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नाज़ुक है रिश्तों की डोर

बचपन में मिली गलत परवरिश का नकारात्मक असर ताउम्र इंसान के व्यक्तित्व में दिखाई देता है। समस्या को कैसे सुलझाया गया, बता रही हैं मनोवैज्ञानिक सलाहकार विचित्रा दर्गन आनंद।

By Edited By: Published: Fri, 12 Aug 2016 12:53 PM (IST)Updated: Fri, 12 Aug 2016 12:53 PM (IST)
नाज़ुक है रिश्तों की डोर
लगभग 5 साल पहले की बात है। मुझसे मिलने एक मिडिलएज स्त्री आई। वह बेहद परेशान लग रही थी और उसके शरीर पर कई जगह चोट के निशान थे। पहले मैंने उसे थोडा सहज होने का समय दिया। फिर उसने जो कुछ भी बताया, उसका सारांश यह था कि उसकी शादी को 18 साल हो चुके थे और वह दो स्कूली बच्चों की मां थी। आमतौर पर उसके दांपत्य जीवन में कोई तनाव नहीं था पर एक रोज बेहद मामूली सी बात पर उसके पति ने उसे पीटना शुरू कर दिया। उस दौरान वह पत्नी से यह भी कहा कि तुम हमारे रिश्तेदारों को नहीं जानती, ये सब बहुत बुरे हैं और तुम बार-बार ऐसे ही लोगों से मेल-जोल बढाना चाहती हो। यह सब सुनकर पत्नी हतप्रभ रह गई। पति के व्यवहार में ऐसा आकस्मिक परिवर्तन देखकर वह बुरी रह घबरा गई औरअपनी एक सहेली से मेरा पता पूछ कर अकेली ही मुझसे मिलने चली आई।उसकी सारी बातें सुनने के बाद मैंने उसे प्यार से समझाया कि तुम्हारे आपसी रिश्ते में अचानक पैदा होने वाले तनाव की असली वजह जानने के लिए तुम्हारे पति से भी बात करना बेहद जरूरी है। मैंने उसे अगली सिटिंग के लिए 15 दिनों के बाद पति के साथ बुलाया पर बार-बार मेरे मन में यही सवाल उठ रहा था कि उनके तनावपूर्ण दांपत्य जीवन से रिश्तेदारों का क्या संबंध हो सकता है? अतीत में छिपी वजह खैर, पंद्रह दिनों बाद मधु (परिवर्तित नाम) अपने पति के साथ मुझसे मिलने आई। उसका पति मधु के साथ अपने हिंसक व्यवहार पर बेहद शर्मिंदा था। उसने मुझे बताया कि मैं अपने जिन रिश्तेदारों को नापसंद करता हूं, वह जबरन उनके साथ मेरे संबंध सुधरवाने की कोशिश में जुटी रहती है। आखिर आपके नापसंद की कोई तो वजह होगी? जब मैंने अमर (परिवर्तित नाम) से पूछा तो वह इसकी कोई खास वजह नहीं बता पाया। हालांकि उसने मुझे यह जरूर बताया था कि बचपन में ही उसकी मां का देहांत हो गया था। हालांकि उसके पिता ने दूसरी शादी नहीं की थी। उस वक्त उसकी चाची और बुआ ने ही उसकी परवरिश की। फिर भी अमर के मन में अपने परिवार के इन सभी सदस्यों, यहां तक कि पिता के लिए भी बहुत ज्य़ादा नफरत थी। उसकी बातों की सच्चाई जानने के लिए मैंने मधु से भी दोबारा वही सवाल पूछे तो उसने मुझे बताया कि उसकी ससुराल में सभी लोग बेहद सीधे-सादे हैं पर उसके पति उनसे बहुत ज्य़ादा चिढते हैं। एक बार अमर के पिता ने मधु को यह बताया था कि मां की मौत के बाद छुट्टियों में अकसर उसकी नानी उसे अपने पास बुला लेतीं और वह जब भी ननिहाल से लौटकर आता तो उसका व्यवहार बहुत उग्र हो जाता। वह अकसर यही कहता कि यहां के सब लोग बहुत गंदे हैं। ननिहाल के लोग अकसर उसे पिता, चाचा और बुआ के खिलाफ भडकाते रहते। यहां तक कि उसके मामा ने उसे यह भी बताया था कि तुम्हारे पापा ने मम्मी का सही ढंग से इलाज नहीं करवाया था और वही उनकी मौत के जिम्मेदार हैं। इसलिए बचपन से ही उसके मन में अपने खानदान के प्रति नफरत भर गई थी। संवर गई जिंदगी मैंने मधु को समझाया कि तुम पहले अपना दांपत्य जीवन संवारने पर ध्यान दो। अगर तुम्हारे पति किसी से मिलना नहीं चाहते तो उन पर इस बात का दबाव हरगिज न डालो। मैंने उसके पति से भी धैर्य रखने को कहा। फिर मैंने उन दोनों को एक सप्ताह बाद बुलाया और उनसे कहा कि फिलहाल आप केवल अपने परिवार के साथ क्वॉलिटी टाइम बिताएं। इस तरह लगभग आठ महीने के भीतर उनके संबंध सामान्य हो गए। इसके लिए मुझे लगभग छह सिटिंग्स लेनी पडीं। इस केस को देखने के बाद मुझे ऐसा लगा कि जिन बातों की ओर अकसर हमारा ध्यान भी नहीं जाता, भविष्य में वे भी किसी बडी परेशानी का सबब बन सकती हैं।

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