीना

उसकी त्वचा पर वैक्स जैसे एक चिकने पदार्थ की परत जमा हो जाती है, जो इस फ्लूइड के नुकसानदेह तत्वों से शिशु की रक्षा करती है और इसकी वजह से डिलिवरी के दौरान शिशु का बाहर निकलना आसान हो जाता है। त्वचा सिकुड जाती है और उसकी रंगत लाल हो जाती है। शिशु की आंखें पूरी तरह विकसित हो चुकी होती हैं। उसके सिर और मांसपेशियों का विकास तेजी से हो रहा होता है। इस अवस्था में शिशु मुंह खोलने और मांसपेशियों को खींचने में पूरी तरह समर्थ होता है। मुंह के भीतर मसूडे का भी निर्माण हो जाता है। उसकी आंतें गर्भनाल से जुड चुकी होती हैं।

प्रमुख लक्षण

यह प्रेग्नेंसी का सबसे सुरक्षित और ख्ाुशनुमा दौर होता है क्योंकि गर्भस्थ शिशु अपना संपूर्ण आकार ग्रहण करके यूट्रस के ऊपरी हिस्से में अच्छी तरह जगह बना लेता है। नॉजिय़ा संबधी समस्या भी कम हो जाती है और मां उस नन्ही सी जान के मूवमेंट को महसूस कर सकती हैं। गर्भवती स्त्री के ब्रेस्ट से दूध का हलका सिक्रीशन हो सकता है।

क्या न करें

सर्दी-जुकाम, बुखार या लूज मोशन जैसी कोई भी मामूली समस्या होने पर अपने मन से कोई दवा न लें। बाहर का खाना न खाएं क्योंकि इस दौरान शरीर की संवेदनशीलता बहुत ज्यादा बढ जाती है, जिससे इन्फेक्शन की आशंका बढ जाती है।

क्या करें

अपने भोजन में हरी पत्तेदार सब्जिय़ों, फलों, मेवों और मिल्क प्रोडक्ट्स को प्रमुखता से शामिल करें। आयरन और कैल्शियम सप्लीमेंट का सेवन करें। अगर आप सहज महसूस करें तो इस दौरान सहवास को पूर्णत: सुरक्षित माना जाता है। चौथे महीने के अंत में टेटनस का पहला और पांचवें के अंत में दूसरा टीका लगवाना न भूलें। यूटीआइ से बचाव के लिए पर्सनल हाइजीन का विशेष ध्यान रखें।

थर्ड ट्राइमेस्टर 7-9 महीने

सातवां महीना

शिशु के दिल की धडकनें मां के पेट पर कान लगा कर स्पष्ट रूप से सुनी जा सकती हैं। वह अंगूठा चूसने में सक्षम होता है। उसकी लंबाई लगभग 32-42 सेमी. और वजऩ 1100-1350 ग्राम तक हो सकता है। शिशु की जीभ में टेस्ट बड्स विकसित हो चुकी होती हैं और वह हर तरह के स्वाद पर अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त करता है।

आठवां महीना

वह अपनी आंखें खोलने और बंद करने में सक्षम होता है। इसकी आईलैशेज और आईब्रो का भी विकास होने लगता है। उसके हाथ-पैर पूरी तरह विकसित हो चुके होते हैं। मांसपेशियां नर्वस सिस्टम के साथ जुडकर काम करने लगती हैं। अब तक उसका वजऩ 1.5 किलोग्राम और लंबाई लगभग 19 इंच हो जाती है। अब गर्भाशय में उसके लिए जगह कम पडने लगती है। इसलिए वह धीरे-धीरे अपनी पोजिशन बदलने की कोशिश करता है। अर्थात अब तक उसका सिर ऊपर और पैर नीचे की ओर थे, लेकिन धीरे-धीरे उसका सिर नीचे की ओर आने लगता है। वह ज्यादातर सो रहा होता है। वैज्ञानिकों के शोध से यह साबित हो चुका है कि जन्म से पहले नींद में उसकी आंखों की पुतलियां घूमती हैं और वह सपने भी देखता है।

नौंवां महीना

अब शिशु पूर्णत: विकसित हो चुका होता है। उसका कद लगभग 20 इंच और वजऩ 2.5 किलोग्राम तक हो सकता है। उसकी त्वचा पर अतिरिक्त रूप से फैट जमा होने लगता है, ताकि उसे पर्याप्त ऊर्जा मिले। जन्म के बाद बाहर का तापमान उसके लिए बहुत ठंडा होता है। यही फैट उसके शरीर के तापमान को संतुलित रखता है। अब शिशु संसार में आने के लिए पूरी तरह तैयार होता है। सामान्य अवस्था में उसका सिर नीचे की तरफ होता है। अगर ऐसा न हो तो नॉर्मल डिलिवरी में थोडी दिक्कत आ सकती है और अंतिम विकल्प के रूप में डॉक्टर सी सेक्शन द्वारा डिलिवरी की सलाह देती हैं।

प्रमुख लक्षण

ब्लडप्रेशर बढ सकता है, वजऩ बढने की वजह से पैरों में दर्द या सूजन, कमर में दर्द, उठने-बैठने या लेटने में असुविधा हो सकती है। ब्लैडर पर गर्भस्थ शिशु का दबाव बढने की वजह से बार-बार यूरिन डिस्चार्ज की समस्या हो सकती है।

क्या न करें

बिना डॉक्टर की सलाह के अपने मन से कोई भी एक्सरसाइज न करें। सहवास से दूर रहें क्योंकि इससे प्रीमच्योर डिलिवरी का ख्ातरा हो सकता है। अपने लेबर पेन को फॉल्स पेन समझ कर इग्नोर न करें। लंबी यात्रा पर न जाएं।

क्या करें

अब आपको लगातार अपनी डॉक्टर के संपर्क में रहते हुए उससे लेबर पेन के प्रारंभिक लक्षणों को जानने की कोशिश करनी चाहिए। डिलिवरी की संभावित तिथि से पहले ही अपने लिए किसी अच्छे अस्पताल का प्रबंध कर लें। अपने लिए एक ऐसा बैग तैयार करें, जिसमें आपके और नवजात शिशु के लिए तैयार किए गए कपडों के अलावा कंघी, बेबी सोप-शैंपू ्र, मॉयस्चराइजऱ, टैल्कम पाउडर, तौलिया, एंटीसेप्टिक लोशन और हैंड सैनिटाइजऱ जैसी सभी जरूरी चीजें व्यवस्थित ढंग से रखी होनी चाहिए क्योंकि आपका नन्हा मेहमान कभी भी आ सकता है।


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